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Monday, 4 November, 2024
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वो हरियाणवी पहलवान जिसने ‘ताऊ’ बनने के चक्कर में पीएम पद छोड़ दिया

पारिवारिक लड़ाई 2016 में शुरू हुई. पार्टी कार्यकर्ता अभय सिंह चौटाला को पंसद नहीं करते थे, दुष्यंत की लोकप्रियता के चलते उन्हें पार्टी पोस्टर्स से हटाया गया

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नई दिल्ली: आज़ादी से पहले के भारत का सीन है. देवी दयाल नाम का युवक पंजाब के किसी गांव बादल में पहलवानी सीख रहा था. एक दिन गांधी जी ने युवकों का आह्वान किया कि आज़ादी की लड़ाई में शामिल हो जाओ. इस 14 साल की उम्र का यह युवक आज़ादी की लड़ाई में कूद पड़ा और 1928 में लाला लाजपत राय के प्रोटेस्ट में शामिल हुआ. इसके दो साल बाद कांग्रेस कार्यालय से गिरफ्तार हुआ और करीब 4 साल तक जेल में रहा.

इस घटना के तकरीबन साठ साल बाद भारत की संसद भवन में प्रधानमंत्री पद को लेकर आपाधापी मची थी. इस संकट को खत्म करने के लिए देश के बड़े नेताओं ने इसी युवक के नाम पर मुहर लगा दी, तालियां बज उठीं.

लेकिन ये युवक उठा और बोला-‘और फिर, हरियाणा में, जहां मुझे लोग ताऊजी, ताऊजी करके पुकारते हैं, मैं वहां ताऊजी ही बन के रहना चाहता हूं.’

इस प्रकार इन्होंने प्रधानमंत्री पद छोड़ दिया, उपप्रधानमंत्री बन गए. ये अलग बात है कि देश का ताऊ कहलाने की लालसा में प्रधानमंत्री से भिड़ते रहे. इस युवक का नाम था चौधरी देवी लाल.

राजस्थान से आया परिवार हरियाणा की सबसे बड़ी राजनीतिक ताकत बन गया

19वीं सदी में चौधरी देवीलाल के पड़दादा तेजाराम राजस्थान के बीकानेर से आकर हरियाणा के तेजाखेड़ा (सिरसा) में बसे थे. तेजाराम के तीन बेटे थे- आसाराम, देवाराम और हुक्मा राम. आसाराम के दो बेटे हुए- लेखराम और ताराचंद. उस जमाने में लेखराम के पास 500 एकड़ जमीन थी. लेखराम के दो बेटे हुए-देवीलाल और साहिबराम.


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आजाद भारत में 1952 में पहली बार चुनाव हुए और चौधरी देवीलाल पंजाब विधानसभा में विधायक बनकर गए. 1971 में उन्होंने कांग्रेस छोड़ दी. 1977-79 और फिर 1989 में हरियाणा के मुख्यमंत्री रहे. 1989 से 1991 तक वीपी सिंह और चंद्र शेखर की सरकारों में उप-प्रधानमंत्री रहे. 1996 में बनी इनकी पार्टी को इंडियन नेशनल लोक दल (इनेलो) के नाम से जाना गया.

देवीलाल के 4 बेटे हुए- ओम प्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह, प्रताप सिंह और जगदीश सिंह. देवी लाल के बड़े बेटे ओम प्रकाश चौटाला भी हरियाणा के 3 बार मुख्यमंत्री बने. देवीलाल किसानों के नेता थे.

‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ नामक किताब में पूर्व आरएस राम वर्मा लिखते हैं कि देवीलाल प्रशासन के बाहर रहकर ज्यादा काम करते थे. वो सिस्टम के भीतर रहकर एक कुशल शासक नहीं थे. बल्कि शासन से बाहर रहकर सत्ता को ललकारते रहते थे. ग्रामीण लोगों में उनकी तगड़ी फैन फॉलोइंग थी.

देवीलाल के राजनीतिक जीवन से कई रोचक किस्से जुड़े हैं, उनमें से एक है बलराम जाखड़ को हराना था. बात उन दिनों की है जब 1989 में उन्होंने राजस्थान के सीकर से खड़े होकर बलराम जाखड़ को लोकसभा चुनाव में हराया था. बलराम जाखड़ लोकसभा स्पीकर हुआ करते थे और अपने क्षेत्र में कहा करते थे कि प्रधानमंत्री भी मुझसे पूछकर बोलते हैं. पर देवीलाल ने नारा बुलंद किया- चारा चोर, कमीशनखोर, सीकर छोड़, सीकर छोड़. ये भारी पड़ गया.


