कोलंबो, 17 मई (भाषा) श्रीलंका की संसद ने मंगलवार को तीखी बहस के बाद सत्तारूढ़ दल के सांसद अजित राजपक्षे को सदन का उपाध्यक्ष चुना। रनिल विक्रमसिंघे को देश का नया प्रधानमंत्री नियुक्त किए जाने के बाद यह संसद की पहली बैठक है।
अजित राजपक्षे (48) को गुप्त मतदान के जरिये कराए गए चुनाव में सदन का उपाध्यक्ष चुना गया। सत्तारूढ़ श्रीलंका पोदुजना पेरेमुना (एसएलपीपी) के उम्मीदवार अजित को 109 वोट मिले, जबकि मुख्य विपक्षी दल सामागी जन बालवेग्या (एसजेबी) की रोहिणी कविरत्ने को 78 मतों से संतोष करना पड़ा।
अजित राजपक्षे का सत्तारूढ़ राजपक्षे परिवार से कोई संबंध नहीं है, लेकिन वह उसी हम्बन्टोटा जिले से आते हैं जहां का सत्तारूढ़ राजपक्षे परिवार निवासी है।
अध्यक्ष मंहिदा यापा अभयवर्धन ने 23 मतों को खारिज कर दिया। रंजीत सियामबलपतिया के इस्तीफे के बाद से ही संसद के उपाध्यक्ष का पद खाली पड़ा था।
बैठक की शुरुआत में एसएलपीपी सांसद अमरकीर्ति अतुकोराला की मौत पर शोक जताया गया। पिछले हफ्ते सरकार समर्थक और विरोधी प्रदर्शनकारियों के बीच संघर्ष के दौरान उनकी हत्या कर दी गई थी। इस दौरान उनके निजी सुरक्षा अधिकारी की भी मौत हो गई थी।
इससे पहले, अधिकतर सांसदों ने अध्यक्ष अभयवर्धन से आग्रह किया था कि वह समय और पैसे की बचत करते हुए गुप्त मतदान न कराएं तथा विपक्षी नेता व प्रधानमंत्री को आम सहमति से एक उपयुक्त उम्मीदवार चुनने का निर्देश दें।
नेशनल फ्रीडम फ्रंट के नेता विमल वीरावांसा ने मतदान के आह्वान की निंदा करते हुए कहा था कि मतदान प्रक्रिया पर करदाताओं के 90 लाख रुपये खर्च होंगे और ऐसा करने से पूरी संसद लोगों के सामने एक मजाक बन जाएगी।
सांसदों के निर्दलीय समूह के सदस्य निमल लांजा ने धमकी दी थी कि अगर मतदान की मांग को माना गया तो वे सदन से बहिगर्मन कर देंगे, जबकि पूर्व राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना और श्रीलंका फ्रीडम पार्टी के अध्यक्ष ने कहा कि एसएलएफपी के सांसद अवैध वोट डालेंगे।
हालांकि, दोनों पक्षों में आम सहमति नहीं बन पाई। मतदान से पहले विपक्ष, सत्ता पक्ष और अध्यक्ष के बीच तीखी बहस हुई।
अध्यक्ष अभयवर्धन ने कहा कि वह सदन के नियमों और संसद के स्थायी आदेशों से बंधे हैं जिसके तहत तब गुप्त मतदान कराया जाता जब दोनों पक्षों से उम्मीदवार खड़े होते हैं।
इस दौरान महिंदा राजपक्षे और उनके बेटे नमल दोनों गैर-हाजिर थे, जबकि राजपक्षे परिवार के अन्य सदस्य-बेसिल राजपक्षे और शशींद्र राजपक्षे संसद में उपस्थित थे।
विक्रमसिंघे को श्रीलंका का प्रधानमंत्री नियुक्ति किए जाने और देश में हिंसा फैलने के बाद यह संसद की पहली बैठक थी। इससे पहले, मंहिदा राजपक्षे ने प्रदर्शनों के बीच प्रधानमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया था।
विक्रमसिंघे ने रविवार को कहा था कि राष्ट्रपति की शक्तियों पर अंकुश लगाने के लिए संविधान में 21वें संशोधन पर सोमवार को अटॉर्नी जनरल के विभाग के साथ चर्चा की जाएगी, ताकि इसे मंजूरी के लिए कैबिनेट में पेश किया जा सके।
प्रदर्शनकारी देश की राजनीतिक व्यवस्था में बदलाव की मांग कर रहे हैं।
21वें संशोधन से राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को निरंकुश शक्तियां देने वाले 20ए के रद्द होने की उम्मीद है। इससे पहले, 19वें संशोधन को समाप्त कर दिया गया था, जिसने संसद को राष्ट्रपति से ज्यादा शक्तिशाली बना दिया था।
भाषा नोमान पवनेश
पवनेश
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