नई दिल्ली: लोकसभा चुनावों में करारी हार के बाद कांग्रेस पार्टी के भीतर ही अंतर्कलह शुरु हो गई है. पार्टी के नेताओं का मानना है कि कांग्रेस पार्टी नोटबंदी, बेरोजगारी, जीएसटी सहित जनता के जुड़े मुद्दों को जमीनी स्तर पर ले जाने में नाकाम रही. पार्टी ने राफेल डील के आसपास ही चुनाव प्रचार को केंद्रित रखा इसका खामियाजा भी कांग्रेस को भुगतना पड़ा. कांग्रेस के नेताओं का मनना है कि हार की सबसे बड़ी वजह टाइमिंग, ठीक तरह से मैनेजमेंट नहीं होना और गठबंधन में हठधर्मिता होना भी है.
इस परिणाम पर कांग्रेस नेता जनार्दन द्विवेदी ने कहा, ‘जिस तरह से परिणाम आए और कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ हुआ, उससे जरा भी आश्चर्य नहीं हुआ है.’
वहीं मणिशंकर अय्यर ने कहा कि कांग्रेस का प्रदर्शन बहुत खराब रहा है. जिस प्रकार पार्टी ने चुनाव प्रचार किया उसमें बहुत खामियां थीं.
इन दोनों नेताओं ने अलावा दिप्रिंट से चर्चा में नाम न छापने के अनुरोध पर दूसरे नेताओं ने बताया कि ‘यह हार सीधे तौर पर कांग्रेस नेतृत्व पर सवालिया निशान खड़े करता है. जिसके कारण लगातार दूसरे आम चुनाव में पार्टी को बुरी तरह हार का मुंह देखना पड़ा है.’
पार्टी ने अपना पूरा फोकस ‘चौकीदार चोर पर’ ही रखा. इसके अलावा पार्टी को किसानों की समस्या, बेरोजगारी जैसे मुद्दों पर भी फोकस करना चाहिए था. कई नेताओं ने इस हार के पीछे राहुल गांधी की टीम पर सवालिया निशान खड़े किए हैं. यह टीम जमीनी हकीकत से पूरी तरह से दूर है. जिसका खामियाजा इस चुनाव में देखने को मिला.
एक नेता ने नाम न छापने के शर्त पर कहा कि लोग ‘अंडरकंरट’ के बारे में बात कर रहे थे, लेकिन ऐसा लगता है कि अंडर करंट भाजपा के पक्ष में गया. राहुल गांधी ने बहुत मेहनत की, लेकिन पार्टी द्वारा लिए गए फैसलों ने इसे चोट पहुंचाई है. राहुल की टीम अभी भी एनजीओ की तरह काम कर रही है. वह एक झोला वाली टीम है. इसका जमीनी हकीकत से कोई को संबंध नहीं है. भविष्य में पार्टी की बेहतरी के लिए इसे गंभीरता से लेने की जरुरत है.
एक अन्य नेता ने कहा कि कांग्रेस एक राष्ट्रीय पार्टी है. हमें यह समझना होगा कि हमारे प्रचार अभियान से लेकर राज्यों में गठबंधन बनाने में तक में बहुत देरी हुई है. कांग्रेस अध्यक्ष को सलाह देने वाले लोगों को इस नुकसान के लिए दोषी ठहराया जाना चाहिए. साथ ही, पार्टी को धर्मनिरपेक्ष नजरिये से सब कुछ देखना बंद करना होगा.लोग इस सब से दूर चले गए.
पार्टी में कोई नेता बदलाव देखना नहीं चाहता: अय्यर
कांग्रेस नेता मणिशंकर अय्यर ने पार्टी को सुझाव देते हुए कहा कि चुनाव से पहले पार्टी के पास विकल्पों की कमी नहीं थी. मुझे लगता है कि हमें इस बारे में लोागों को बताने की जरुरत थी कि हमारा उद्देश्य क्या है. हमारा सीधा उद्देश्य भाजपा को हराने में होना चाहिए था. उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने एक सुझाव दिया था कि बीजेपी के खिलाफ एक विपक्षी उम्मीदवार होना चाहिए, लेकिन ऐसा नहीं हुआ.
उनका कहना है कि मैं रसायन विज्ञान के बारे में बहुत कुछ सुनता रहा हूं जो अंकगणित से आगे निकल गया है, लेकिन क्योंकि हमने वास्तव में राष्ट्रव्यापी महागठबंधन नहीं बनाया है, अंकगणित ही गलत था.
हार पर गांधी की नैतिक जिम्मेदारी लेने और पार्टी में बदलाव के सवाल पर अय्यर ने कहा कि मुझे यकीन है कि वह नैतिक जिम्मेदार लेंगे. वह एक बुद्धिमान व्यक्ति है.यह उनकी ज़िम्मेदारी है कि वह व्यक्तित्व और नीति में बदलाव करें. इससे हम 2024 में फांसीवादी ताकतों के खिलाफ कड़ी लड़ाई लड़ सकें
बदलाव के बारे में पूछे जाने पर अय्यर ने कहा कि जहां तक मुझे पता है, पार्टी में कोई नहीं है जो उस बदलाव को देखना चाहता है.अब पार्टी को प्रदर्शन का सहारा लेने के बजाए हर विषय पर बहस करनी चाहिए.
अमरिंदर का सिद्धू पर निशाना
शिकस्त के बाद सबसे पहले राज्य के सीएम कैप्टन अमरिंदर सिंह ने पंजाब सरकार में मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू को आड़े हाथों लिया है. सिद्धू के पाकिस्तान में जाकर वहां के सेनाध्यक्ष से गले मिलने को लेकर कैप्टन ने उन पर निशाना साधा है. कैप्टन ने कहा कि ‘भारतीय और खासतौर पर सेना से जुड़े लोग पाकिस्तानी सेनाध्यक्ष के गले लगने जैसी हरकतों को पसंद नहीं कर सकते.’ कैप्टन ने गुरदासपुर से कांग्रेस उम्मीदवार सुनील जाखड़ के हारने पर भी आपत्ति जताई है.उन्होंने कहा कि मैं यह समझ नहीं पा रहा हूं कि सुनील जी ने वहां बहुत अच्छा काम किया था.फिर ऐसे अनुभवी नेता के बजाए अभिनेता को चुनने का फैसला क्यों किया.
राज्यों के क्षत्रपों में समन्वय की कमी दिखी
राजस्थान में पार्टी की राज्य की सत्ता होने के बाद भी सीएम अशोक गहलोत और उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट के बीच संवाद और समन्वय की कमी का असर देखने को मिला है. वहीं मध्यप्रदेश में भी कांग्रेस पार्टी अपने कामों को जनता के बीच ले जा नहीं पाई. राज्य में दिग्विजय सिंह, ज्योतिरादित्य सिंधिया और कमलनाथ के गुटबाजी से पार्टी को हार का सामना करना पड़ा.
ऐसा ही गुटबाजी छत्तीसगढ़ में भी देखने को मिली. राज्य में सत्ता होने के बाद भी पार्टी को केवल दो ही सीटें हासिल हुई.पश्चिम बंगाल और बिहार में पार्टी चुनाव लड़ रही है या नहीं इसका कोई नजारा देखने को ही नहीं मिला.बंगाल में पार्टी के पास चेहरे का अभाव रहा. वहीं बिहार में महागठबंधन जरूर हुआ. इसके बाद भी पार्टी कोई अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाई.