(एमी ग्रांट, स्वानसी विश्वविद्यालय)
स्वानसी(ब्रिटेन), 11 अप्रैल (द कन्वरसेशन) दुनिया भर में दशकों से ऑटिज्म के प्रतीक के रूप में ‘जिगसॉ पजल’ के टुकड़े का इस्तेमाल किया जाता रहा है। इसका इस्तेमाल धर्मार्थ लोगो और जागरूकता रिबन के लिए किया गया है, और यहां तक कि अभिभावक संवेदनशीलता प्रदर्शित करने के लिए अपने शरीर पर इसका टैटू भी बनवाते हैं।
लेकिन ऑटिज्म से ग्रस्त कई वयस्कों के लिए, टुकड़ों को जोड़कर पहेली सुलझाने का यह प्रतीक न केवल पुराना बल्कि अपमानजनक भी है। कुछ लोग इसे नफरत का प्रतीक मानते हैं, जो यह याद दिलाता है कि कैसे ऑटिस्टिक लोगों को लंबे समय से गलत समझा गया है, उन्हें विकृत माना गया है और उन्हें अपने जीवन के बारे में बातचीत से बाहर रखा गया है।
पहली बार यह पहेली खिलौना 1963 में सामने आया था, जब ब्रिटेन की नेशनल ऑटिस्टिक सोसाइटी ने एक ऑटिज्म से ग्रस्त बच्चे के सामान्य माता-पिता द्वारा डिजाइन किए गए लोगो को अपनाया था। इसमें न केवल टुकड़ों में बंटी पहेली थी बल्कि इसे जोड़ने पर एक रोते हुए बच्चे की छवि दिखाई देती थी, जिसका उद्देश्य ऑटिज्म को एक ऐसी रहस्यमय स्थिति के रूप में दर्शाना था जो पीड़ा का कारण बनती है।
ऑटिज्म सोसाइटी ऑफ अमेरिका ने 1999 में रंगीन पहेली खिलौने (इसमें कोई आकृति तस्वीर टुकड़ों में होती है और उसे खेलने वालों को जोड़ना होता है) से ढका एक रिबन पेश किया। इसने इस विचार को पुष्ट किया कि ऑटिज्म एक ऐसी चीज है जिसका समाधान किया जाना चाहिए। इस छवि को और भी अधिक प्रमुखता तब मिली जब 2005 में स्थापित अमेरिका स्थित संगठन ऑटिज्म स्पीक्स ने अपने लोगो के रूप में एक नीले रंग के पहेली खिलौने को अपनाया।
ऑटिज्म अधिकारों की वकालत करने वाले एक व्यक्ति ने इस प्रतीक को चेतावनी संकेत के रूप में इस्तेमाल करने वाला ‘लाल झंडा’ बताया जिसमें व्यक्ति या संगठन ऑटिज्म से ग्रस्त लोगों का पूरी तरह से सम्मान नहीं करते या उन्हें समझते नहीं है।
तो फिर पहेली खिलौने के प्रति इतनी मुखर प्रतिक्रिया क्यों है?
