(फ्रैंसिस्को ग्रिलो, अकेडमिक फेलो, सामाजिक एवं राजनीतिक विज्ञान विभाग, बोकोनी विश्वविद्यालय)
मिलान, तीन मई (द कन्वरसेशन) सभी आयातित कारों पर 25 प्रतिशत शुल्क लगाने की अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की घोषणा से भी पहले यूरोपीय ऑटो निर्माता कई चुनौतियों का सामना कर रहे थे। बिक्री कम हो चुकी थी और निर्माता बढ़ती लागत का सामना कर रहे थे।
शुल्क की घोषणा से एक दिन पहले यूरोप की पांच प्रमुख ऑटो निर्माताओं (फॉक्सवेगन, स्टेलेंटिस, मर्सिडीज बेंज, बीएमडब्ल्यू और रेनॉ) की कुल बाजार पूंजी 212 अरब अमेरिकी डॉलर (159 अरब पाउंड) थी। यह कुल मूल्य अकेले टेस्ला के मूल्य के एक चौथाई से भी कम है।
फिर भी पांचों यूरोपीय दिग्गज कंपनियां सालाना ढाई करोड़ वाहन बेचती हैं, जो दुनिया भर में बेची गईं सभी कारों का एक तिहाई हिस्सा है।
इसका मूलतः अर्थ यह है कि वित्तीय बाजार अब यह नहीं मानते कि यूरोपीय कार निर्माता उस कारोबार से पैसा कमा सकते हैं जिस पर वे लगभग एक सदी से हावी रहे हैं।
वास्तव में यह संकट उस प्रौद्योगिकी के अप्रचलित हो जाने से उत्पन्न हुआ है, जिस पर कार का सम्पूर्ण औद्योगिक मॉडल बनाया गया था।
जर्मन इंजीनियर कार्ल बेन्ज ने कार का आविष्कार किया था जिसे बाद में अमेरिकी उद्यमी हेनरी फोर्ड द्वारा लाखों उपभोक्ताओं तक व्यापक रूप से पहुँचाया गया, महज एक उत्पाद से कहीं अधिक था।
कार ने लोगों को सक्षम बनाया कि वे जब चाहें जहां चाहें जा सकें। इसने आखिरी औद्योगिक क्रांति और मानव समृद्धि में बड़ा योगदान दिया।
हालांकि, डेट्रॉयट में फोर्ड की पहली उत्पादन इकाई शुरू होने के 100 साल से भी अधिक समय बाद, यह कारोबार अब धीमा पड़ गया है। ऐसी दुनिया में जहां आर्थिक व पर्यावरणीय संसाधन लगातार कम होते जा रहे हैं, यह पूरा औद्योगिक मॉडल टिकाऊ नहीं लगता।
यह कारोबार क्यों फीका पड़ता जा रहा है?
एक निजी कार का जितना संभावित जीवनकाल होता है, उसके महज पांच प्रतिशत जीवनकाल तक ही कार का इस्तेमाल किया जाता है। इसके बाद बेकार पड़ी रहती हैं और शेष 95 प्रतिशत जीवनकाल में ये मूल्यवान पार्किंग स्थल पर खड़ी कर दी जाती हैं। इन कार में औसतन केवल 1.2 यात्री (कुल क्षमता का चौथाई हिस्सा) सफर करते हैं।
यदि कोई ‘एलियन’ मानव सभ्यता का अवलोकन करे, तो वह यह निष्कर्ष निकाल सकता है कि मानव ने वह विशेष क्षमता खो दी है जो उसे अन्य सभी प्रजातियों से अलग बनाती है: कम चीजों से अधिक काम कराने की क्षमता।
इसके अलावा, लगभग 80 प्रतिशत कारें अब भी जीवाश्म ईंधन से चलती हैं, जिसकी लागत प्रति मील के हिसाब से बिजली की तुलना में काफी अधिक है। यह फासला भी तब है जब विभिन्न देशों में इलेक्ट्रिक वाहनों (ईवी) की कीमतें कम की जा रही हैं।
इन मुद्दों ने यूरोपीय और अमेरिकी ऑटोमोटिव उद्योगों को बुरी तरह प्रभावित किया है। इन क्षेत्रों में ही इस उद्योग की शुरुआत हुई। सीईओ और नीति निर्माताओं के लिए समाधान खोजना मुश्किल साबित हुआ है। हालांकि, आगे का रास्ता स्पष्ट हो सकता है।
यूरोपीय ऑटोमोटिव उद्योग को 21वीं सदी में प्रतिस्पर्धी बनाए रखने के लिए यहां तीन विचार दिए गए हैं।
1. ईवी का निर्माण कर रहे प्रतिद्वंद्वियों को आकर्षित करके अधिक प्रतिस्पर्धी बनें
चीन ने इस क्षेत्र में पहले ही तकनीकी बढ़त हासिल कर ली है – ठीक वैसी ही, जैसी कि फॉक्सवैगन को उस समय हासिल थी, जब उसने शंघाई में पहली बार कारखाने स्थापित किए थे।