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1989 में देवीलाल ने हरियाणा की अपनी रोहतक सीट भी जीती और सीकर में भी जीते. फिर इन्होंने सीकर की सीट रख ली और रोहतक की सीट छोड़ दी. इसके बाद चौधरी देवीलाल रोहतक से कभी जीत नहीं पाए.

1991,1996 और 1998 में भूपिंदर सिंह हुड्डा ने उनको तीनों बार हराया.

1998 में तो ताऊ देवीलाल खुद के 84 साल के होने का हवाला देकर आखिरी चुनाव में जिताने की मांग करते रह गये. पर जनता ने नकार दिया.

चौटाला परिवार के दामन से लगे ‘महम कांड’ के छींटे

ओम प्रकाश चौटाला शुरू से ही अपने पिता के राजनीतिक साम्राज्य को हथियाने में लगे थे. कारण वश देवीलाल के बेटों ओम प्रकाश चौटाला और रणजीत सिंह के बीच की लड़ाई रहती थी. इस कलह की वजह से देवी लाल ने कई बार मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने की धमकियां भी दीं. इसी क्रम में एक बार देवीलाल जब इस्तीफे देने पर अड़ गए तो जनता दल के अध्यक्ष वी पी सिंह को तुरंत चंडीगढ़ के लिए निकलना पड़ा. पार्टी के टूटने और गुटों में बंट जाने के डर की वजह से देवीलाल को अपना फैसला बदलना पड़ा.

1989 में जब देवीलाल उप प्रधानमंत्री तो बने तो अपने पीछे हरियाणा में महाभारत जैसा भीषण युद्ध छोड़ गए. उनके दिल्ली जाते ही ओम प्रकाश चौटाला 02 दिसंबर 1989 को हरियाणा के मुख्यमंत्री बन गए. लेकिन वो उस वक्त हरियाणा विधानसभा में विधायक नहीं थे. ऊपर से देवीलाल की महम की सीट से लड़े थे तो ये सीट भी खाली हो गई थी. यहां उपचुनाव होने थे. महम की सीट देवीलाल और लोकदल का गढ़ थी क्योंकि यहां से देवीलाल लगातार 3 बार जीतकर हैट्रिक बना चुके थे.

ऐसे में ओम प्रकाश चौटाला को महम से चुनाव लड़वाना सही समझा गया. 27 फरवरी 1990 को महम में उप-चुनाव हुए. इस उप-चुनाव में खूब गुंडागर्दी करने के आरोप लगे. बूथ कैप्चरिंग के साथ-साथ भयंकर मारपीट हुई.

‘थ्री लाल्स ऑफ हरियाणा’ में आएएस वर्मा इस घटना का जिक्र करते हैं. वो बताते हैं कि इस दौरान भड़की हिंसा को काबू में पाने के लिए पुलिस को गोलियां चलानी पड़ी. 8 लोग मारे गए और करीब आधा दर्जन घायल हुए.

इस दौरान एक पुलिस कर्मी की भी भीड़ ने पीट-पीट कर हत्या कर दी थी. दरअसल भीड़ से बचने के लिए ओम प्रकाश के बेटे अभय चौटाला और उनके साथी कुछ पुलिसकर्मियों के साथ किसी स्कूल में जा छुपे थे. कहा जाता है कि वहां मौजूद एक पुलिस कर्मी को जबरदस्ती अभय के अपने कपड़े पहनवाए गए. जब भीड़ स्कूल में घुसी तो पुलिसकर्मी को अभय चौटाला समझ मार दिया.

हिंसा और बूथ कैप्चरिंग की घटनाओं की वजह से यह उप चुनाव कैंसिल कर दिया गया. इसी साल 21 मई को दोबार महम उप चुनाव की घोषणा हुई. लेकिन चुनाव होने से पहले ही 16 मई को निर्दलीय उम्मीदवार अमीर सिंह की हत्या कर दी गई. आज भी हरियाणा के बड़े बुजुर्ग इस हत्या के पीछे ओम प्रकाश चौटाला का हाथ बताते हैं. पूर्व आएएस वर्मा ने भी लिखा है कि उस वक्त सत्ता के गलियारों में चर्चा थी कि ओम प्रकाश चौटाला ने खुद ही अमीर सिंह को खड़ा किया था. ये उपचुनाव भी कैंसिल हो गया.

