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बुधवार, 25 जून, 2025
होमविदेशअमेरिकी SC ने ‘बिना कानूनी प्रक्रिया’ के प्रवासियों को डिपोर्ट करने की मंजूरी दी, इससे 3 जज असहमत

अमेरिकी SC ने ‘बिना कानूनी प्रक्रिया’ के प्रवासियों को डिपोर्ट करने की मंजूरी दी, इससे 3 जज असहमत

यह फैसला उस जिला अदालत के आदेश पर भी रोक लगाता है जिसमें कहा गया था कि जिन प्रवासियों को तीसरे देशों में निर्वासित किया जा रहा है, उन्हें अधिकारियों को यह बताने का ‘ठोस मौका’ मिलना चाहिए कि उन्हें नए देश में उत्पीड़न का खतरा है.

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नई दिल्ली: अमेरिका की सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को डॉनल्ड ट्रंप प्रशासन को यह मंज़ूरी दे दी कि वह प्रवासियों को उनके अपने देश के अलावा किसी और देश में भेज सकता है, बिना उन्हें यह “सही मौका” दिए कि वे अमेरिकी अधिकारियों को बता सकें कि नए देश में उन्हें सताए जाने का खतरा है.

कोर्ट की इस फैसले में तीन जजों ने असहमति जताई. उनमें से एक जस्टिस सोनिया सोटोमोर ने कहा कि यह फैसला संविधान के “ड्यू प्रोसेस क्लॉज” का उल्लंघन करता है क्योंकि यह प्रवासियों से अपनी बात रखने का मौका छीन लेता है.

अमेरिकी संविधान के पांचवें संशोधन में लिखा है कि किसी भी व्यक्ति से “उसकी ज़िंदगी, आज़ादी या संपत्ति” नहीं छीनी जा सकती जब तक कि उसे कानून के अनुसार पूरी प्रक्रिया का अधिकार न मिले.

सोमवार को नौ जजों की बेंच ने 6:3 के बहुमत से फैसला सुनाया कि आठ पुरुषों के एक समूह को साउथ सूडान भेजा जाएगा, भले ही उनमें से ज़्यादातर का उस देश से कोई संबंध या वहां कभी गए होने का रिकॉर्ड नहीं है. फिलहाल, ये पुरुष जिबूती में एक अमेरिकी सैन्य अड्डे पर रखे गए हैं और अब उन्हें साउथ सूडान भेजा जा सकेगा.

जनवरी में ट्रंप के दोबारा व्हाइट हाउस लौटने के बाद से, रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, उनके इमिग्रेशन पर सख्ती से जुड़े सात कानूनी मामलों में सुप्रीम कोर्ट से “आपातकालीन आधार” पर दखल की मांग की गई है. मौजूदा फैसला भी ऐसा ही है, जिसमें आम तौर पर कारण नहीं दिए जाते.

इस फैसले से 18 अप्रैल को मैसाचुसेट्स जिला अदालत के उस आदेश पर भी रोक लग गई जिसमें कहा गया था कि जिन्हें “तीसरे देशों” में भेजा जा रहा है, उन्हें यह “सही मौका” मिलना चाहिए कि वे अमेरिकी अधिकारियों को बता सकें कि नए देश में उन्हें सताए जाने का डर है.

मामला और असहमति

फिलहाल, डिपार्टमेंट ऑफ होमलैंड सिक्योरिटी बनाम DVD, कोर्ट ने DHS (गृह सुरक्षा विभाग) की उस याचिका पर सुनवाई की जिसमें 18 अप्रैल को बोस्टन की जिला अदालत द्वारा दिए गए आदेश को चुनौती दी गई थी. उस आदेश में एकल न्यायाधीश एरिक बी. मर्फी ने कहा था कि जिन प्रवासियों को किसी देश में निर्वासित किया जा रहा है, उन्हें वहां संभावित यातना के बारे में दावा करने के लिए 10 दिन का समय दिया जाना चाहिए.

