( मैट मैकडोनाल्ड, क्वींसलैंड विश्वविद्यालय )
ब्रिस्बेन, 13 अक्टूबर (द कन्वरसेशन) संयुक्त राष्ट्र में पिछले महीने दिए गए एक विवादास्पद भाषण में अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जलवायु परिवर्तन को ‘‘दुनिया के साथ किया गया सबसे बड़ा छलावा’’ बताया।
यह दावा वैज्ञानिक साक्ष्यों की पूरी तरह अवहेलना करता है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाते हैं कि जलवायु परिवर्तन एक वास्तविक और गहन संकट है।
यह भाषण एक चुनावी रैली जैसा अधिक लगा, न कि विश्व नेताओं के बीच दिया गया कोई कूटनीतिक संबोधन। अमेरिकी राष्ट्रपति का यह रुख ब्राज़ील में आगामी सीओपी30 जलवायु सम्मेलन से पहले इस वैश्विक चिंता का विषय बन गया है कि अमेरिका जलवायु मुद्दों से एक बार फिर पीछे हट सकता है।
‘कोयला की खुदाई’ नीति की वापसी
ट्रंप का रुख जलवायु परिवर्तन को नकारने वालों और झूठी जानकारी फैलाने वालों को बल देने वाला रहा है। वे अपने पुराने नारे ‘ड्रिल, बेबी, ड्रिल’ और अब ‘माइन, बेबी, माइन’ के अनुरूप कोयला और तेल उद्योग को खुला समर्थन दे रहे हैं।
ट्रंप ने ही पेरिस जलवायु समझौते से अमेरिका को हटा लिया। उनकी घोषणा के बाद पिछले माह 1.3 करोड़ एकड़ संघीय भूमि को कोयला खनन के लिए खोला गया। उनके आदेश पर जलवायु डेटा वेबसाइटों से हटाया गया, और शोध के लिए सरकार की सीधी फंडिंग बंद कर दी गई।
उनके कदमों से निश्चित रूप से ‘इन्फ्लेशन रिडक्शन एक्ट’ कमजोर हुआ जो नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश को बढ़ावा देने वाला, बाइडेन प्रशासन का प्रमुख कानून था।
इन नीतियों के चलते सात अरब टन अतिरिक्त कार्बन उत्सर्जन होने की संभावना है, जो कि वैश्विक दो डिग्री तापमान घटाने के लक्ष्य को पाने के लिए बचे कार्बन बजट का लगभग 20 फीसदी है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर चिंता के बादल
अमेरिका जैसे बड़े उत्सर्जक देश का पीछे हटना, यूनाइटेड नेशन्स फ्रेमवर्क कन्वेन्शन ऑन क्लाइमेट चेंज (यूएनएफसीसीसी) जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों की वैधता को चुनौती देता है। इससे रूस, खाड़ी देशों जैसे अन्य उच्च उत्सर्जक राष्ट्रों पर दबाव कम हो सकता है।
जलवायु वित्त का सवाल एक बार फिर प्रमुख रूप से आगे आया है । वैसे भी विकासशील देशों के लिए जरूरी सहायता ट्रंप की ‘अमेरिका फर्स्ट’ नीति के चलते कठिन हो सकती है।
बहरहाल, उम्मीद कायम है क्योंकि कुछ आशाजनक संकेत हैं।
वैश्विक उत्सर्जन संभवतः अपने चरम पर पहुंच चुका है, और अब पहली बार गिरावट की ओर बढ़ रहा है। 2025 में वैश्विक नवीकरणीय ऊर्जा निवेश 1500 अरब डॉलर तक पहुंचने की संभावना है। कोयला, तेल और गैस में निवेश में गिरावट आ रही है।
इसके अलावा चीन ने हाल ही में पहली बार 2035 तक 7-10 फीसदी उत्सर्जन कटौती का लक्ष्य रखा है, और वह अकेले ही दुनिया की कुल सौर एवं पवन क्षमता से अधिक जोड़ रहा है। चीन अमेरिका की अनुपस्थिति को वैश्विक नेतृत्व के अवसर में बदलना चाह सकता है, खासकर प्रशांत क्षेत्र में।
वैश्विक सहयोग बना हुआ है:
सबसे अहम बात यह है कि अमेरिका के पेरिस समझौते से हटने के बावजूद कोई अन्य देश पीछे नहीं हटा। ऑस्ट्रेलिया ने हाल ही में अपने उत्सर्जन लक्ष्यों में वृद्धि की। कैलिफ़ोर्निया जैसे राज्य अमेरिका के भीतर ही मजबूत जलवायु नीति अपना रहे हैं और ब्राज़ील के साथ साझेदारी कर रहे हैं।
सबकी निगाहें सीओपी30 पर
आगामी सीओपी30 सम्मेलन में जलवायु नीति पर वैश्विक सहमति बनाना अब और कठिन हो गया है, लेकिन अतीत के अनुभव बताते हैं कि इन सम्मेलनों से अंतरराष्ट्रीय ध्यान केंद्रित होता है और सकारात्मक दबाव बनता है।
संभावना है कि सीओपी30 अमेरिका को फिर से वैश्विक जलवायु मंचों में लौटने के लिए प्रेरित करे – या कम से कम अमेरिका के भीतर पर्यावरण समर्थक समूहों को सशक्त बनाए, ताकि वे संघीय स्तर पर अवरोध के बावजूद कार्रवाई जारी रख सकें।
कुल मिला कर ट्रंप की वापसी वैश्विक जलवायु प्रयासों के लिए चुनौतीपूर्ण हो सकती है, लेकिन अब दुनिया पहले से ज्यादा संगठित, प्रौद्योगिकीय रूप से सक्षम, और राजनीतिक रूप से सजग हो चुकी है। अमेरिका की गैर-हाजिरी में भी, सीओपी30 वैश्विक जलवायु नेतृत्व को पुनर्परिभाषित करने का अवसर बन सकता है।
( द कन्वरसेशन )
मनीषा माधव
माधव
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