scorecardresearch
Thursday, 3 October, 2024
होमविदेशक्या है पाकिस्तान का अहमदिया संकट जिससे न्यायपालिका और कट्टरपंथियों के बीच बढ़ा तनाव

क्या है पाकिस्तान का अहमदिया संकट जिससे न्यायपालिका और कट्टरपंथियों के बीच बढ़ा तनाव

यह विवाद 6 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले के साथ शुरू हुआ, जब पाकिस्तान सुप्रीम कोर्ट ने मुबारक सानी को रिहा करने का आदेश दिया, जो पिछले साल ‘तफसीर-ए-सगीर’ का टेक्स्ट बांटने के लिए गिरफ्तार किए गए अहमदिया हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: पाकिस्तान में अहमदिया के अधिकारों पर देश की सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने व्यापक विरोध प्रदर्शन को बढ़ावा दिया है और धार्मिक कट्टरपंथियों और न्यायपालिका के बीच तनाव को और बढ़ा दिया है.

फरवरी के फैसले के बाद से ही विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं और फैसलों में तीन बदलाव हुए हैं. सोमवार को किए गए प्रदर्शनों में 7 सितंबर से पहले फैसले को अंतिम रूप से वापस लेने की मांग की गई. अगर ऐसा नहीं किया गया, तो एक प्रदर्शनकारी ने चेतावनी दी कि “इस्लामाबाद में शांति नहीं रहेगी”.

देश में 2023 मुबारक सानी मामले को लेकर धार्मिक समूहों और न्यायपालिका के बीच गतिरोध देखने को मिला है, जिसमें शीर्ष अदालत ने सताए गए अहमदिया लोगों को अपने धर्म का पालन करने की अनुमति दी थी.

पाकिस्तान में दुनिया की सबसे बड़ी अहमदिया आबादी है. यह देश का एकमात्र ऐसा समुदाय भी है जिसे वोटिंग अधिकार से वंचित रखा गया है और उसे मुस्लिम के रूप में मान्यता नहीं दी गई है.

क्या है मुबारक सानी का मामला?

विवाद की शुरुआत 6 फरवरी को एक ऐतिहासिक फैसले से हुई, जब पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने मुबारक अहमद सानी को रिहा करने का आदेश दिया, जो अहमदिया समुदाय से हैं और जिन्हें पिछले साल तफसीर-ए-सगीर बांटने के लिए गिरफ्तार किया गया था, जो तफसीर-ए-कबीर का एक छोटा संस्करण है — अहमदिया संप्रदाय के संस्थापक के बेटे मिर्ज़ा बशीर-उद-दीन महमूद अहमद द्वारा कुरान की 10-खंड व्याख्या.

सानी पर 2021 के पंजाब कानून का उल्लंघन करने का आरोप लगाया गया था, जो “विषमपंथी” कुरानिक टिप्पणियों के मुद्रण और वितरण पर रोक लगाता है. हालांकि, सानी ने तर्क दिया कि उन्होंने कानून लागू होने से पहले 2019 में इसे बांटा था. पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश काज़ी फ़ैज़ ईसा ने इस सिद्धांत का हवाला देते हुए उनके पक्ष में फैसला सुनाया कि आपराधिक कानूनों को पूर्वव्यापी रूप से लागू नहीं किया जा सकता है.

शुरुआत में इस पर किसी का ध्यान नहीं गया, लेकिन तहरीक-ए-लब्बैक पाकिस्तान (टीएलपी) से जुड़े सोशल मीडिया अकाउंट्स द्वारा इसे हाईलाइट किए जाने के बाद इस फैसले ने व्यापक ध्यान आकर्षित किया, जो अपने हिंसक ईशनिंदा विरोधी प्रदर्शनों के लिए कुख्यात है.

CJP के इस फैसले पर पूरे पाकिस्तान में मिली-जुली प्रतिक्रियाएं देखने को मिली हैं. कानूनी विशेषज्ञों ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता की दिशा में एक छोटा, लेकिन महत्वपूर्ण कदम बताया, खासकर अहमदिया समुदाय के लिए, जो देश में शायद ही कभी कानूनी मामले जीत पाते हैं.

हालांकि, अहमदिया समुदाय ने इस फैसले को सीमित माना, क्योंकि इसने धार्मिक ग्रंथों को वितरित करने के उनके अधिकार की पुष्टि नहीं की. दूसरी ओर, कट्टरपंथी सुन्नी समूहों ने नाराज़गी जताते हुए मुख्य न्यायाधीश ईसा पर अहमदिया समुदाय का पक्ष लेने का आरोप लगाया.

23 फरवरी को हज़ारों पाकिस्तानियों ने ईसा के खिलाफ इस फैसले के विरोध में प्रदर्शन किया, जिसे उन्होंने ईशनिंदा से संबंधित माना. इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने जस्टिस ईसा के फैसले का बचाव करते हुए एक बयान जारी किया, जिसमें स्पष्ट किया गया कि यह पाकिस्तान के इस्लामी संविधान का उल्लंघन नहीं करता है और न्यायपालिका के खिलाफ “दुर्भाग्यपूर्ण” अभियान की निंदा करता है.

बढ़ते विवाद के बीच पंजाब सरकार ने पुनर्विचार याचिका दायर की. कई धार्मिक दलों ने भी याचिका दायर की, लेकिन अदालत ने उनके अधिकार को संवैधानिक और इस्लामी कानून के तर्कों पर ध्यान केंद्रित करते हुए सुनवाई तक सीमित कर दिया.

