थॉमस विडमैन, सस्टेनेबिलिटी रिसर्च के प्रोफेसर, यूएनएसडब्ल्यू सिडनी और अरुणिमा मलिक, सस्टेनेबिलिटी में वरिष्ठ व्याख्याता, सिडनी विश्वविद्यालय
सिडनी, 5 अप्रैल (द कन्वरसेशन) जलवायु परिवर्तन पर वैश्विक संगठन का कहना है कि ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने के लिए दुनिया के पास अभी तक का सबसे अच्छा मौका है, लेकिन सभी क्षेत्रों और देशों में कठोर और तेज़ कटौती की आवश्यकता है, ताकि वार्मिंग को सुरक्षित स्तर पर रखा जा सके।
आज जारी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट में कहा गया है कि 2014 में इस तरह के अंतिम आकलन के बाद से वैश्विक उत्सर्जन में कटौती करने के अवसरों में तेजी से वृद्धि हुई है। लेकिन कार्रवाई करने की आवश्यकता भी कहीं अधिक जरूरी हो गई है।
रिपोर्ट इस बात का निश्चित आकलन है कि बढ़ते तापमान का समाधान खोजने में दुनिया कितना अच्छा कर रही है। हम सभी ने रिपोर्ट में अपना विशेषज्ञ योगदान दिया।
यहां, हम रिपोर्ट के निष्कर्षों के प्रमुख पहलुओं की व्याख्या करने जा रहे हैं और यह भी बताएंगे कि ऑस्ट्रेलिया सहित दुनिया के लिए इसका क्या अर्थ है।
पृथ्वी रेड अलर्ट पर बनी हुई है
— ग्लेन पीटर्स, दीर्घकालिक लक्ष्यों के अनुकूल शमन पथ के प्रमुख लेखक
रिपोर्ट में पाया गया है कि दुनिया ने पिछले एक दशक में उत्सर्जन में कमी पर प्रगति की है। 2010 में ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में वृद्धि दर 1.3% प्रति वर्ष हो गई, जबकि 2000 के दशक में यह 2.1% थी।
लेकिन वैश्विक उत्सर्जन रिकॉर्ड ऊंचाई पर बना हुआ है। यदि नीतिगत महत्वाकांक्षा तुरंत नहीं बढ़ती है, तो वार्मिंग 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक हो जाएगी और तापमान वृद्धि को दो डिग्री से कम रखने का पेरिस समझौते का लक्ष्य पूरा नहीं हो पाएगा।
चिंताजनक रूप से, दुनिया की मौजूदा नीतियों ने हमें 80 वर्षों के भीतर ग्लोबल वार्मिंग के मार्ग पर 2.2 डिग्री सेल्सियस और 3.5 डिग्री सेल्सियस के बीच रखा है।
यह लगभग एक दशक पहले के 4 डिग्री सेल्सियस या उससे अधिक की आशंका से कहीं बेहतर है, लेकिन अभी भी पेरिस समझौते के अनुरूप नहीं है।
सदी के अंत तक ग्लोबल वार्मिंग को 1.5 डिग्री सेल्सियस तक रखने की 50% संभावना के लिए, वैश्विक सीओ2 उत्सर्जन एक दशक में आधा होना चाहिए, 2050 के दशक में शुद्ध शून्य तक पहुंचना चाहिए और उसके बाद शुद्ध नकारात्मक हो जाना चाहिए।
इन परिदृश्यों में मीथेन उत्सर्जन को भी 2050 तक आधा करना होगा।
आईपीसीसी का कहना है कि 2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को आधा करना व्यवहार्य और हासिल करने योग्य है। लेकिन इसके लिए सभी क्षेत्रों, देशों और सरकार के स्तरों पर जलवायु नीति में तत्काल परिवर्तन की आवश्यकता है।
अमीर देशों को उत्सर्जन में सबसे तेजी से कटौती करनी चाहिए।
इसमें ऑस्ट्रेलिया भी शामिल है, जहां 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन की योजना आवश्यक महत्वाकांक्षा से कम है और अभी तक नीति द्वारा समर्थित नहीं है।
—टॉमी विडमैन, उत्सर्जन प्रवृत्तियों और इसके कारकों पर प्रमुख लेखक
रिपोर्ट इस बात का व्यापक विश्लेषण है कि विनाशकारी जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए क्या किया जा सकता है – लेकिन ज्यादातर अभी तक नहीं किया गया है।
कुछ रुझान उत्साहजनक हैं। कुछ 36 देशों ने एक दशक से अधिक समय में सफलतापूर्वक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कटौती की है।
रिपोर्ट में पाया गया है कि 2014 के बाद से उत्सर्जन में किफायती तरीके से कटौती करने के अवसर कई गुना बढ़ गए हैं।
यह काफी हद तक नवीकरणीय ऊर्जा की घटती लागत के कारण है, जो विनिर्माण और भारी परिवहन जैसे क्षेत्रों में ऊर्जा क्षेत्र से परे उत्सर्जन में कमी का वादा करता है। हम यहां विकल्पों का विवरण दे रहे हैं।
