सिएटल: नये शैक्षणिक वर्ष की शुरुआत के साथ ही अभिभावकों के लिए बच्चों को निंद्रा की स्वस्थ दिनचर्या में वापस लाने की जद्दोजहद शुरू हो जाती है. कई मामलों में ऐसा करने के लिए बच्चों के टीवी-मोबाइल पर बिताये जाने वाले समय को नियंत्रित करने की जरूरत है, खासकर देर शाम में.
हालांकि, इन नियमों को लागू करने की बात कहना जितना आसान है, इसका क्रियान्वयन करना उतना ही मुश्किल काम है.
शोधकर्ताओं के एक निकाय ने किशोरों और ट्वीन (10 से 12 वर्ष के बच्चों) में निंद्रा, मानसिक स्वास्थ्य और स्क्रीन टाइम (टीवी-मोबाइल पर बिताये गये समय) के बीच मजबूत संबंध उजागर किया है.
एक अभूतपूर्व मानसिक स्वास्थ्य संकट के बीच, जिसमें अमेरिका में लगभग 42 फीसदी किशोर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से पीड़ित हैं, वे बेहद कम नींद ले पा रहे हैं.
यह एक ऐसा दुष्चक्र है, जिसमें कम निंद्रा और सोने से पहले सोशल मीडिया और वीडियो गेम में अधिक समय बिताना अवसाद और तनाव को बढ़ा सकता है.
मैं सिएटल बाल अस्पताल में ‘स्लीप सेंटर’ की प्रमुख चिकित्सक हूं, जहां मैं बच्चों के निंद्रा संबंधी विभिन्न विकारों का अध्ययन करती हूं. चिकित्सकों और प्रदाताओं की हमारी टीम नियमित रूप से टीवी-मोबाइल पर अत्यधिक समय गुजारने और विशेष रूप से सोशल मीडिया के नकारात्मक प्रभावों का निरीक्षण करती है, जो न केवल नींद को प्रभावित करते हैं, बल्कि हमारे रोगियों के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करते हैं.
मानसिक स्वास्थ्य और खराब नींद के बीच संबंध
अनुसंधान ने लंबे समय से मानसिक स्वास्थ्य और नींद के बीच एक स्पष्ट संबंध दिखाया है, जिसके तहत कम नींद, खराब मानसिक स्वास्थ्य का कारण बन सकती है और खराब मानसिक स्वास्थ्य के चलते कम नींद आने की शिकायत हो सकती है. अवसाद और चिंता से ग्रस्त लोगों को आमतौर पर अनिद्रा होती है, एक ऐसी स्थिति जिसमें लोगों को सोने या सोते रहने या दोनों में परेशानी होती है.
इसके अलावा, अनिद्रा और खराब गुणवत्ता वाली नींद भी चिकित्सा और दवा के लाभों को कम कर सकती है. सबसे खराब स्थिति में, लगातार नींद की कमी से आत्महत्या के विचार आने का खतरा बढ़ जाता है.
एक अध्ययन में पाया गया कि सप्ताह के दौरान सिर्फ एक घंटे की कम नींद ‘‘निराशाजनक महसूस करने, आत्महत्या पर गंभीरता से विचार करने और मादक पदार्थों के सेवन की अधिक संभावना’’ से जुड़ी थी.
यह भी पाया गया कि जब किशोरों को सही समय से लेटने पर भी नींद नहीं आई या बीच में आंख खुल गई, तो उन्होंने अधिकतर समय अपने स्मार्टफोन पर बिताया.
दुनिया भर में 6 से 18 वर्ष की उम्र के 1,20,000 से अधिक युवाओं पर किए गए अध्ययन में, जो किसी भी तरह से सोशल मीडिया पर सक्रिय हैं, बार-बार अनिद्रा और खराब निंद्रा से ग्रसित पाए गए. यह सिर्फ अमेरिका में ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में हो रहा है.
टीवी-मोबाइल स्क्रीन और सोशल मीडिया का जबरदस्त आकर्षण
सोशल मीडिया के कुछ फायदे हैं, लेकिन मेरा मानना है कि शोध से यह स्पष्ट हो गया है कि सोशल मीडिया के उपयोग में फायदे की तुलना में नकारात्मक पहलू कहीं अधिक हैं.
पहली बात यह कि सोशल मीडिया पर सक्रिय रहने के लिए जागते रहने की आवश्यकता होती है, इसलिए नींद खराब हो जाती है.
दूसरा, हाथ से पकड़े जाने वाले अधिकतर उपकरणों से निकलने वाली रोशनी ‘मेलाटोनिन’ हार्मोन के स्तर को कम करने का कारण बनती है. यह हार्मोन नींद की शुरुआत का संकेत देता है.
(एम. लिन चेन, वाशिंगटन विश्वविद्यालय)
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