उसी आदेश में, न्यायाधीश ने यह भी कहा था कि ऐसे प्रवासियों को उनके खिलाफ किए गए किसी भी निष्कर्ष को चुनौती देने के लिए 15 दिन का समय दिया जाना चाहिए. लेकिन सरकारी विभाग ने इस फैसले को चुनौती दी, यह दलील देते हुए कि ऐसा आदेश राष्ट्रपति की विदेश नीति को लागू करने की क्षमता में देरी करता है.

यह मामला तब मीडिया की नजर में आया जब मई में आठ प्रवासियों को एक विमान में चढ़ाया गया और उन्हें साउथ सूडान भेजा जा रहा था, जो हिंसा-ग्रस्त देश है. हालांकि, जस्टिस मर्फी ने 21 मई को फैसला सुनाया कि यह निर्वासन उनकी 18 अप्रैल की उस आदेश का उल्लंघन करता है, जिसमें निर्वासन से पहले कुछ अतिरिक्त कदमों को पूरा करने, जैसे कि सुनवाई का मौका देने, की बात कही गई थी. इसके चलते इन लोगों का निर्वासन रोक दिया गया और उन्हें जिबूती में अमेरिकी सैन्य अड्डे पर हिरासत में रखा गया.

हालांकि सोमवार के आदेश में शामिल सभी जजों ने बहुमत की रूढ़िवादी राय से सहमति नहीं जताई.

जस्टिस सोनिया सोटोमोर, केतनजी ब्राउन जैक्सन और एलेना कागन ने न केवल यह माना कि यह फैसला ‘ड्यू प्रोसेस क्लॉज’ के खिलाफ है, बल्कि इसे “कोर्ट की न्यायिक विवेकाधिकार का गंभीर दुरुपयोग” भी करार दिया.

ड्यू प्रोसेस क्लॉज यह सिद्धांत दर्शाता है कि “हमारा शासन कानूनों का शासन है, किसी व्यक्ति का नहीं, और हम शासकों को केवल तभी मानते हैं जब वे नियमों के अधीन हों,” जैसा कि 1952 में स्कोटस के फैसले ‘यंगस्टाउन शीट एंड ट्यूब कंपनी. बनाम सॉयर’ में कहा गया था.

जस्टिस सोनिया सोटोमोर ने सार्वजनिक किए गए असहमति जताते हुए कहा, “कांग्रेस ने विशेष रूप से गैर-नागरिकों को यह अधिकार दिया है कि उन्हें किसी ऐसे देश में न भेजा जाए जहां उनके यातना या हत्या की संभावना हो.”

इस असहमति पत्र में यह भी उल्लेख किया गया कि वर्तमान फैसले ने दूर-दराज के क्षेत्रों में हजारों लोगों की हिंसा झेलने की आशंका को उस संभाव्यता से अधिक स्वीकार्य माना, जिसमें एक जिला अदालत ने सरकार को वह नोटिस और प्रक्रिया देने का आदेश दिया जो संविधान और कानून के तहत वादियों का अधिकार था.

इससे पहले मई में ही सुप्रीम कोर्ट ने ट्रंप प्रशासन को अमेरिका में अस्थायी रूप से रह रहे प्रवासियों के लिए मानवीय कार्यक्रमों को समाप्त करने की अनुमति दे दी थी. इस फैसले की भी आलोचना हुई क्योंकि इसमें प्रवासियों को ‘एलियन एनेमीज़ एक्ट’ के तहत हटाया गया, जो 1798 का कानून है और आमतौर पर सिर्फ युद्धकाल में इस्तेमाल होता है.

“यह पहली बार नहीं है जब कोर्ट ने गैर-अनुपालन की अनदेखी की है, और मुझे डर है कि यह आखिरी बार भी नहीं होगा,” जस्टिस सोटोमोर की असहमति में लिखा.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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