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Wednesday, 20 November, 2024
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एक-एक पोर्ट करके पूरे विश्व पर कब्ज़ा कर लेगा चीन

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नये शोध से पता चलता है कि चीन का बंदरगाहों में बेल्ट और रोड उपक्रमों के रूप मेंनिवेश, भारत-प्रशांत क्षेत्र में राजनीतिक प्रभाव और सैन्य उपस्थिति पैदा करने के लिए है।

नई दिल्ली: 2013 में शुरू हुए, चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट और रोड उपक्रम (बीआरआई) को प्राचीन सिल्क रोड को फिर से बनाने के लिए एक व्यापारिक मास्टरस्ट्रोक के रूप में देखा गया है, जिससे अनुकूल परिस्थितियों में सड़क के साथ साथ विकास को सुगमता मिल रही है।

लेकिन नये शोध से,लिप्त चीनी कंपनियों के‘कॉर्पोरेट के भ्रमित करने वाले’ प्रयोग, से सहायता प्राप्त एक स्पष्ट राजनीतिक एजेंडे के बारे में पता चलता है।

वाशिंगटन स्थित गैर-लाभकारी शोध समूह C4ADS की ‘‘Harboured Ambitions’ नामक एक रिपोर्ट: कैसे चीन का बंदरगाहों में निवेश रणनीतिक रूप से भारत-प्रशांत क्षेत्र को दोबारा आकृति दे रहा है’, चीन के विश्लेषक डेविन थॉर्न और बेन स्पीवैक ने नोट किया,“बीआरआई को आचारभ्रष्ट करने के चीन के इरादों पर सवाल उठाये”।

उन्होंने कहा, बीजिंग भारत-प्रशांत क्षेत्र को ढाल रहा है ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा के हितों के पर्याप्त रूप से संरक्षण को सुनिश्चित किया जा सके। ये एक रणनीतिक वातावरण का निर्माण करता हुआ दिखाई देता है, उन्होंने आगे कहा, ये बीजिंग के लिए राजनीतिक प्रभाव पैदा करता है और भारत-प्रशांत क्षेत्र में इसकी सैन्य उपस्थिति के विस्तार में सहयोग देता है।
बुनियादी ढाँचे और इससे परे निवेश

रिपोर्ट छः मापदंडों से प्राप्त रुपरेखा पर आधारित थी- स्थान, विकास मॉडल, कम्युनिस्ट पार्टी की उपस्थिति, वित्तीय नियंत्रण, पारदर्शिता और लाभप्रदता।

इस ढाँचे के जरिये, लेखक तीन मामलों के अध्ययन का विश्लेषण करके उन क्षेत्रों में चीन के सामरिक नियंत्रण का अनुमान लगाते हुए दिखाई दिए, जिन क्षेत्रों में चीन बीआरआई के तहत बंदरगाहों का निर्माण कर रहा है।पाकिस्तान में ग्वादर, श्रीलंका में हंबंटोटा, और कंबोडिया में कोह काँग।

अनौपचारिक चीनी रिपोर्टों का हवाला देते हुए लेखकों ने कहा कि बंदरगाहों को राजनीतिक प्रभाव बनाने और “सामरिक सहयोगक्षेत्र” बनाने के लिए चुना गया था। कथित तौर पर वे भारत-प्रशांत क्षेत्र में एक मजबूत चीनी पदचिह्न का केंद्र बिंदु होने का इरादा रखते हैं।

लेखकों ने कहा कि इन चीनी-वित्त पोषित बंदरगाहों और “चीनी फर्मों के अपारदर्शी व्यवहार” के प्रदर्शन से पता चला है कि वे बस अपने ही देश के हितों को साधने में लगे थे, क्योंकि वे ‘परोक्ष प्रयोजनों के अन्तर्निहित सूचकों को प्रकट करते हैं’।

पाकिस्तान

रिपोर्ट, इस्लामाबाद की “सुरक्षा दुविधाएं और डूबने की कीमत” के बारे में बताती है और आगे ये भी जोडती है कि जमीन पर चीनी कर्मी,“पाकिस्तान की आतंरिक सुरक्षा चिंताओं में बीजिंग की उपस्थिति को और गहरा कर रहे हैं।”
इसमें कोई रहस्य नहीं है कि पाकिस्तान में सत्ता की शक्ति प्रचंड रूप से चीन की ओर झुकने के साथ चीन का पाकिस्तान में प्रभाव अविश्वसनीय रूप से मजबूत है।

चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सीपीईसी) ने पाकिस्तान के लिए चीनी इरादों को एकदम पक्काकर दिया है। बीआरआई के मॉडल प्रकटीकरण के रूप में कल्पना की गई, कि ये गलियारा राजमार्गों, तेल पाइपलाइनों, ऊर्जा परियोजनाओं और औद्योगिक ग्रिड का नेटवर्क होगा।इसकी लागत, लगभग 62 अरब डॉलर, चीन द्वारा वहन की जाएगी।

सीपीईसी का एक हिस्सा, ग्वादर बंदरगाह अविकसित और लाभहीन है, भले ही यह एक दशक पुराना हो।