उसी सप्ताह बीवाईडी ने घोषणा की कि उसने इलेक्ट्रिक कारों के राजस्व के मामले में टेस्ला को पीछे छोड़ दिया है और 400 किलोमीटर की रेंज वाली इलेक्ट्रिक कार को पांच मिनट में चार्ज करने की प्रणाली विकसित कर ली है।
बीवाईडी और अन्य चीनी निर्माता अपने उत्पादों के 10 प्रतिशत से भी कम उत्पाद यूरोप को निर्यात करते हैं। ऐसे में वे यूरोपीय यूनियन द्वारा उन पर लगाए जाने वाले किसी भी आयात शुल्क से बच जाएंगे। चीनी वाहन निर्माताओं से डरने के बजाय, यूरोपीय संघ को उन्हें अपने यहां उत्पादन सुविधाएं स्थापित करने के लिए प्रेरित करना चाहिए, तथा अपनी सीमाओं में प्रतिस्पर्धा व नवाचार को प्रोत्साहित करना चाहिए।
2. सेवाएं और प्रतीक बेचें
नए व्यवसाय मॉडल के तहत वस्तुओं के साथ-साथ सेवाओं को बेचने पर भी ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह प्रवृत्ति कई उद्योगों में प्रचलित है, और कार निर्माताओं को इसे अपनाकर ऐसी कंपनियों के साथ साझेदारी विकसित करनी चाहिए, जिससे वाहन चलाने के अनुभव बेहतर हो सकें।
यूरोपीय ऑटोमेकर्स को विशेषज्ञ और टिकाऊ निर्माता के प्रतीक के रूप में अपने पारंपरिक रिकॉर्ड के आधार पर व्यापार करना चाहिए। कैमरा निर्माता कोडक ने डिजिटल क्रांति के समय खुद को बचाए रखने के लिए बहुत हद तक ऐसा ही किया। यह उल्लेखनीय है कि फरारी अब अपनी बड़ी सहयोगी कंपनी स्टेलेंटिस से अधिक मूल्यवान है।
3. सरकारों को दखल देना चाहिए
परिवर्तन को सफल बनाने के लिए, सरकारों को भूमिका निभानी होगी। यह यूरोपीय उद्योग को सब्सिडी देकर आगे बढ़ाने या कारों को नया स्टील उद्योग मानने तक सीमित नहीं है। बल्कि, भविष्य की गतिशीलता के लिए आवश्यक बुनियादी ढांचा तैयार व चालू करना चाहिए।
एक शताब्दी पहले, यूरोपीय शहरों का पूर्णतः पुनर्गठन किया गया था, ताकि घोड़ागाड़ियों के साथ-साथ मीराफियोरी कारखाने से निकलने वाली पहली ‘फिएट टोपोलिनो कार’ के जरिए भी परिवहन किया जा सके।
आज हमें इलेक्ट्रिक और ‘ऑटोनॉमस वाहनों’ के लिए नए चार्जिंग नेटवर्क व निर्धारित लेन की जरूरत है। चीन में यह पहले से ही हो रहा है, जो स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि बुनियादी ढांचे के महत्वपूर्ण आधुनिकीकरण के बिना नवाचार संभव नहीं है।
ऑटोनॉमस वाहन वे वाहन होते हैं जो प्रत्यक्ष मानवीय सहयोग के बिना संचालित हो सकते हैं, तथा अपने आसपास की स्थिति को समझने और ड्राइविंग संबंधी निर्णय लेने के लिए प्रौद्योगिकी और सेंसर पर निर्भर होते हैं।
शुल्क का प्रभाव
ट्रंप की शुल्क योजना से बहुत नुकसान होगा। अपने उत्पादों का दो तिहाई हिस्सा पश्चिमी यूरोप के बाहर निर्यात करने वाली फॉक्सवैगन को सबसे ज्यादा नुकसान होगा क्योंकि उसे लगता है कि उसकी ‘जनता की कार’ अलग-अलग आबादी को अंधाधुंध तरीके से बेची जा सकती हैं।
अब यूरोपीय नेताओं को एक ऐसी परिवहन प्रणाली बनाने के लिए साहसिक, दूरदर्शी नवाचार की उसी भावना को अपनाना चाहिए जो वैश्विक मानक स्थापित करने में सक्षम हो। ऑटोमोटिव संकट केवल उद्योग-विशिष्ट मुद्दा नहीं है। यह दूरदर्शिता और व्यावहारिकता दोनों के पुनरुद्धार की मांग करता है।
(द कन्वरसेशन) जोहेब प्रशांत
प्रशांत
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