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Friday, 22 November, 2024
होमविदेशजर्मनी के राजदूत लिंडनर का बयान- 'यदि नियमों पर आधारित व्यवस्था को चुनौती दी जाती है तो चुप नहीं बैठेंगे'

जर्मनी के राजदूत लिंडनर का बयान- ‘यदि नियमों पर आधारित व्यवस्था को चुनौती दी जाती है तो चुप नहीं बैठेंगे’

दिप्रिंट के साथ एक विशेष साक्षात्कार में, भारत में जर्मन राजदूत ने कहा कि मुंबई में जर्मन युद्धपोत 'बायर्न’ का पोर्ट कॉल इंडो-पैसिफिक क्षेत्र के महत्व को दर्शाता है.

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नई दिल्ली: भारत में जर्मन राजदूत वाल्टर जे. लिंडर का कहना है कि बर्लिन और बीजिंग के बीच व्यापार संबंध मजबूत बने हुए हैं, लेकिन चीन अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था में एक ‘व्यस्थागत प्रतिद्वंद्वी’ (सिस्टमिक राइवल) बना हुआ है और इस वजह से जर्मनी नियम-आधारित वैश्विक व्यवस्था के लिए अपनी मांग बनाये रखेगा.

एक तरफ जहां बर्लिन अपनी इंडो पसिफ़िक पॉलिसी (भारत-प्रशांत नीति) के प्रति अपने दृष्टिकोण को आगे बढ़ाने के लिए तैयार है और चीन को एक मजबूत संकेत भेज रहा है, वहीँ जर्मन युद्धपोत ‘बायर्न’ ने अपनी दुर्लभ मानी जाने वाली भारत यात्रा के तहत शुक्रवार को मुंबई बंदरगाह पर अपना लंगर डाला.

लिंडनर ने एक विशेष साक्षात्कार में दिप्रिंट को बताया, ‘जर्मनी के साथ-साथ यूरोपीय संघ के लिए भी चीन कुछ पहलुओं के सन्दर्भ में एक प्रमुख भागीदार है. व्यापारिक संबंध मजबूत रहे हैं और अभी भी मजबूत हीं हैं. इसके अलावा, जलवायु परिवर्तन जैसी कुछ महत्वपूर्ण वैश्विक चुनौतियों से निपटने के लिए चीन के साथ की आवश्यकता है. लेकिन, निस्संदेह रूप से चीन एक आर्थिक प्रतियोगी भी है और इससे भी महत्वपूर्ण रूप से वह अंतरराष्ट्रीय नियम-आधारित व्यवस्था में एक ‘व्यस्थागत प्रतिद्वंद्वी’ है.’

लिंडनर ने कहा, ‘हमारे बीच मूल्यों के साथ-साथ हमारे हितों में भी काफी अंतर है.’ वे कहते हैं, ‘यह एकदम से स्पष्ट है कि हम उस वक्त जरूर आवाज उठाएंगे जब नेविगेशन की स्वतंत्रता और नियम-आधारित वयस्था पर सवाल उठाया जाएगा या इसका किसी तरह को कोई परीक्षण किया जाएगा. सभी देशों को ‘शक्ति के कानून’ (लॉ ऑफ़ पावर) को ‘कानून की शक्ति’ (पावर ऑफ़ लॉ ) से ऊपर नहीं रखना चाहिए.’

मुंबई में ‘बायर्न’ के पोर्ट कॉल (बंदरगाह पर ठहराव) के बारे में बोलते हुए, लिंडनर ने कहा कि यह ‘भारत के साथ जर्मनी के मजबूत होते संबंध और हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बढ़ते महत्व – राजनीतिक और आर्थिक दोनों रूप से – को दर्शाता है.

लिंडनर ने कहा, ‘जर्मनी और भारत दोनों व्यापारिक राष्ट्र हैं और व्यापार के माध्यम से अपने ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट (सकल राष्ट्रीय उत्पाद) का एक बड़ा हिस्सा उत्पन्न करते हैं. मुक्त व्यापार, जो खुले समुद्री मार्गों और नियमों पर आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के लिए सम्मान और हिमायत पर आधारित हो, बहुत सारे रोजगार पैदा करता है. इसी में जर्मनी के अपने समुद्री हित निहित हैं जिन्हें हम भारत के साथ साझा करते हैं.’

जर्मन राजदूत के अनुसार, इस तरह के कदम से मिलने वाले ‘संकेत’ एकदम स्पष्ट हैं.

उन्होंने कहा, ‘विवादों को शांति के साथ और अंतरराष्ट्रीय कानून के आधार पर हल किया जाना चाहिए. अगर इस नियम-आधारित व्यवस्था को चुनौती दी जाती है तो हम चुप नहीं बैठेंगे. हम इस दृढ़ विश्वास को इस क्षेत्र के कई शक्तिशाली भागीदारों के साथ साझा करते हैं – हमारे रणनीतिक साझेदार और लोकतांत्रिक मित्र के रूप में न सिर्फ भारत के साथ, बल्कि जापान और ऑस्ट्रेलिया जैसे कई अन्य देशों के साथ भी, जहां ‘बायर्न’ ने अपनी इस क्षेत्र की यात्रा के दौरान पिछले छह महीनों में पोर्ट कॉल्स किए हैं.’