कई लोगों के लिए, यह प्रतीक यह संकेत देता है कि ऑटिस्टिक लोग अधूरे हैं, एक रहस्य हैं या एक समस्या है जिसे ठीक करने की आवश्यकता है। यह ऑटिज्म के चिकित्सा मॉडल के साथ मेल खाता है, जो कमियों पर ध्यान केंद्रित करता है और ऑटिज्म से ग्रस्त लोगों को वैसे ही जीने देने के बजाय सामान्य लोगों की तरह व्यवहार करने लायक बनाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
कमी से अंतर तक
चिकित्सा मॉडल की इन आलोचनाओं के कारण, कुछ ऑटिस्टिक लोग ऑटिज्म के सामाजिक मॉडल को मानते हैं। यह ऑटिज्म को ठीक की जाने वाली समस्या के रूप में नहीं, बल्कि समझने में अंतर के रूप में देखते हैं। इस दृष्टिकोण के अनुसार, ऑटिस्टिक लोगों के सामने आने वाली कई चुनौतियां ऑटिज्म से नहीं, बल्कि समाज में समझ और स्वीकृति की कमी से उत्पन्न होती हैं।
ऑटिज्म पर अनुसंधान करने वाले वाले ऐसे अनुसंधानकर्ताओं की संख्या बढ़ती जा रही है जो सामाजिक मॉडल का अनुसरण करते हैं, जिसमें ‘पार्टिसिपेटरी ऑटिज्म रिसर्च कलेक्टिव’ भी शामिल है। वेल्श सरकार ने 2022 में दिव्यांगता के सामाजिक मॉडल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दोहराई थी।
हालांकि, सीमित संसाधन वाली स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों में दिव्यांगता के इस सामाजिक मॉडल को व्यवहार में लाना कठिन हो सकता है।
यह ‘‘दोहरी सहानुभूति समस्या’’ से बहुत करीब से जुड़ा हुआ है। यह विचार है कि ऑटिस्टिक और गैर-ऑटिस्टिक लोगों के बीच संचार टूटना दोनों तरफ से होता है। दूसरे शब्दों में, अगर ऑटिस्टिक लोग ‘‘परेशान’’ हैं, तो अक्सर ऐसा इसलिए होता है क्योंकि व्यापक दुनिया ने उन्हें समझने के लिए समय नहीं निकाला।
‘न्यूरोडाइवर्सिटी आंदोलन’ (एक सामाजिक न्याय आंदोलन जो तंत्रिका संबंधी भिन्नता वाले लोगों के समावेशन और स्वीकृति की वकालत करता है)एक कदम आगे जाकर यह दलील देता है कि ऑटिज्म, एडीएचडी और डिस्लेक्सिया जैसे तंत्रिका तंत्र अंतर मानव आबादी में प्राकृतिक भिन्नताएं हैं। जिस तरह जैव विविधता पर्यावरण के लिए अच्छी है, उसी तरह ‘न्यूरोडाइवर्सिटी’ भी समाज के लिए अच्छी है।
हाल के वर्षों में,ऑटिज्म संबंधी कई प्रमुख संगठनों ने पहेली खिलौने से खुद को दूर रखने के लिए कदम उठाए हैं।
नेशनल ऑटिस्टिक सोसाइटी ने 2000 के दशक की शुरुआत में इस प्रतीक को हटा दिया था, और ऑटिज्म सोसाइटी ऑफ अमेरिका ने 2023 में इसका अनुसरण किया। ‘अकादमिक जर्नल ऑटिज्म’ ने इसके हानिकारक अर्थों को देखते हुए 2018 में अपने कवर से पहेली खिलौने की तस्वीर हटा दी थी।
ऐसा कहा जाता है कि, यह प्रतीक अभी भी अक्सर प्रयोग किया जाता है, तथा सर्च इंजन और छवि डेटाबेस में दिखाई देता है।
अनुसंधान में पाया गया कि पहेली खिलौने की तस्वीर अधूरेपन और अपूर्णता जैसे नकारात्मक जुड़ावों को इंगित करती हैं, चाहे वह ऑटिज्म से जुड़ी हो या नहीं। इसलिए, यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि कई ऑटिस्टिक लोग कुछ ज़्यादा सकारात्मक, सम्मानजनक और समावेशी चीज़ की मांग करते हैं।
एक लोकप्रिय विकल्प इंद्रधनुषी प्रतीक है, जिसे पहली बार 2005 में ऑटिस्टिक समर्थकों द्वारा विकसित किया गया था। यह ऑटिस्टिक लोगों सहित ‘तंत्रिका तंत्र के आधार पर विविधता’ वाले समुदाय की विविधता का प्रतिनिधित्व करता है।
(द कन्वरसेशन) धीरज नरेश
नरेश
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