नई दिल्ली: भारत और चीन के बीच का विवाद एक ‘प्राचीन’ सीमा विवाद है, जिसके तहत बीजिंग अपनी क्षेत्रीय स्थिति को बढ़ाता रहेगा. लेकिन लंबे समय में चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग द्वारा नई दिल्ली के साथ सीमा समझौता करने के लिए रणनीतिक निर्णय लेने की संभावना बनी हुई है. ऑस्ट्रेलिया के पूर्व प्रधानमंत्री केविन रड ने ये बात कही है.
रड अब एक ग्लोबल गैर-सरकारी संगठन ‘एशिया सोसाइटी’ के अध्यक्ष हैं. उन्होंने दिप्रिंट के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि शी कभी भी ‘राजनयिक सुलह’ के लिए जल्द समझौता नहीं करेंगे, अब चाहे वह भारत, ताइवान या फिर दक्षिण चीन सागर के मामले में हो.
रड अपनी नई किताब, ‘द अवॉइडेबल वॉर: द डेंजर्स ऑफ ए कैटस्ट्रोफिक कॉन्फ्लिक्ट बिटवीन द यूएस एंड शी जिनपिंग्स चाइना’ को लॉन्च करने के लिए भारत आए हुए हैं. उन्होंने कहा, ‘यह एक प्राचीन सीमा विवाद है. यह 1962 के युद्ध से पहले का है. झोउ एनलाई (पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना के पहले प्रीमियर) और (पूर्व भारतीय पीएम) पंडित (जवाहरलाल) नेहरू ने सीमा समझौते की तरफ देखना शुरू किया था. 1962 के सीमा युद्ध ने उसे नष्ट कर दिया. यह 60 साल पहले की बात है.’
उन्होंने कहा: ‘हालिया समय में खासकर (राजनेता-सुधारक) डेंग शियाओपिंग और शी जिनपिंग के नेतृत्व के दौरान सीमा के पास जमीनी स्थिति धीरे-धीरे बदलती रही है. यह बदलाव चीन की समग्र क्षेत्रीय स्थिति को मजबूत करने की कवायद है.’
रड ने आगे कहा, ‘इसलिए मुझे चीन के सामान्य रणनीतिक व्यवहार से ऐसा कोई सबूत नहीं दिख रहा है कि वह चीन-भारतीय सीमा पर, दक्षिण चीन सागर में ताइवान पर या पूर्वी चीन सागर में एक राजनयिक समझौते की ओर जाने वाला है.’
हालांकि, उन्होंने भारत के साथ सीमा विवाद को खत्म करने के लिए शी की ओर से आने वाले पांच या दस सालों में रणनीतिक सुलह की ओर जाने की संभावना से इनकार नहीं किया है.
उन्होंने कहा, ‘मैं इस संभावना से इनकार नहीं करता कि लंबे समय में पांच या दस सालों के बाद शायद शी जिनपिंग एक रणनीतिक निर्णय पर पहुंच जाए. क्योंकि उनके लिए अन्य रणनीतिक कारणों से सीमा को अंततः हल करना बेहतर है… इसलिए, हमें इस संभावना से इनकार नहीं करना चाहिए. लेकिन यह एक पॉसिबिलिटी है, प्रोबेबिलिटी नहीं.’
भारत की एक हफ्ते की यात्रा पर आए रड ने यह भी कहा कि भारत ने आखिरकार महसूस कर लिया कि चीन उसकी मुख्य रणनीतिक चुनौती बना हुआ है और नई दिल्ली को इससे निपटने के लिए आगे बढ़ने के लिए प्रभावी कदम उठाने होंगे.
रड ने कहा, ‘भारत इस निष्कर्ष पर पहुंच गया है कि चीन के साथ उसकी प्रमुख रणनीतिक चुनौती बनी हुई है, चाहे वह चीन-भारत सीमा पर हो, चाहे वह कश्मीर पर हो, चाहे वह पाकिस्तान पर हो और चीन का इस्लामाबाद के साथ ऑल वेदर एलायंस हो या हिंद महासागर पर. ’ वह आगे कहते हैं कि मेरे हिसाब से इसी वजह से भारत की रणनीति अब ‘स्पष्ट’ होती जा रही है.
रूस-यूक्रेन युद्ध में भारत के रुख और इंडो-पैसेफिक पर इसके प्रभाव के संदर्भ में उन्होंने कहा, ‘भारत के रणनीतिक साझेदार स्पष्ट हो गए हैं और यह रूस के साथ तत्काल संबंधों को बिगाड़े बिना समय के साथ सामने आएंगे.’