अगस्त 2021 में अपनी यात्रा आरम्भ करने वाला ब्रैंडेनबर्ग-क्लास का यह फ्रिगेट भारत पहुंचने से पहले दक्षिण चीन सागर से होकर गुजरा. इसने उत्तर कोरिया के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रतिबंधों की निगरानी में भी भाग लिया.

फ़िलहाल बायर्न एक गश्ती और प्रशिक्षण मिशन पर है, और फरवरी में जर्मनी लौटेगा. भारत इस यात्रा में उसका अंतिम पड़ाव है.

‘नियमित यात्रा से कहीं अधिक महत्व वाला’

लिंडनर के अनुसार, बायर्न द्वारा मुंबई में लंगर डाला जाना ‘निश्चित रूप से एक नियमित यात्रा से अधिक महत्व का है’.

उन्होंने कहा, ‘भारत और जर्मनी की सेनाओं के सदस्यों के बीच नियमित रूप से परामर्श होता रहता है. इसके अलावा, जर्मनी इस क्षेत्र में कई सैन्य अभ्यासों – द्विपक्षीय के साथ-साथ बहुपक्षीय भी – में भाग ले रहा है. भारत के साथ दो आगामी अभ्यास, एक अगस्त में और एक आने वाले दिनों के लिए निर्धारित, इस मामले में एक मजबूत पड़ाव हैं.’

उन्होंने आगे कहा, ‘भारत और जर्मनी के बीच सैन्य सहयोग मजबूत है तथा और आगे बढ़ रहा है. क्षेत्र में सुरक्षा, न सिर्फ भारत और जर्मनी में बल्कि हिंद-प्रशांत और यूरोपीय संघ में भी, सभी की समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है.‘


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भारत-यूरोपीय संघ व्यापार सौदे से होगा ‘लाभ’

जर्मन राजदूत का यह भी मानना है कि दो प्रमुख व्यापारिक साझेदारों के रूप में, नई दिल्ली और बर्लिन को भारत और यूरोपीय संघ (ईयू) के बीच काफी समय से लंबित मुक्त व्यापार समझौते (फ्री ट्रेड एग्रीमेंट- एफटीए) के लिए बातचीत में प्रगति की राह खोजनी करनी चाहिए.

लिंडनर ने कहा, ‘जब हमारी विदेश नीति के मार्गदर्शक सिद्धांतों – शांतिपूर्ण ढंग से संघर्षों को हल करने और खुले और मुक्त व्यापार की तलाश करने – की बात आती है तो भारत और जर्मनी एक साथ मिलकर खड़े पाएं जाते हैं. इसी वजह से हम आने वाले कुछ महीनों में भारत और यूरोपीय संघ के बीच मुक्त व्यापार वार्ता में प्रगति की उम्मीद करते हैं.’

उन्होंने कहा कि इस एफटीए, जिसके लिए वार्ता 2007 में शुरू हुई थी, को सफलतापूर्वक पूरा किये जाने से भारत की सागर (सिक्योरिटी एंड ग्रोथ फॉर आल इन द रीजन) रणनीति – जो बेहतर कनेक्टिविटी और समावेशी विकास की बात करती है – को भी समर्थन मिलता है.‘

उन्होंने अपनी बात पर जोर देते हुए कहा, ‘निश्चित रूप से निवेश भी उतना ही महत्वपूर्ण है. हमारे मजबूत द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों से परे, यूरोपीय संघ का नया ‘ग्लोबल गेटवे’ कार्यक्रम निवेश के कई ऐसे अवसर प्रदान करता है जो निष्पक्ष और पारदर्शी हैं.’

लिंडनर ने कहा कि भारत और जर्मनी के बीच अगले छह महीनों में इंटर-गवर्नमेंटल कंसल्टेशन (सरकारी स्तर पर आपसी परामर्श) का अगला दौर होने जा रहा है. नए जर्मन चांसलर ओलाफ स्कोल्ज़, जिन्होंने पिछले महीने एंजेला मर्केल से पदभार संभाला था, के शासन काल के तहत दोनों देशों के बीच इंटर-गवर्नमेंटल कंसल्टेशन का यह पहला दौर होगा.

इस महीने की शुरुआत में चांसलर ओलाफ और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपस में टेलीफोन पर बात की थी.

राजदूत लिंडनर ने कहा, ‘यूरोप की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में जर्मनी और एशिया के लोकतांत्रिक और आर्थिक महाशक्ति के रूप में भारत एक साथ आने पर मजबूत होते हैं. अंतरराष्ट्रीय चुनौतियों से निपटने के दौरान हमारी काफी सारी रणनीतिक सोच एक समान है – अफगानिस्तान में आगे का रास्ता, अफ्रीका में सहयोग, समुद्री डकैती विरोधी अभियान, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार, इनमें से कुछ गिनाये जा सकने वाले नाम हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें )

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