जब माहौल ज्यादा खराब होने लगा तो वीपी सिंह पर जांच करने का दबाव बढ़ा. परिस्थितियों को देखते हुए ओम प्रकाश चौटाला से इस्तीफा ले लिया गया. उसके बाद 22 मई 1990 को बनारसी दास गुप्ता को हरियाणा का मुख्यमंत्री बनाया गया. महम की सीट पर 1991 में तीसरी बार चुनाव हुए. ये उप-चुनाव ही ‘महम कांड’ के नाम से भी जाना जाता है.

एक पीढ़ी बाद इतिहास फिर दुहराया गया

जिस तरह ओम प्रकाश चौटाला, रणजीत सिंह और बाकी भाइयों का पत्ता साफ कर राजनीति में आगे बढ़े थे ठीक वैसी ही स्थिति वर्तमान समय में बन गई है. बीते साल ओम प्रकाश चौटाला के बेटे एक दूसरे से ‘युद्ध’ की घोषणा कर चुके हैं. पार्टी इनेलो से बाहर निकाले जाने पर अजय चौटाला ने अपने भाई अभय चौटाला को दुर्योधन कहा. बात दुर्योधन को खत्म करने तक भी आ पहुंची थी. पिछले साल ही इनेलो से निकाले जाने के बाद अजय चौटाला और उनके बेटे दुष्यंत चौटाला एवं दिग्विजय चौटाला ने जन नायक जनता पार्टी बना ली.

जींद उपचुनाव के दौरान ओम प्रकाश चौटाला पैरोल पर तिहाड़ जेल से बाहर आए थे. बाहर आकर उन्होंने अपने पोतों दुष्यंत चौटाला और दिग्विजय चौटाला को गद्दार कहा. वैसे एक समय ऐसा भी था उनसे देवीलाल इतने नाराज हो गए थे कि ओम प्रकाश चौटाला को पार्टी दफ्तर में पैर तक रखने से मना दिया था.

चौटाला पर लगे आरोप भी रोचक हैं. भीम एस दहिया की किताब ‘पावर पॉलिटिक्स ऑफ हरियाणा’ में उस किस्से का जिक्र है जब 1978 में ओम प्रकाश चौटाला विदेशी घड़ियों की तस्करी के आरोप में दिल्ली के एयरपोर्ट पर डिटेन किए गए थे.

बाद में हरियाणा के मुख्यमंत्री रहते हुए ओम प्रकाश चौटाला पर साल 2000 में जेबीटी घोटाला करने के आरोप लगे. इसी मामले में 2013 में ओम प्रकाश चौटाला और उनके बेटे अजय को कोर्ट ने दस साल की सजा सुनाई. इस तरह जवानी में विदेशी घड़ियों की तस्करी का आरोप झेलने वाले ओम प्रकाश चौटाला जेल की सजा काटने वाले भारत देश के पहले मुख्यमंत्री बने.

वहीं, कुछ दिन पहले ओम प्रकाश चौटाला के बेटे अभय चौटाला कहते पाए गए थे कि फिर से सत्ता में आए तो जेबीटी की तरह ही नौकरियां बांटेगे. उन्होंने कहा था कि, “म्हारी मैरिट नहीं होया करै.’’

पढ़ाई लिखाई को लेकर परिवार में रोचक बातें होती रही हैं

हालांकि 2017 में 82 साल की उम्र में ओम प्रकाश चौटाला ने बारहवीं क्लास की परीक्षा पास की थी और आगे बीए की परीक्षा देने की भी इच्छा जाहिर की थी. उनके बेटे अभय ने बताया था कि देवीलाल की राजनीति में आ जाने की वजह से ओम प्रकाश चौटाला पर पारिवारिक जिम्मेदारियों का बोझ बढ़ गया था. इस वजह से वो पढ़ नहीं पाए थे.