लेकिन बदलाव इतनी तेजी से नहीं आ रहा है। रिपोर्ट पुष्टि करती है कि पिछले दशक में ऊर्जा दक्षता के जितने भी लाभ थे उन्हें आर्थिक और जनसंख्या वृद्धि ने पीछे छोड़ दिया है।
2030 तक वैश्विक उत्सर्जन को आधा करने के लिए, हमें उच्च कार्बन उत्पादों का उपयोग कम करना चाहिए और कम उत्सर्जन युक्त जीवन शैली अपनानी चाहिए। आईपीसीसी का कहना है।
ऑस्ट्रेलिया में अक्षय ऊर्जा संसाधनों का भंडार
बुद्धिमानी से उपयोग किया जाए तो यह घरेलू उत्सर्जन को कम कर सकता है और शून्य-उत्सर्जन ऊर्जा निर्यात के रूप में अन्य देशों के उत्सर्जन को कम करने में मदद कर सकता है।
कोई भी पीछे न छूटे
— अरुणिमा मलिक, इंट्रोडक्शन और फ्रेमिंग पर प्रमुख लेखक
2016 में, संयुक्त राष्ट्र सतत विकास लक्ष्य – लोगों, ग्रह और समृद्धि के लिए एक कार्य योजना – लागू किए गए।
सतत विकास भविष्य की पीढ़ियों से समझौता किए बिना वर्तमान की जरूरतों को पूरा करता है। और जैसा कि नवीनतम आईपीसीसी रिपोर्ट जोर देती है, इसे प्रभावी जलवायु कार्रवाई के बिना हासिल नहीं किया जा सकता है।
एक सतत विकास लक्ष्य स्पष्ट रूप से जलवायु परिवर्तन से निपटने पर केंद्रित है। लेकिन जलवायु कार्रवाई अन्य सभी लक्ष्यों से जुड़ी हुई है, जिनमें ऊर्जा, शहर, उद्योग, भूमि, पानी और लोगों से संबंधित लक्ष्य शामिल हैं।
उत्सर्जन में कमी की नीतियां समावेशी होनी चाहिए और मौजूदा गरीबी और भूख को बढ़ाने जैसे अनपेक्षित परिणामों से बचना चाहिए। कम कार्बन वाली दुनिया में संक्रमण न्यायसंगत होना चाहिए और किसी को भी पीछे नहीं छोड़ना चाहिए।
आईपीसीसी की रिपोर्ट में त्वरित जलवायु कार्रवाई और न्यायोचित परिवर्तन दोनों का आह्वान किया गया है।
इसके लिए सरकार के सभी स्तरों पर और सभी क्षेत्रों में अच्छी तरह से तैयार की गई नीतियों की आवश्यकता है। अंतर्राष्ट्रीय सहयोग जरूरी है।
क्या पेरिस समझौता काम कर रहा है?
— जैकलीन पील, अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर प्रमुख लेखक
यह रिपोर्ट 2020 से प्रभावी पेरिस समझौते का आकलन करने वाली पहली है। समझौते के तहत, देश उत्सर्जन में कमी और बदलती जलवायु के अनुकूल होने के बारे में अपने संकल्प प्रस्तुत करते हैं और इस दिशा में उठाए गए कदमों की जानकारी देते हैं।
विश्व स्तर पर इन प्रतिज्ञाओं को पूरा करने के लिए, उच्च आय वाले देशों को वित्त, स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों तक पहुंच, और अन्य सहायता और जानकारी प्रदान करके अन्य देशों की सहायता करनी चाहिए।
पेरिस समझौता एक संधि है लेकिन प्रतिज्ञाएं स्वैच्छिक हैं। देश अपने लक्ष्य निर्धारित करते हैं और उन्हें इन्हें पूरा करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है। तो, क्या यह काम कर रहा है? इस नई रिपोर्ट के मुताबिक, यह काफी हद तक काम कर रहा है- हालांकि धीरे-धीरे। उदाहरण के लिए, इसने ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों को अधिक महत्वाकांक्षी उत्सर्जन प्रतिज्ञा करने के लिए प्रोत्साहित किया है।
इसने पारदर्शिता को भी बढ़ाया है, जिससे बाहरी समूहों, जैसे कि नागरिक समाज में, को देशों की प्रगति का आकलन करने में सक्षम बनाया गया है।
अन्य अंतरराष्ट्रीय तंत्र, जैसे कि वैश्विक व्यापार भागीदारी और युवा जलवायु विरोध, भी बदलाव ला रहे हैं।
लेकिन इस दशक में उत्सर्जन को आधा करने के लिए और बहुत कुछ किया जाना चाहिए।
यह नवीनतम रिपोर्ट दिखाती है कि हम अभी जो चुनाव करते हैं, वे आने वाली पीढ़ियों के भाग्य और इस ग्रह पर तमाम तरह के जीवन के भाग्य का निर्धारण करेंगे।
पृथ्वी की जलवायु को स्थिर करने के लिए मानवता पहले ही कई अवसरों से चूक चुकी है। अब हमारे पास उन पिछली गलतियों में से कुछ को ठीक करने का मौका है।
आज से ही सभी क्षेत्रों और राष्ट्रों में एक तत्काल, ठोस प्रयास ही आवश्यक परिवर्तन की दिशा निर्धारित करेगा।
द कन्वरसेशन एकता एकता
एकता
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