scorecardresearch
Friday, 21 November, 2025
होमविदेशदुनिया को मिलकर जलवायु संबंधी वित्त को बढ़ाने की जरूरत: सीओपी में भारत

दुनिया को मिलकर जलवायु संबंधी वित्त को बढ़ाने की जरूरत: सीओपी में भारत

Text Size:

(त्रिदीप लहकर)

बेलेम (ब्राजील), 21 नवंबर (भाषा) पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने यहां कहा कि भारत जलवायु कार्रवाई के हिस्से के तौर पर घरेलू अनुकूलन के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन वैश्विक खाई बढ़ने के चलते जलवायु अनुकूलन संबंधी वित्त को बढ़ाने की जरूरत है।

यादव ने यह भी कहा कि जलवायु संबंधी वार्षिक शिखर सम्मेलन ‘सीओपी 30’ को एक साफ राजनीतिक संदेश देना चाहिए कि ‘‘अनुकूलन कोई वैकल्पिक उपाय नहीं, बल्कि एक जरूरी निवेश है।”

उन्होंने जारी ‘यूएन सीओपी 30’ शिखर सम्मेलन में बृहस्पतिवार को अनुकूलन पर ‘बाकू उच्चस्तरीय संवाद’ में अपने संबोधन के दौरान कहा, ‘‘वर्ष 2025 की अनुकूलन अंतराल रिपोर्ट का अनुमान है कि विकासशील देशों को 2035 तक सालाना 310-365 अरब अमेरिकी डॉलर की जरूरत होगी, जबकि अभी केवल 26 अरब अमेरिकी डॉलर मिल रहे हैं।’’

यादव ने चिंता जताई कि अगर मौजूदा रुझान जारी रहा तो सार्वजनिक अनुकूलन वित्त को 2019 के स्तर से दोगुना करके 2025 तक लगभग 40 अरब अमेरिकी डॉलर करने का ‘ग्लासगो जलवायु समझौते’ का लक्ष्य शायद पूरा नहीं हो पाएगा।

पर्यावरण मंत्री ने कहा, ‘‘बाकू से बेलेम रोडमैप में बताए गए 1.3 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर के स्तर तक जलवायु वित्त को बढ़ाने के लिए दुनिया भर को मिलकर कोशिश करनी होगी।’’

उन्होंने अनुकूलन वित्त तक पहुंचने में भारत की कोशिशों और अनुभवों, विकासशील देशों के सामने आने वाली रुकावटों और अनुकूलन संबंधी महत्वाकांक्षा को बढ़ाने के लिए जरूरी दुनिया भर में उठाए जाने वाले कदमों पर रोशनी डाली।

पेरिस समझौते की 10वीं वर्षगांठ पर उन्होंने अनुच्छेद 7.6 के महत्व पर जोर दिया, जो असरदार अनुकूलन कार्रवाई करने में विकासशील देशों का समर्थन करने पर जोर देता है।

वर्ष 2015 के पेरिस समझौते का मकसद वैश्विक स्तर पर ग्रीनहाउस गैस के उत्सर्जन को काफी कम करना है ताकि वैश्विक ताप में बढ़ोतरी को दो डिग्री सेल्सियस से काफी नीचे रखा जा सके और इसे पूर्व औद्योगिक स्तर (वर्ष 1850-1900 तक को आधार मानकर) से 1.5 डिग्री सेल्सियस ऊपर तक सीमित रखने की कोशिश की जा सके।

‘यूनाइटेड नेशंस फ्रेमवर्क कन्वेंशन ऑन क्लाइमेट चेंज’ (यूएनएफसीसीसी) के सालाना ‘कॉन्फ्रेंस ऑफ पार्टीज’ (सीओपी) के 30वें शिखर सम्मेलन (सीओपी 30 समिट) के लिए यहां एकत्र हुए 190 से अधिक देशों के वार्ताकार सम्मेलन का समापन करीब आने पर मेजबान ब्राजील के एक मसौदा प्रस्ताव को अंतिम रूप दे रहे हैं।

मंत्री ने वैश्विक खाई बढ़ने के साथ जलवायु वित्त बढ़ाने की तुरंत जरूरत पर जोर दिया और संबंधित चुनौतियों के बावजूद, उन्होंने अनुकूलन के प्रति भारत की मजबूत घरेलू प्रतिबद्धता की पुष्टि की।

उन्होंने कहा कि भारत घरेलू संसाधनों के समर्थन से राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर योजना के जरिए अनुकूलन को मुख्य धारा में शामिल करना जारी रखे हुए है।

मंत्री ने कहा, “सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के प्रतिशत के तौर पर, भारत का अनुकूलन से जुड़ा खर्च 2016-17 से 2022-23 तक सात साल में 150 प्रतिशत से अधिक बढ़ गया। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत ने मान्यता प्राप्त संस्थाओं की तैयारी में मदद और संस्थागत क्षमता निर्माण के जरिए जलवायु वित्त तक पहुंच की अपनी क्षमता को मजबूत किया है।’’

जलवायु संबंधी वित्त में आने वाली रुकावटों पर जोर देते हुए उन्होंने ‘मल्टीलेटरल क्लाइमेट फंड’ से जुड़ी मुश्किल और धीमी प्रक्रिया की ओर इशारा किया। उन्होंने इस संदर्भ में लेन-देन की अधिक लागत, सीमित संस्थागत क्षमता के कारण होने वाली देरी, स्पष्ट आय का अभाव और अपर्याप्त जोखिम साझा करने वाले उपकरण के कारण निजी वित्त में बाधा का जिक्र किया।

जुलवायु वित्त का मतलब स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतरराष्ट्रीय वित्त पोषण से है – जो वित्तपोषण के लिए सार्वजनिक, निजी और दूसरे स्रोतों से लिया जाता है।

यादव ने भारत के इस सिद्धांत पर जोर दिया कि अनुकूलन देश के हिसाब से होना चाहिए और यह लिंग आधारित, समावेशी तथा विज्ञान एवं पारंपरिक ज्ञान पर आधारित होना चाहिए।

उन्होंने जोर दिया कि सीओपी 30 को यह स्पष्ट राजनीतिक संदेश देना चाहिए कि अनुकूलन कोई वैकल्पिक चीज नहीं, बल्कि एक जरूरी निवेश है।

पर्यावरण मंत्री ने कहा कि अनुकूलन और शमन पेरिस समझौते के पूरक स्तंभ हैं और अनुकूलन वैश्विक लक्ष्य (जीजीए) की दिशा में प्रगति देश के हिसाब से तय होनी चाहिए।

भाषा संतोष नेत्रपाल

नेत्रपाल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

share & View comments