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Saturday, 21 December, 2024
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आप-कांग्रेस गठबंधन पर अखिलेश बोले- कांग्रेस इतना इंतजार कराती है कि लोग थक जाते हैं

अखिलेश यादव ने यूपी के चुनाव प्रचार अभियान, तीसरे मोर्चे की सरकार और मायावती की पीएम के रूप में संभावनाओं को लेकर दिप्रिंट से बात की.

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लखनऊ: कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच गठबंधन को लेकर बातचीत इसलिए संभव नहीं हो पाई क्योंकि ‘कांग्रेस ‘बहुत से लोगों को इंतजार’ कराती है और अरविंद केजरीवाल इंतजार करते-करते थक गए होंगे. ये कहना है समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव का.

दिप्रिंट से बातचीत में वे कहते हैं, देखिए आम आदमी पार्टी और अरविंद केजरीवाल कांग्रेस से गठबंधन करना चाहते थे और वे कांग्रेस के साथ काम करना चाहते थे लेकिन कांग्रेस उनके साथ नहीं जाना चाहती थी. मुझे अभी भी पूरी उम्मीद है कि अरविंद केजरीवाल ज्यादा सीटे जीतेंगे और इस गठबंधन के टूटने में कोई जिम्मेदार है तो जैसा कि केजरीवाल भी कह रहे हैं, वो कांग्रेस ही होगी. 2017 में उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव में सपा और कांग्रेस ने गठबंधन किया था लेकिन वे भारतीय जनता पार्टी को हराने में नाकामयाब रहे थे.

अखिलेश यादव कहते हैं, ‘कांग्रेस अच्छी पार्टी है, लेकिन उसे बहुत सारे लोगों को इंतजार कराने की आदत है और वो इतना लंबा इंतजार कराती है कि लोग इंतजार कर-कर के थक जाते हैं. कुछ ऐसा ही अरविंद केजरीवाल के साथ हुआ होगा.’

दिप्रिंट को दिए इंटरव्यू में 45 साल के पूर्व मुख्यमंत्री ने उत्तर प्रदेश में चल रहे लोकसभा चुनाव, तीसरे मोर्चे के गठन, और मायावती के प्रधानमंत्री बनने की संभावना पर बातचीत की.


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मायावती बतौर प्रधानमंत्री

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी (सपा) अपने चिर प्रतिद्वंदी बहुजन समाजवादी पार्टी (बसपा) और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) के साथ लोकसभा चुनाव लड़ रही है. यह गठबंधन प्रदेश की 80 लोकसभा सीटों में से दो सीटों, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के अमेठी और सोनिया गांधी की रायबरेली, को छोड़ बाकी सभी पर चुनाव लड़ रहा है. अखिलेश ने कहा कि चुनाव के बाद देश को गैर भाजपा या गैर कांग्रेस दल मिलेगा.

यह पूछने पर कि क्या राहुल गांधी विपक्षी दलों के महागठबंधन से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार होंगे, अखिलेश कहते हैं, ‘ऐसी स्थिति बन रही कि क्षेत्रीय दलों को भाजपा और कांग्रेस से ज्यादा सीटे मिलेंगी.’

वह अपने और पिता व सपा के वरिष्ठ नेता मुलायम सिंह यादव के प्रधानमंत्री बनने की उम्मीदों को खारिज करते हैं. हालांकि वे यह मानते हैं कि मायावती प्रधानमंत्री के दौड़ में शामिल थीं.

‘यह स्वभाविक है. वो क्यों रेस में नहीं होंगी. इस देश से कोई भी प्रधानमंत्री बन सकता है और अगर वो उत्तर प्रदेश से हो तो ये अच्छी बात है.’

अखिलेश ने राहुल गांधी और कांग्रेस के महासचिव प्रियंका गांधी के उस दावे को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने कहा था कि पार्टी सपा-बसपा-आरएलडी के गठबंधन के वोट काटने की बजाय भाजपा के मसूंबों पर पानी फेरना चाहती है.
यादव ने कहा, ‘कांग्रेस गठबंधन से ज्यादा भाजपा को फायदा पहुंचाने में लगी है.’


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भाइयों के बीच प्रतिद्वंद्विता

जब 2017 के चुनावों के लिए दोनों दलों ने गठजोड़ किया, तो भारतीय राजनीति के दो युवा चेहरों राहुल और अखिलेश को गले में हाथ डाले हुए एक साथ प्रोजेक्ट किया था लेकिन दो साल बाद, स्थिति पूरी तरह से बदल गई है.

अखिलेश ने स्वीकार किया कि वे ‘राजनीतिक रूप से’ दूर हो गए थे. उन्होंने कहा, ‘व्यक्तिगत स्तर पर, हमारे संबंध खराब नहीं हैं, लेकिन हमारे राजनीतिक संबंधों में कुछ दूरियां जरूर बढ़ गई हैं.

‘कमजोर सरकार’

अखिलेश ने भाजपा सरकार को विकास से ध्यान हटाकर राष्ट्रवाद और फिर आतंकवाद पर ध्यान केंद्रित कराने की आलोचना की।

‘उनके (भाजपा ) सभी निर्णय गलत साबित हुए. वे अब डिजिटल इंडिया, स्टार्टअप इंडिया, मेक इन इंडिया की बात नहीं कर रहे हैं. ऐसा इसलिए है क्योंकि उन्होंने बिल्कुल भी काम नहीं किया है और इसीलिए भाजपा आतंकवाद, राष्ट्रवाद पर ज्यादा बात करके ध्यान केंद्रित करने की कोशिश करती है. ‘


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पुलवामा हमले का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा, ‘अगर भाजपा या भाजपा के पीएम का दावा है कि वह सबसे मजबूत हैं, और अगर वह वास्तव में एक मजबूत पीएम हैं, तो ऐसी घटनाएं कैसे हुईं?’ इस तरह की घटनाएं होने का मतलब है कि वह एक मजबूत पीएम नहीं हैं.’

‘और ऐसे समय में जब हमारे पास एक मजबूत सरकार थी, जैसा कि वे दावा करते हैं, उसी समय जब भाजपा नेता आतंकवाद और माओवाद पर यूपी में शानदार भाषण दे रहे थे, उसी दिन हमारे 15 जवान गढ़चिरौली में शहीद हुए थे. अगर ऐसी ‘मजबूत सरकार’ के तहत ये घटनाएं हुईं, तो हम किस तरह की मजबूत सरकार चाहते हैं?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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