नई दिल्ली: श्रीलंका के इतिहास में पहली बार, पूर्व राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे को शुक्रवार को देश की आपराधिक जांच विभाग (सीआईडी) ने गिरफ्तार किया है. उन पर 2023 में राष्ट्रपति रहते हुए लंदन की निजी यात्रा के दौरान सरकारी धन का दुरुपयोग करने का आरोप लगाया गया है.
76 साल के विक्रमसिंघे, जनथा विमुक्ति पेरामुना (जेवीपी) गठबंधन की अगुवाई वाली नई वामपंथी सरकार की भ्रष्टाचार विरोधी मुहिम में हिरासत में लिए गए सबसे बड़े विपक्षी नेता हैं. हालांकि, दिन में बाद में उन्हें अदालत से ज़मानत मिल गई.
जांच के केंद्र में 22–23 सितंबर 2023 को विक्रमसिंघे और उनकी पत्नी प्रोफेसर मैथ्री विक्रमसिंघे की लंदन यात्रा है. वे वहां यूनिवर्सिटी ऑफ वॉल्वरहैम्प्टन के दीक्षांत समारोह में शामिल हुए थे.
यह यात्रा क्यूबा और अमेरिका के आधिकारिक दौरों का हिस्सा बताई गई थी. क्यूबा में विक्रमसिंघे ने जी77 शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया था, लेकिन पुलिस का कहना है कि लंदन यात्रा का कोई आधिकारिक मकसद नहीं था और यह एक निजी दौरा था, जिसके खर्चे जनता के पैसे से किए गए.
स्थानीय रिपोर्टों के अनुसार, पुलिस ने कोलंबो फोर्ट मजिस्ट्रेट कोर्ट को बताया कि इस यात्रा पर सरकार का लगभग 16.9 मिलियन श्रीलंकाई रुपये खर्च हुआ. इसमें 10 सदस्यीय दल और पूर्व राष्ट्रपति की सुरक्षा टीम के खर्च शामिल थे.
विक्रमसिंघे का कहना है कि उनकी पत्नी ने अपने खर्च खुद उठाए और किसी सरकारी धन का दुरुपयोग नहीं हुआ. उनके कार्यालय ने इन रिपोर्टों को “झूठा और भ्रामक” बताया है और कहा है कि कानूनी परामर्श के बाद औपचारिक बयान जारी किया जाएगा.
यह भी ध्यान देने योग्य है कि जेवीपी-नेतृत्व वाली श्रीलंकाई सरकार ने इस साल मार्च में बतलांडा टॉर्चर केस को फिर से खोला था, जिसमें विक्रमसिंघे पर जेवीपी कार्यकर्ताओं के खिलाफ राज्य बल का इस्तेमाल करने का आरोप है.
कैसे हुई गिरफ्तारी
यूनाइटेड नेशनल पार्टी (यूएनपी) के नेता ने जुलाई 2022 में राष्ट्रपति पद संभाला था. उन्होंने गोटाबाया राजपक्षे का कार्यकाल पूरा किया था, जिन्हें जनआंदोलन के बाद इस्तीफा देना पड़ा था. हालांकि, पिछले साल हुए कड़े मुकाबले वाले चुनाव में वे अनुरा कुमारा दिसानायके से हार गए, फिर भी विक्रमसिंघे एक अहम विपक्षी चेहरा बने रहे, भले ही उनकी पार्टी के पास 225 सदस्यीय संसद में सिर्फ चार सीटें थीं.
शुक्रवार सुबह, विक्रमसिंघे स्वेच्छा से कोलंबो स्थित सीआईडी मुख्यालय पहुंचे ताकि बयान दर्ज करवा सकें. थोड़ी देर बाद उन्हें हिरासत में ले लिया गया. पुलिस का कहना है कि उनकी गिरफ्तारी नए सबूतों और गवाहियों के आधार पर हुई है. इनमें उनके पूर्व राष्ट्रपति सचिव समन एकनायके और निजी सचिव सैंड्रा परेरा की गवाही भी शामिल है, जिनसे पिछले महीने इस मामले में पूछताछ हुई थी.
विक्रमसिंघे की गिरफ्तारी अभूतपूर्व है क्योंकि श्रीलंका में पहले भी राजनीतिक घोटाले और वित्तीय गड़बड़ियों के आरोप लगते रहे हैं, लेकिन वरिष्ठ नेताओं पर कभी कानूनी कार्रवाई नहीं हुई थी. अब वे हाल के वर्षों में गिरफ्तार होने वाले सबसे वरिष्ठ राजनीतिक नेता बन गए हैं.
यह गिरफ्तारी देश की राजनीतिक संस्कृति में बदलाव का संकेत हो सकती है, जो पारदर्शिता और कानूनी जवाबदेही की ओर कड़े रुख की झलक देती है. खासकर 2022 की आर्थिक तबाही के बाद, जब लाखों लोग सड़कों पर उतरे थे.
