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Friday, 20 December, 2024
होमविदेशअपने वतन में देशद्रोही कहलाने वाले परवेज़ मुशर्रफ के वह फैसले जो उनकी विरासत बन गए

अपने वतन में देशद्रोही कहलाने वाले परवेज़ मुशर्रफ के वह फैसले जो उनकी विरासत बन गए

1999 में जनरल मुशर्रफ ने नवाज़ शरीफ का तख्तापलट कर दिया और पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी बन गए. उनके सत्ता संभालते ही नवाज़ शरीफ को परिवार समेत पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था.

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नई दिल्लीः पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल परवेज़ मुशर्रफ के वो बड़े फैसले जो उनकी विरासत बन गए.

पड़ोसी देश के कद्दावर नेता ने पाकिस्तान को भ्रष्ट राजनेताओं के चंगुल से बचाने के नाम पर 1998 के सैन्य तख्तापलट को जायज ठहराया था और 9/11 के बाद कठिन समय में देश की कमान संभाले रहने को सफलता करार दिया था. 1999 में सफल सैन्य तख्तापलट के बाद मुशर्रफ दक्षिण एशियाई राष्ट्र के दसवें राष्ट्रपति बने थे.

परवेज़ मुशर्रफ ने न केवल एक निर्वाचित नेता (जुल्फ़ीकार अली भुट्टो) का तख्ता पलटा और उनकी हत्या भी करवाई, बल्कि जिहादी सोच की नींव भी डाल दी.

जनरल ज़िया-उल हक द्वारा बोये ज़हरीले बीजों से फल तोड़कर अपनी विरासत बनाने वाले मुशर्रफ को अपने ही देश की अदालत ने मौत की सज़ा सुनाई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि जो शख्स खुद मौजूद न हो उस पर मुकदमा चलाना इस्लामी कानून के तहत गलत है. अदालत ने कहा था कि जो व्यक्ति मौजूद नहीं उस पर मुकदमा चलाना इस्लामी कानून के खिलाफ है.

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति जनरल (सेवानिवृत्त) परवेज़ मुशर्रफ का रविवार को दुबई के एक अस्पताल में निधन हो गया. वह 79 वर्ष के थे.

‘द एक्सप्रेस ट्रिब्यून’ की खबर के मुताबिक, मुशर्रफ एक दुर्लभ बीमारी एमिलॉयडोसिस से पीड़ित थे, जिसमें पूरे शरीर के अंगों और सैल्स में एमिलॉयड नामक एक असामान्य प्रोटीन बनता है.

जियो न्यूज की खबर के अनुसार, पूर्व सैन्य शासक का दुबई के अमेरिकन हॉस्पिटल में इलाज चल रहा था.

बड़े फैसले और कार्य

अपनी पीढ़ी के कई सैन्य अधिकारियों की तरह मुशर्रफ ने भी 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में हिस्सा लिया और 1971 में विशिष्ट स्पेशल सर्विस ग्रुप के साथ जंग लड़ी. उन्होंने 1987 में सियाचिन ग्लेशियर से लगे इलाके में अभियान के दौरान एक ब्रिगेड की कमान संभाली.

1998 में मुशर्रफ पाकिस्तान की सेना के सर्वोच्च पद पर आसीन हुए. उसी साल फरवरी की शुरुआत में भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की बहुचर्चित लाहौर बस यात्रा की घोषणा हुई थी, जिसने दोनों देशों के बीच के रिश्ते में तनाव घटने का संकेत दिया था. हालांकि, यह इतना नाटकीय था कि वाजपेयी ‘पाकिस्तान का इंडिया गेट’ मानी जाने वाली ‘मीनार-ए-पाकिस्तान’ की सीढ़ियों पर भी चढ़े और कहा कि स्थिर और खुशहाल पाकिस्तान भारत के हित में है. उधर, मुशर्रफ इन तमाम कोशिशों को पलीता लगाने के लिए कारगिल हमले की साजिश कर रहे थे.

अपनी आत्मकथा ‘इन द लाइन ऑफ फायर’ में उन्होंने लिखा है कि पाकिस्तानी सेना कारगिल युद्ध में शामिल थी.

हालांकि, इस युद्ध में उन्हें भारतीय सैनिकों के हाथों करारी हार का सामना करना पड़ा था. मुशर्रफ ने हार की शर्मिदगी से बचने के लिए पूरी जिम्मेदारी तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ पर डाल दी थी. उन्होंने कहा कि नवाज़ शरीफ ने कारगिल युद्ध से हाथ खींचने के लिए कहा था.

कारगिल के बाद कश्मीर घाटी में बढ़ती हिंसाएं इस बात का संकेत थीं कि मुशर्रफ अपने भारत विरोधी एजेंडे को बरकरार रखे हुए थे.

1999 में जनरल मुशर्रफ ने नवाज़ शरीफ का तख्तापलट कर दिया और पाकिस्तान के मुख्य कार्यकारी बन गए. उनके सत्ता संभालते ही नवाज़ शरीफ को परिवार समेत पाकिस्तान छोड़ना पड़ा था.