उन्होंने कहा कि यही कारण है कि भारत क्वाड जैसी कई समुद्री सुरक्षा पहल के लिए जा रहा है. वह ऑस्ट्रेलिया, जापान और अमेरिका की नौसेनाओं- भारत के क्वाड पार्टनर्स के साथ मालाबार अभ्यास में भाग ले रहा है.
उन्होंने कहा, ‘जब आप भारतीय नौसेना और सैन्य खरीद के भविष्य के पैटर्न को देखते हैं, तो लंबे समय की आपूर्ति के मामले में अमेरिका की ओर झुकता हुआ पाएंगे.’
रड ने कहा, आने वाले समय को देखते हुए क्वाड ग्रुपिंग को एक ‘फ्लेक्सिबल व्हीकल’ के रूप में डिजाइन किया गया है और जब भी जरूरत होगी, उसे धीरे-धीरे प्रभावी ढंग से प्रभावी बनाया जाएगा.
रड ने बताया, ‘वह आने वाले समय में स्थितियों के मद्देनजर अपनी सेना का होरिजेंटल या वर्टिकल रूप से विस्तार कर सकता है.’
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‘चीन ने ताइवान पर हमला किया तो अमेरिका सैन्य जवाब देगा’
2010 से 2012 तक ऑस्ट्रेलिया के विदेश मंत्री रहे रड के अनुसार, अगर चीन ताइवान पर हमला करने का फैसला करता है तो जो बाइडन प्रशासन सैन्य रूप से जवाब देगा.
उन्होंने कहा, ‘ताइवान रिलेशन एक्ट (अमेरिका के) के तहत और अमेरिकी रणनीतिक सोच और इसकी घरेलू राजनीति के चलते, अगर चीन अपनी सैन्य ताकत से ताइवान के खिलाफ द्वीप लेने के लिए आगे बढ़ता है, तो मुझे लगता है कि इस बात की काफी ज्यादा संभावना है कि अमेरिका सैन्य और बल के साथ जवाब देगा.’
उन्होंने यह भी कहा कि ताइवान संकट और रूस-यूक्रेन युद्ध के बावजूद शी और रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन लंबे समय तक अपने पद पर बने रहेंगे.
रड के मुताबिक, शी को आगामी 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में चीनी कम्युनिस्ट पार्टी (सीसीपी) के ‘सर्वोच्च नेता’ के रूप में फिर से नियुक्त किया जाएगा. इस साल के अंत में इसके होने की उम्मीद है.
रड ने बताया, ‘मैं देख रहा हूं कि शी जिनपिंग 2030 के दशक के अंत तक पद पर बने रहने के लिए राजनीतिक रूप से मजबूत हैं. उन्हें पता है कि अगर वह इसे छोड़ते हैं, तो यह एक जोखिम होगा. क्योंकि जिन लोगों को उन्होंने पहले ही चीनी घरेलू राजनीति से अलग कर दिया है, वो उन्हें और उनके परिवार को हटा देंगे.’ उन्होंने कहा कि शी को तब तक कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा, जो धीमी आर्थिक विकास और बढ़ती आबादी से संबंधित हैं.
रड ने कहा, ‘हमें बीजिंग में शी जिनपिंग और मॉस्को में व्लादिमीर पुतिन की दीर्घकालिक राजनीतिक वास्तविकता के लिए अभ्यस्त होना होगा. मुझे लगता है कि बचे हुए 2020 और 2030 के दशक के दौरान ऐसा ही होने जा रहा है.’
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शी की ‘व्यापक कायाकल्प’ योजना और पीएलए सुधार
आने वाले दशकों में शी ‘व्यापक कायाकल्प‘ के लिए अपनी योजनाओं को आकार देने पर ध्यान केंद्रित करेंगे, जिसमें पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (पीएलए) का व्यापक आधुनिकीकरण भी शामिल है.
रड ने कहा, ‘और यह अन्य देशों के लिए कुछ ‘संरचनात्मक कठिनाइयां’ पैदा करेगा’.
शी की महत्वाकांक्षी योजनाओं के बाद पीएलए पर ऑस्ट्रेलिया के पूर्व पीएम ने कहा: ‘शी जिनपिंग की विश्वदृष्टि में चीनी सेना का आधुनिकीकरण प्रमुख महत्वाकांक्षाओं में से एक है. उन्होंने 2015 में पीएलए सुधार कार्यक्रम शुरू किया (और) संकेत दिया है कि वह इसे 2027 तक पूरा करना चाहते हैं. उसने चीन के मिलिट्री रीजन को सात से घटाकर पांच कर दिया (और) चीनी सशस्त्र सेवाओं के सभी चार क्षेत्रों- नौसेना, थल सेना, वायु सेना और अब सूचना और रसद के बीच एकीकृत संयुक्त अभियान तैयार करने के लिए एक बड़ा अभियान चल रहा है.’
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