इससे मौजूदा प्रशासन पर दबाव भी बढ़ा है. राष्ट्रपति दिसानायके, जो सितंबर 2024 में चुने गए थे, उन्होंने भ्रष्टाचार विरोधी एजेंडे पर चुनाव लड़ा था. अब सबकी निगाहें इस केस को लेकर उनकी सरकार के रुख पर हैं.
सरकार पहले ही कई प्रमुख विपक्षी नेताओं को जेल भेज चुकी है. कुछ को भ्रष्टाचार के मामलों में 25 साल तक की सज़ा मिली है. पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे के परिवार के कई सदस्य भी सार्वजनिक धन के दुरुपयोग के मामलों में मुक़दमे का सामना कर रहे हैं और कई ज़मानत पर बाहर हैं.
इसी महीने की शुरुआत में सरकार ने पुलिस प्रमुख देशबंधु टेन्नकून को बर्खास्त कर दिया था. उन पर राजनीतिक रिश्तों वाले आपराधिक नेटवर्क चलाने का आरोप था. वहीं जेल विभाग के प्रमुख को भी भ्रष्टाचार के मामले में दोषी ठहराया गया और जेल भेज दिया गया.
विक्रमसिंघे और बतलांडा मामला
श्रीलंकाई राजनीति की एक बड़ी शख्सियत, विक्रमसिंघे ने छह बार प्रधानमंत्री और जुलाई 2022 से नवंबर 2024 तक राष्ट्रपति के रूप में काम किया है. उन्होंने राष्ट्रपति पद उस समय संभाला था जब बड़े पैमाने पर हुए प्रदर्शनों ने तत्कालीन राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे को सत्ता से बाहर कर दिया था. यह दौर देश की सबसे बड़ी आर्थिक मंदी में से एक था.
हालांकि, उन पर मौजूदा आरोप लगे हैं, लेकिन 2022 की सबसे गंभीर आर्थिक संकट से देश को निकालने का श्रेय भी उन्हें दिया जाता है. 2023 की शुरुआत में उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ) से 2.9 अरब डॉलर का बेलआउट पैकेज हासिल किया और बड़े पैमाने पर सख्त कदम उठाए. इसमें भारी कर वृद्धि और ऊर्जा सब्सिडी खत्म करना शामिल था, ताकि सरकारी राजस्व बढ़ाया जा सके और वित्तीय स्थिरता लाई जा सके, लेकिन उनके कार्यकाल पर यह आरोप भी लगे कि उन्होंने राजनीतिक प्रतिष्ठान को बचाया और असहमति की आवाज़ों पर कार्रवाई की.
वे लंबे समय से विवादास्पद रहे हैं. उनके शुरुआती राजनीतिक करियर पर 1980 के दशक के आखिर में बतलांडा टॉर्चर कॉम्प्लेक्स से जुड़े आरोपों की छाया रही. 1995 में बनी एक राष्ट्रपति जांच आयोग ने उस समय वरिष्ठ कैबिनेट मंत्री रहे विक्रमसिंघे पर बतलांडा योजना की जानकारी रखने और प्रशासनिक जिम्मेदारी निभाने के आरोप लगाए.
बतलांडा स्थल को कथित तौर पर 1980 के दशक के आखिर में हुए जेवीपी विद्रोह के दौरान एक गुप्त हिरासत और यातना केंद्र के रूप में इस्तेमाल किया गया था. हालांकि, इस आयोग से आपराधिक मामले नहीं बने, लेकिन इसमें यह सिफारिश की गई थी कि विक्रमसिंघे को उनके नागरिक अधिकारों से वंचित कर दिया जाए. हालांकि, इस सिफारिश पर कभी अमल नहीं हुआ. यह विवाद इस साल की शुरुआत में तब फिर से उभरा जब उन्होंने अल जज़ीरा को एक इंटरव्यू दिया, जिसे लेकर काफी आलोचना हुई.
इंटरव्यू के दौरान, विक्रमसिंघे से उस दौर में हुई यातनाओं के आरोपों पर सवाल पूछे गए. उस समय वे राष्ट्रपति रणसिंघे प्रेमदासा की सरकार में उद्योग मंत्री थे. उन्होंने सभी आरोपों से इनकार किया और कहा कि उनका कथित तौर पर ‘टॉर्चर कैंप’ चलाने में कोई हाथ नहीं था.
इंटरव्यू के बाद, विक्रमसिंघे ने पैनल के कुछ सदस्यों पर लिट्टे (LTTE) से संबंध रखने का आरोप लगाया और कहा कि इंटरव्यू को अनुचित तरीके से एडिट किया गया है.
उन्होंने शिकायत की, “यह इंटरव्यू हमारी तरह नहीं था. इसे एडिट किया गया है और कुछ मज़ेदार हिस्से आज नहीं आए. मुझे नहीं लगता कि वे अब कभी आएंगे.”
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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