शीर्ष अदालत ने इस्लामिक विचारधारा परिषद (सीआईआई) सहित 10 धार्मिक संस्थानों को भी नोटिस जारी कर इस्लामी न्यायशास्त्र पर उनका मार्गदर्शन मांगा.


यह भी पढ़ें: अंदरूनी कलह, सुधारों की मांग और UCC — कभी शक्तिशाली रहा AIMPLB अब संकटों से घिरा


धार्मिक स्वतंत्रता के लिए स्थान नहीं

इसके बाद एक दुर्लभ कदम उठाया गया — 24 जुलाई को मुख्य न्यायाधीश ईसा सहित तीन न्यायाधीशों की पीठ द्वारा फैसले की पुनः जांच की गई. न्यायाधीशों ने स्पष्ट किया कि उनका फैसला केवल पूर्वव्यापी प्रभाव के मुद्दे पर आधारित था और उन्होंने फिर से पुष्टि की कि अहमदियाओं को अभी भी मुस्लिम पहचान नहीं मिली है और वह अपने इबादतगाहों के बाहर अपने धार्मिक विश्वासों का प्रचार नहीं कर सकते हैं.

हालांकि, इस स्पष्टीकरण ने कट्टरपंथी सुन्नी समूहों या संवैधानिक सलाहकार निकाय सीआईआई को खुश करने के लिए कुछ खास नहीं किया. सीआईआई ने अहमदिया को अपने इबादतगाहों के भीतर अपने धर्म का पालन करने की अनुमति देने के लिए फैसले की आलोचना की और तर्क दिया कि उन्हें निजी स्थानों में भी ऐसा करने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए.

सीआईआई का रुख, अहमदिया के और अधिक उत्पीड़न का आह्वान करते हुए, विडंबना यह है कि 11 अगस्त 2024 को पाकिस्तान अल्पसंख्यक दिवस के साथ मेल खाता है, जब राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी ने अल्पसंख्यक अधिकारों की रक्षा के लिए देश की प्रतिबद्धता की पुष्टि की.

अब पंजाब सरकार ने एक बार फिर न्यायालय के निष्कर्षों को चुनौती देते हुए याचिका दायर की है, जिसमें तर्क दिया गया है कि ये गलत धारणाओं पर आधारित थे. न्यायालय 22 अगस्त को ‘तत्काल’ आधार पर याचिका पर सुनवाई करने वाला है.

हालांकि, सोमवार को जमीयत उलेमा-ए-इस्लाम (जेयूआई) और जमात-ए-इस्लामी (जेआई) सहित विभिन्न धार्मिक संगठनों के कार्यकर्ताओं ने मजलिस-ए-तहफ्फुज-ए-खतमे नबुव्वत के बैनर तले मुबारक सानी मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और न्यायालय से इसे पूरी तरह से वापस लेने की मांग की. सोशल मीडिया पर दिखाई गई तस्वीरों में प्रदर्शनकारियों को पुलिस द्वारा आंसू गैस का इस्तेमाल करके रोकने के प्रयासों के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के जज गेट में घुसने की कोशिश करते हुए दिखाया गया. पुलिस ने भीड़ को तितर-बितर करने के लिए लाठीचार्ज और पानी की बौछारों का भी इस्तेमाल किया, लेकिन प्रदर्शनकारी अंततः संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट की इमारत तक पहुंच गए.

पाकिस्तान में अहमदिया उत्पीड़न

देश में दो से पांच मिलियन अहमदिया रहते हैं और उन्हें काफी उत्पीड़न और भेदभाव का सामना करना पड़ता है. उन्हें गैर-अहमदिया मस्जिदों में नमाज पढ़ने, सलाम करने और सार्वजनिक रूप से कुरान को उद्धृत करने और धार्मिक सामग्री का उत्पादन या प्रसार करने से कानूनी रूप से प्रतिबंधित किया गया है. इन प्रतिबंधों का उल्लंघन करने पर कारावास हो सकता है.

समुदाय को तब तक मतदान से रोक है जब तक कि वो अपने धर्म का त्याग न कर दें या मतदाता सूची में “गैर-मुस्लिम” के रूप में सूचीबद्ध न हों, जो उनकी मान्यताओं के विपरीत है. समुदाय ने पंजाब में गंभीर अपवित्रीकरण सहित चल रहे उत्पीड़न का विरोध करने के लिए 2024 के आम चुनावों का बहिष्कार किया.

इसके अलावा, अहमदिया को पासपोर्ट या राष्ट्रीय पहचान पत्र प्राप्त करने के लिए खुद को गैर-मुस्लिम घोषित करना होगा.

इन कानूनों के कारण समुदाय का व्यापक उत्पीड़न हुआ है, जिसमें अहमदिया अक्सर घृणा-संबंधी घटनाओं में लक्षित होते हैं. पाकिस्तान भर में धार्मिक मदरसों में अहमदिया मान्यताओं का खंडन करने के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन की गई सामग्री शामिल है, जो उनके खिलाफ भेदभावपूर्ण भावना को और मजबूत करती है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: वक्फ कानून में ‘बदलाव करने की मंशा’ संदिग्ध है, सरकार पहले मुसलमानों से सलाह ले


 

share & View comments