मुशर्रफ ने 1999 में पाकिस्तान में मार्शल लॉ लागू होने के बाद मुख्य कार्यकारी का पद संभाला था और 2007 से 2008 तक पाकिस्तान के राष्ट्रपति रहे थे. उन्होंने 1998 से 2001 तक पाकिस्तान की स्टाफ कमेटी (सीजेसीएसीस) के 10वें अध्यक्ष का पद भी संभाला था.

अमेरिका के 9/11 कांड के बाद मुशर्रफ ने पाकिस्तान को फिर उसके प्रमुख सहयोगी के तौर पर पेश किया, जबकि अल-कायदा और तालिबान के साथ मिलीभगत करके अमेरिका को धोखा भी देते रहे. उनका खेल पकड़ा गया और अमेरिका चौकन्ना हो गया.

अमेरिका ने पाकिस्तान को बमबारी करके ‘पाषाण युग में’ पहुंचा देने की धमकी दे डाली, बशर्ते उसने तालिबान पर काबू पाने में उसकी मदद नहीं की.

उन्होंने जिन जिहादियों को पनाह दी वही उनके लिए जी का जंजाल बन गए. वे सरकार के अंदर एक सरकार जैसे बन गए और उन्हें यह मंजूर नहीं था कि पाकिस्तान ‘आतंक के खिलाफ जंग’ में अमेरिका का पार्टनर बने.

संसद हमला

2001 में भारतीय संसद पर हमला हुआ था और इसमें पाकिस्तान पोषित लश्कर ए तैयबा और जैश ए मोहम्मद जैसे संगठन शामिल थे. मुशर्रफ ने हमले के काफी सालों बाद यह स्वीकारा था कि वो आतंकवादियों को अपने यहां पर ट्रेनिंग देकर भारतीय सेना से लड़ने के लिए भेजते थे.

हालांकि, जनरल मुशर्रफ भारत को जंग छेड़ने से रोकने रोकने में सफल रहे, इस धमकी के साथ कि यह टकराव परमाणु संघर्ष में बदल जाएगा.

अपने देश में देशद्रोही

मुशर्रफ ने तीन नवंबर, 2007 को मुल्क में आपातकाल लगाया जो कि 15 दिसंबर तक चला था. 31 जुलाई 2009 को पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले को असंवैधिनक बताया था.

अगस्त 2008 दो प्रमुख सत्ताधारी दलों द्वारा महाभियोग का मामला चलाए जाने की सहमति के बाद मुशर्रफ ने राष्ट्रपति पद से इस्तीफा दिया था. इसके बाद वे अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों को बेबुनियाद बता कर ब्रिटेन चले गए थे. इसी साल 28 नवंबर को उन्होंने सेना के प्रमुख के पद से इस्तीफा दे दिया था.

2012 में पाकिस्तान की संसद की ओर से पारित संकल्प में मुशर्रफ को वतन लौटते ही गिरफ्तार करने का फैसला लिया गया. हालांकि, 2013 में मुशर्रफ चुनाव के लिए पाकिस्तान लौटे थे. इसके बाद 2014 मुशर्रफ बीमार होकर अस्पताल में भर्ती हुए थे, लेकिन इसके दो साल बाद उन्हें विदेश में इलाज कराने की अनुमति मिली थी.

2019 की गर्मियों में पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट ने मुशर्रफ को देशद्रोह के मामले में विशेष अदालत में पेश होने का आदेश दिया. अदालत के इस आदेश पर उन्होंने लाहौर हाईकोर्ट में याचिका दायर की, जिसके बाद अदालत ने राजद्रोह के मामले में फैसला सुनाने से विशेष अदालत को रोक दिया था.

इसी साल 17 दिसंबर को विशेष अदालत ने मुशर्रफ को मौत की सज़ा सुनाई थी.

बंटवारे के समय दिल्ली से रवानगी

मुशर्रफ का 11 अगस्त 1943 को दिल्ली में जन्म हुआ था. उनका परिवार 1947 में नई दिल्ली से कराची चला गया था. कुछ साल तुर्की में बिताने के बाद यह परिवार 1956 में पाकिस्तान वापस लौटा. मुशर्रफ ने 18 साल की उम्र में काकुल में पाकिस्तान सैन्य अकादमी में शामिल होने से पहले फॉर्मन क्रिश्चियन कॉलेज यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की थी.

वह 1964 में पाकिस्तानी सेना में भर्ती हुए थे. उन्होंने क्वेटा के आर्मी स्टाफ एंड कमांड कॉलेज से स्नातक की डिग्री हासिल की थी.

उनकी परवरिश एकदम पाश्चात्य माहौल में हुई, अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़े पिता और इंद्रप्रस्थ कॉलेज में शिक्षित मां ने एक समय एक कुत्ता पाल रखा था जिसे वे व्हिस्की बुलाते थे.

पाकिस्तान के स्थानीय मीडिया ने बताया कि इससे पहले, मुशर्रफ ने “अपना बाकी का जीवन” अपने देश में बिताने की इच्छा व्यक्त की थी. द एक्सप्रेस ट्रिब्यून अखबार ने बताया कि पूर्व राष्ट्रपति जल्द से जल्द पाकिस्तान लौटना चाहते थे.

(प्रवीण स्वामी के इनपुट्स के साथ)

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