ओम प्रकाश चौटाला के पोते दिग्विजय पर आरोप लगे थे कि वो खुद विदेश पढ़कर आए वकील बताते हैं लेकिन जींद के उपचुनाव का नामांकन भरने के समय खुद को बारहवीं पास ही बताया. इनेलो और बाकी पार्टी के प्रवक्ता ये सवाल कई बार उठा चुके हैं. हालांकि जन नायक जनता पार्टी की तरफ से टीवी डिबेट्स में भेजे जाने वाले लोग सफाई दे चुके हैं कि पारिवारिक जिम्मेदारियों के चलते दिग्विजय अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके.

जनता जन नायक पार्टी के मीडिया प्रभारी दीप कमल सहारण ने दिप्रिंट को बताया कि 2013 में दिग्विजय लॉ के थर्ड ईयर में विदेश से वापस आ गए थे. उस दौरान उनके पिता और दादा को जेबीटी घोटाले में दोषी पाया गया था और उन्हें दस साल की सजा सुनाई गई थी.

परिवार की जंग अब काफी आगे बढ़ चुकी है

दीप कमल ने बताया कि पारिवारिक लड़ाई की शुरुआत साल 2016 में हो गई थी. पार्टी के कार्यकर्ता अभय सिंह चौटाला को पंसद नहीं करते थे. दुष्यंत चौटाला की बढ़ती लोकप्रियता के चलते उन्हें धीर-धीरे पार्टी के पोस्टर्स से हटाया जाने लगा. दिग्विजय जो मंच का संचालन किया करते थे, साइडलाइन किए जाने लगे. फाइनली साल 2018 के आखिर में अभय चौटाला ने दोनों भाइयों को इनेलो से बाहर कर दिया. इनेलो पार्टी से निकाले जाने के एक महीने के भीतर दुष्यंत चौटाला ने जनता जन नायक पार्टी का गठन कर लिया.

जींद उपचुनाव में लड़ने से दिग्विजय इनेलो की छात्र ईकाई इनसो का कार्यभार संभाल रहे थे. वहीं, दुष्यंत चौटाला 2014 लोक सभा चुनावों में सबसे कम उम्र में पार्लियामेंट के सदस्य बनने पहले सांसद हैं. वो हिसार की सीट से लड़े थे.

2019 लोकसभा चुनावों में उन्हें मुख्यमंत्री पद का दावेदार दिखाते हुए चुनाव प्रचार जारी है. अभय चौटाला ने भी अपने दो बेटों कर्ण और अर्जुन को धीरे-धीरे पब्लिक की नजरों में लाना शुरू किया है.

अपने भाई और भतीजों को पार्टी से निकालने के अलावा फरवरी 2019 में अभय चौटाला पाकिस्तान जाने की एक निजी यात्रा को लेकर भी चर्चा में आए थे. दरअसल, अभय चौटाला अपने किसी पारिवारिक दोस्त के यहां शादी में लाहौर की 3 दिन की यात्रा पर जाना चाहते थे.

फरवरी 2019 में दिल्ली के पटियाला हाउस कोर्ट ने उन्हें अनुमति तो दे थी लेकिन पुलवामा हमले के मद्देनजर यह यात्रा रद्द कर दी गई.

अभय और अजय के अलावा देवी लाल परिवार के दूसरे सदस्य भी राजनीति में सक्रिय हैं. देवीलाल के एक बेटे प्रताप सिंह चौटाला 2014 में स्वर्गवासी हो गए हैं. प्रताप सिंह के बेटे रवि चौटाला जिला स्तर की राजनीति तक सीमित हैं. जगदीश के बेटे आदित्य और अनिरुद्ध बीजेपी में शामिल हो चुके हैं. आदित्य चौटाला को हरियाणा सहकारी कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक का चेयरमैन बनाया है.

2019 के लोकसभा चुनाव में अनिरुद्ध के सिरसा के डबवाली से चुनाव लड़ने की संभावनाएं भी जताई जा रही हैं. रणजीत सिंह पहले से ही कांग्रेस में हैं.

सिरसा के डबवाली की जिस सीट से अनिरुद्ध चौटाला को चुनाव में उतारे जाने के कयास लगाए जा रहे हैं उसी सीट से दुष्यंत चौटाला की मां नैना चौटाला एमएलए हैं. अभय सिंह चौटाला की पत्नी कांता चौटाला भी जिला परिषद का चुनाव लड़ चुकी हैं. दुष्यंत अपनी पत्नी मेघना चौटाला को राजनीति से दूर ही रखना चाहते हैं.

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