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Saturday, 21 December, 2024
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मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कमल की हाथी जितनी बड़ी समस्या

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पिछले तीन चुनावों में दोनों राष्ट्रीय दलों ने कई सीटों पर एक-दूसरे के लिए खराब प्रदर्शन किया है। लेकिन अब कांग्रेस गठबंधन करने पर विचार पर रही है।

नई दिल्लीः कांग्रेस के दिग्गज नेता कमलनाथ के सामने मध्य प्रदेश कांग्रेस के नए अध्यक्ष की भूमिका और कम से कम एक असंभव कार्य को पूरा करने की स्पष्ट चुनौती है। कमल को मायावती की बहुजन समाज पार्टी के साथ गठबंधन करने और यह सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदारी दी गई है कि इससे पिछली बार के जैसे कांग्रेस के वोटों को कोई क्षति न हो।
पिछले छः सालों में बसपा अपने ही घर (उत्तर प्रदेश) की सत्ता में अधिकांशता सिमट गई है। 2017 के विधानसभा चुनाव में 19 सीटें जीतने वाली बसपा के पास एक भी लोकसभा सांसद नहीं है। लेकिन पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश में कांग्रेस को प्रभावित करने के लिए इसके पास पर्याप्त वोट बैंक है।

पिछले तीन विधानसभा चुनावों में बसपा ने लगातार कांग्रेस की उन सीटों और वोटों को बर्बाद कर दिया है जिनके कारण कांग्रेस को एक बड़ी जीत दर्ज कराने की संभावना थी। इस बार कांग्रेस ने पहले से ही इस खतरे को भाँपते हुए चुनाव से पहले ही बसपा के साथ गठबंधन करने का फैसला लिया है, स्वयं नाथ ने दिप्रिंट को इस बात की जानकारी दी है।
नाथ ने दिप्रिंट को बताया कि, “हम राज्य में भाजपा को हराने के लिए सभी समान विचार धाराओं वाली पार्टियों से बात करेंगे।“

तीसरा मोर्चा

1984 में कांशीराम द्वारा स्थापित बसपा ने 1990 में मध्य प्रदेश में अपने चुनावी सफर का आगाज किया था। भाजपा और कांग्रेस के बाद तीसरे स्थान पर विराजमान बसपा ने अपने पहले चुनाव में 3.53 प्रतिशत वोट स्कोर बनाया था। इसके बाद से यह सभी चुनावों में लगातार 6 से 8 प्रतिशत के आँकड़े को छू रही है।

2003, 2008 और 2013 में आयोजित होने वाले चुनावों में राज्य में भाजपा ने कांग्रेस पर अपनी शानदार जीत दर्ज कराई है लेकिन बसपा ने भी क्रमशः दो, सात और चार सीटों पर अपना परचम लहराया है।

लेकिन दप्रिंट द्वारा किए गए विश्लेषण यह बात सामने आई है कि मध्य प्रदेश में बसपा ने कांग्रेस की संभावनाओं पर पानी फेरने के लिए काफी वोट हासिल कर लिए हैं।

बसपा ने कैसे किया कांग्रेस को बर्बाद,परिणाम जैसे को तैसा

2003 में,दिग्विजय सिंह द्वारा दो बार सत्ता संभालने के बाद सत्ता-विरोधी गतिविधियों से जूझ रही कांग्रेस ने राज्य की 230 सीटों में से केवल 38 सीटों पर अपनी जीत दर्ज करवाई थी। इसी चुनाव में दो सीटें बसपा के हाँथ लगी थीं। लेकिन कांग्रेस के लिए चिंता का विषय यह था कि, कांग्रेस ने इस चुनाव में केवल 25 सीटें इसलिए खो दी थीं कि इनपर बसपा उम्मीदवारों ने कॉमन वोट बैंक में से पर्याप्त वोट प्राप्त कर लिए थे। कांग्रेस द्वारा समान वोट विभाजन के कारण बसपा को भी 14 सीटों से हाँथ धोना पड़ा था।

यदि 2003 में कांग्रेस और बसपा एक साथ चुनाव लड़ते तो उन्होंने 79 सीटों पर अपनी जीत दर्ज कराई होती। भाजपा को चोट पहुँचाने के लिए यह पर्याप्त होगा, लेकिन यह एकतरफा नहीं होगा जैसा कि यह हुआ और 173 सीटों पर भाजपा ने जीत दर्ज करवाई थी।