पाकिस्तान में एक पर्याप्त सैन्य उपस्थिति दर्ज करने को चीन के लिए, दरवाजे के अन्दर एक कदम के रूप में व्यापक तौर पर देखा जाता है।असत्यापित रिपोर्टों से पता चलता है कि चीन ग्वादर के पास पाकिस्तान में स्थायी वायु और नौसेना बेस का निर्माण कर रहा है। कथित तौर पर ग्वादर और जिबूती में तैनाती के लिए बीजिंग अपनी समुद्री सैन्य-दल की ताकत को 20,000 से 10,000 सैनिकों तक बढाने की प्रक्रिया में है। यह सीपीईसी के पीछे किसी भी “सैन्य इरादे” के चीन के अधिकारिक खंडन के बावजूद है।

पाकिस्तान के आर्थिक विकास को बढ़ावा देने के तरीके पर आंकड़े अविश्वसनीय हैं, क्योंकि कुछ विश्वसनीय अध्ययन मौजूद हैं। चीनी वित्त पोषण अधिकांशतः ऋण के माध्यम से है, और यदि इन्हें वापस नहीं चुकाया गया, तो पाकिस्तान “चीन के ऋण तले आ सकता है जैसा पहले कभी नहीं हुआ”। वास्तव में, स्टेट बैंक ऑफ़ पाकिस्तान के गवर्नर ने सार्वजानिक रूप से कहा कि सीपीईसी को और भी ज्यादा पारदर्शी होने की आवश्यकता है।

परियोजनाएं स्थानीय पाकिस्तानियों को नियोजित भी नहीं कर रही हैं, बल्कि कथित तौर पर चीनी कर्मचारियों की संख्या पाकिस्तान में बढ़ रही है।

श्रीलंका

हम्बनटोटा बंदरगाह का उपयोग कम ही किया जाता है।पाकिस्तान की तरह, श्रीलंका पर भी चीन का भारी कर्ज है।पिछले साल ऋण चुकाने में असमर्थ कोलंबो को बीजिंग को, ऋण राहत के लिए, रणनीतिक बंदरगाह को 99साल के पट्टे पर देने के लिए मजबूर होना पड़ा। चीनी सरकार ने हम्बनटोटा बंदरगाह में एक समान हिस्से के बदले में ऋण का एक अंश माफ़ कर दिया।

इस प्रकार, चीन ने श्रीलंका से पर्याप्त वित्तीय लाभ अर्जित किया।

C4ADS की रिपोर्ट के अनुसार, बीजिंग ने 2005 में श्रीलंका के साथ अपने संबंधों को सक्रिय रूप से विकसित करना शुरू कर दिया था। तब से 2014 के बीच में,यह जोड़ा गया कि चीन ने श्रीलंका को लगभग ७ अरब डॉलर का ऋण दिया था और जिन उपक्रमों को वे वित्त पोषण दे रहे थे वे “वैनिटी (बेफायदा) परियोजनाओं” के रूप में उल्लिखित हैं जो वास्तव में अर्थव्यवस्था को बढ़ावा नहीं देते।इसके अलावा, देश में चीनी परियोजनाओं से जुड़े कई समझौतों को चीन के पक्ष में “संशोधित” किया गया है।

अंत में, यह कर्ज राजपक्षे प्रशासन को नीचे लाया। “चीन से दूर भारत और पश्चिम की तरफ श्रीलंका को पुनर्व्यवस्थित करने के लिये मंच पर प्रचार करने के बाद 2015 में मैथिपाल सिरीसेना राष्ट्रपति बने।

सिरीसेना ने कई परियोजनाओं को निलंबित कर दिया था, लेकिन 2016 में 60 अरब डॉलर से ज्यादा का विदेशी स्वामित्व वाला कर्ज बढ़ रहा था। इसलिए सिरीसेना प्रशासन ने चीन को फिर से शामिल करना शुरू कर दिया।
बस शुरुवात है?

बंदरगाह बीआरआई का केवल एक आयाम हैं। लेखकों की रिपोर्ट के मुताबिक, रिपोर्ट के लिए नियोजित पैरामीटर को “दुनिया भर में चीनी-वित्त पोषित परियोजनाओं के लिए अनुकूलित और लागू हो सकते है”।

उदाहरण के लिए, 2016 में, राज्य के स्वामित्व वाली चीन महासागर शिपिंग कंपनी ने यूनानी बंदरगाह में बहुमत हासिल किया, जिससे चीन को यूरोप में एक आधार दिया गया। इसी तरह, चीन द्वारा संचालित एक उपग्रह ग्रहणक्षेत्र के आधार पर जल्द ही अर्जेंटीना में कार्या करेगा।

“अगर भारतीय राज्य भारत-प्रशांत के सबक पर ध्यान नहीं देते हैं, तो चीन एक सुरक्षा रणनीति का पीछा करना जारी रखेगा जो राजनीतिक रूप से असर पैदा करने के लिए बुनियादी ढांचे के निवेश का उपयोग करेगा, चुपके से बीजिंग की सैन्य उपस्थिति का विस्तार करेगा, और एक फायदेमंद और राणनीति से समबन्धित माहौल तैयार करेगा।” रिपोर्ट समाप्त हुई।

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