(ललित के झा)
वाशिंगटन, 23 अप्रैल (भाषा) वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने शुक्रवार को कहा कि भारत और अमेरिका के बीच द्विपक्षीय संबंध आगे बढ़ने के साथ मजबूत हुए हैं। उन्होंने कहा कि यूक्रेन युद्ध के बाद वह अवसरों की और खिड़कियां खुलते हुए देख रही हैं।
सीतारमण अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की वार्षिक बैठकों में हिस्सा लेने यहां आयी थीं। इस दौरान उन्होंने कई द्विपक्षीय बैठकें कीं और कई बहुपक्षीय बैठकों में हिस्सा लिया। उन्होंने बाइडन प्रशासन के कई शीर्ष अधिकारियों से बातचीत की।
उन्होंने द्विपक्षीय संबंध को लेकर एक सवाल पर कहा, ‘‘ऐसी समझ बनी है कि अमेरिका के साथ भारत के संबंध असल में आगे बढ़े हैं। यह मजबूत हुए हैं। इस पर कोई भी सवाल नहीं उठा सकता। लेकिन यह समझ भी है कि न केवल रक्षा उपकरणों के लिए रूस पर पुरानी निर्भरता है, बल्कि भारत के उसके साथ कई दशकों के संबंधों में विरासत के मुद्दे भी हैं।’’
सीतारमण ने अपनी यात्रा के समापन पर वाशिंगटन डीसी में भारतीय पत्रकारों के एक समूह से बातचीत में कहा, ‘‘मैं अधिक से अधिक अवसरों को पैदा होते हुए देखती हूं, बजाय यह कहने के अमेरिका एक हाथ की दूरी बरत रहा है कि आपने रूस पर जो रुख अपनाया है, उससे नहीं लगता कि आप हमारे नजदीक आ रहे हैं। नहीं।’’
वित्त मंत्री ने हिंद-प्रशांत क्षेत्र में घटनाक्रम और हाल में संपन्न ‘टू प्लस टू’ मंत्री स्तरीय वार्ता के बारे में बताया। उन्होंने कहा, ‘‘हिंद प्रशांत आर्थिक संबंध की रूपरेखा पर जो बातचीत चल रही है, वह भी काफी जोर पकड़ रही है और प्रधानमंत्री ने कहा है कि वह इस पर विचार करेंगे।’’
उन्होंने कहा कि अमेरिका के साथ भारत के संबंध हर दिन बेहतर हो रहे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘यह माना जाता है कि एक मित्र है लेकिन उस मित्र की भौगोलिक स्थिति को भी समझना होगा। मित्र को किसी भी वजह से कमजोर नहीं किया जा सकता। हम जहां खड़े हैं उसकी भौगोलिक स्थिति देखिए…कोविड के बावजूद उत्तरी सीमाओं पर तनाव है, पश्चिम सीमाओं पर लगातार मुश्किलें हैं और कभी-कभी अफगानिस्तान में आतंकवादी मुद्दों से निपटने के लिए दिए उपकरणों को भी हमारी तरफ मोड़ दिया जाता है, इन घटनाक्रम में किसी के पास भी विकल्प नहीं हो सकता।’’
सीतारमण ने कहा कि भारत के पास अपनी स्थिति बदलने का विकल्प नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत निश्चित तौर पर अमेरिका से दोस्ती चाहता है लेकिन ‘‘अगर अमेरिका भी मित्र चाहता है तो वह मित्र कमजोर मित्र हो सकता है लेकिन उसे कमजोर नहीं किया जाना चाहिए। हम फैसले ले रहे हैं, हम अपने रुख को व्यवस्थित कर रहे हैं क्योंकि हमें भौगोलिक वास्तविकताओं को ध्यान में रखते हुए मजबूत रहने की आवश्यकता है।’’
भाषा
गोला संतोष
संतोष
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