2008 में कांग्रेस ने भाजपा की 143 सीटों की तुलना में 71 सीटें जीतकर बेहतर प्रदर्शन किया था। लेकिन फिर से बसपा ने इसकी 39 सीटों पर अपना कब्जा लिया। दूसरे तौर पर देखा जाए तो, जबकि बसपा ने सात सीटों पर अपनी जीत दर्ज करवाई थी। बसपा 14 सीटें जीत सकती थी, क्या ऐसा कांग्रेस के साथ वोटों के विभाजन के कारण नहीं हुआ था। कांग्रेस और बसपा ने गठबंधन करके 131 सीटें जीती थीं, जो राज्य में उनकी सरकार बनाने के लिए पर्याप्त थीं।

2013 में लोकसभा चुनावों से कुछ महीने पहले देश में जारी मोदी लहर को देखते हुए यह कोई आश्चर्य की बात नहीं थी कि कांग्रेस मध्य प्रदेश में भाजपा को न हरा सकी थी। 10 साल से केन्द्र में यूपीए की सरकार और इस पर लगाए गए कई भ्रष्टाचार के आरोपों ने कांग्रेस की राह को और मुश्कित कर दिया था। फिर पार्टी के अंदर मची अफरा तफरी ने इस आग को और भड़का दिया था।

कुछ महीने पहले ही व्यापम घोटाले के सामने आने और पार्टी के कई नेताओं पर इसका प्रभाव होने के बावजूद भी भाजपा ने 165 सीटों पर अपनी जीत दर्ज कराई थी। और एक बार फिर, बसपा ने कांग्रेस के लिए खराब प्रदर्शन किया था। वोटों के विभाजन के बिना कांग्रेस 34 सीटों से बढ़कर 58 सीटें प्राप्त कर सकती थी, जबकि बसपा अपनी चार सीटों से आगे बढ़कर 11 सीटें जीत सकती थी। दोनों पार्टियाँ एक साथ आकर 103 सीटें जीत सकती थीं, जो भाजपा के करीब होती।

गठबंधन का प्रयास

मध्य प्रदेश के कुछ इलाकों और विशेष कर चंबल तथा उत्तर प्रदेश की सीमा से लगे क्षेत्रों में बसपा की हमेशा से अच्छी पकड़ रही है। यह इसलिए भी है क्योंकि राज्य के दलितों की उच्च जनसंख्या, करीब 15 प्रतिशत, इन्ही क्षेत्रों में निवास करती है। 2013 के चुनाव में पार्टी ने राज्य के 50 जिलों में से 22 जिलों में अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई थी।

इस बार कांग्रेस के प्रभारी कमल नाथ के साथ चुनाव से पहले बसपा के साथ गठबंधन को पहले से कहीं अधिक पसंद किया जा रहा है, कमल की प्रतिष्ठा अन्य पार्टियों के नेताओं को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। बसपा के अलावा, कांग्रेस भी गोंडवाना गणतंत्र पार्टी को साथ लाने का प्रयास कर रही है। जनजातीय मध्यप्रदेश में गोंडवाना गणतंत्र पार्टी की अच्छी पकड़ है और यह कांग्रेस की कुछ सीटों की संभावनाओं पर पानी फेरने के लिए पर्याप्त है।

कांग्रेस के भीतर बसपा को 15 सीटें दिए जाने की चर्चा चल रही है। इसमें बसपा द्वारा 2013 में जीती गई चार और बाद में जीती गई 11 सीटों को शामिल किया गया है, जहाँ पार्टी दूसरे स्थान पर रही थी।

एक वरिष्ठ राज्य कांग्रेस नेता का कहना है कि. “लेकिन यह फाइनल नहीं है, असल बात तो तब पता चलेगी जब हम इस मामले में बसपा के साथ चर्चा करेंगे। यदि हम बसपा को कुछ सीटें देकर 40 के करीब सीटें जीतते हैं तो हमें गठबंधन करके चुनाव लड़ने में कोई नुकसान नहीं है।“

हालांकि, उत्तर प्रदेश में बसपा सांसद अशोक सिद्धार्थ का कहना है कि कांग्रेस की तरह से ऐसा कोई भी आधिकारिक दृष्टिकोण नहीं है। उन्होंने कहा, “किसी भी गठबंधन के लिए कांग्रेस ने अभी तक कोई संपर्क नहीं किया है। जैसा कि हमारी नेता बहन मायावती जी का निर्देश है हम मध्य प्रदेश में सभी सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रहे हैं।“

लेकिन उत्तर प्रदेश में जो हो रहा है, जहाँ वोटों के बटवारे को रोकने और भाजपा को कमजोर करने के लिए बसपा ने अपने 25 साल के कड़े प्रतिद्वंदी समाजवादी पार्टी से गठबंधन करने का फैसला लिया है, उसे देखते हुए मध्य प्रदेश में गठबंधन से इन्कार नहीं किया जा सकता है।

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