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Sunday, 17 November, 2024
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बांग्लादेश छात्र आंदोलन के प्रतीक 25-वर्षीय व्यक्ति के जुड़वां भाई बोले — दो ज़िंदगियां जी रहा हूं

मीर महफूजुर रहमान मुग्धो जिन्हें बांग्लादेश पुलिस ने छात्र विरोध प्रदर्शन के दौरान गोली मार दी थी, जिसके कारण शेख हसीना की सरकार गिर गई उनका परिवार अभी भी उनकी मौत से उबर नहीं पाया है.

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ढाका: पानी लागबे, पानी?

यह वाक्यांश, जो नौकरी कोटा प्रणाली के खिलाफ बांग्लादेश के छात्र-नेतृत्व वाले विरोध प्रदर्शन के दौरान एक शक्तिशाली नारा बन गया, ढाका में दीवारों पर लिखा हुआ है.

इसकी उत्पत्ति बांग्लादेश यूनिवर्सिटी ऑफ प्रोफेशनल्स के मास्टर्स के छात्र मीर महफूजुर रहमान मुग्धो के आखिरी शब्दों से जुड़ी है, जिन्हें पुलिस ने कथित तौर पर 18 जुलाई को गोली मार दी थी, जब वे साथी प्रदर्शनकारियों को पानी और बिस्कुट बांट रहे थे.

मुग्धो विरोध प्रदर्शनों के दौरान मारे जाने वाले पहले छात्रों में से एक थे, जिसके बाद देश में आक्रोश फैल गया. पुलिस द्वारा कथित तौर पर उनके सिर में गोली मारे जाने के बाद, 25-वर्षीय मुग्धो खून से लथपथ ज़मीन पर पड़े थे, उनके हाथ में अभी भी पानी की बोतलें और बिस्कुट के पैकेट थे. घटना का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया. गोली लगने से पहले उनके अंतिम शब्द थे — “पानी लागबे, पानी?”

इसके बाद के हफ्तों में बच्चों सहित सैकड़ों लोग पुलिस कार्रवाई में मारे गए और शुरू में शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन हिंसक हो गए, जिसके कारण पांच अगस्त को शेख हसीना को सत्ता से बेदखल कर दिया गया.

मुग्धो के आखिरी शब्द आंदोलन का प्रतीक बन गए. नारों की ग्राफिटी — जो अब ढाका की स्ट्रीट आर्ट का हिस्सा है — उग्र छात्र विरोधों का प्रमाण है जिसने इतिहास रचा और बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य को बदल दिया.

A graffiti in memory of Mugdho | Ananya Bhardwaj | ThePrint
मुग्धो की याद में बनी ग्राफिटी | फोटो: अनन्या भारद्वाज/दिप्रिंट

फिर भी मुग्धो के घर में एक खालीपन जिसे कभी भरा नहीं जा सकेगा.

हालांकि, वे चले गए हैं, लेकिन उनका जुड़वां भाई, स्निग्धो, जो लॉ स्टूडेंट हैं, दो जिंदगियां जीने का बोझ महसूस कर रहे हैं — उनकी और मुग्धो की.

मुग्धो की मृत्यु के बाद से वे आईने में देखने में सहज महसूस नहीं करते क्योंकि उनका चेहरा उन्हें उनके भाई की याद दिलाता है.

लेकिन, उनके परिवार के लिए स्निग्धो अब दोनों भाइयों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं.

स्निग्धो ने दिप्रिंट से बात करते हुए कहा, “मेरे माता-पिता के लिए अब मैं स्निग्धो और मुग्धो दोनों हूं. मेरी मां अभी भी मुग्धो का नाम पुकारती हैं और मैं उनके पास दौड़ता हूं. वे कहते हैं कि इससे उन्हें “आराम” मिलता है, “इससे उन्हें यह अविश्वास बना रहता है कि वे अभी भी ज़िंदा हैं.”

स्निग्धो का कहना है कि उनकी मां मुग्धो की कब्र पर नहीं गई क्योंकि वे सच्चाई को स्वीकार नहीं करना चाहती हैं. “उन्होंने हमारे कमरे में आना बंद कर दिया है, जहां वो घंटों बैठकर हमसे बात करती थीं. वे जानती हैं कि वो हम दोनों को वहां एक साथ नहीं देखेंगी. वे जानती हैं कि वे अब नहीं रहा, लेकिन वे इसे स्वीकार नहीं करना चाहती.”

उन्होंने कहा, मुग्धो की विरासत को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी “बहुत मुश्किल” है.

Snigdho, the twin brother of Mugdho | Ananya Bhardwaj | ThePrint
मुग्धो के जुड़वां भाई स्निग्धो | फोटो: अनन्या भारद्वाज/दिप्रिंट

स्निग्धो स्वीकार करते हैं कि मुग्धो की मृत्यु के बाद से, उन्होंने अपनी खुद की पहचान खो दी है, इसके बजाय उन्होंने अपने भाई के रूप में रहना चुना है ताकि उनके माता-पिता को खालीपन महसूस न हो.

उन्होंने कहा, “मेरे लिए उनकी विरासत को आगे बढ़ाना बहुत मुश्किल है. उनका सपना था कि वे एमबीए करने के लिए स्विट्जरलैंड जाए और फिर हमारे माता-पिता को भी वहां ले जाएं. वे दुनिया घूमना चाहते थे और मेरे माता-पिता को विदेश के अद्भुत शहरों की सैर कराना चाहता था. मेरे पास ऐसे कोई सपने नहीं थे, लेकिन अब उनके सपने मेरे सपने हैं.”

उन्होंने आगे कहा, “उनकी प्राथमिकता हमेशा मेरे माता-पिता थे. वे जिम्मेदार थे, लेकिन अब यह जिम्मेदारी मेरी है. मुझे सुनिश्चित करना है कि उन्होंने मेरे माता-पिता से जो भी वादे किए हैं, मैं उन्हें पूरा करूं. अब यही मेरा लक्ष्य है.”


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‘वे कभी सरकारी नौकरी नहीं चाहते थे’

स्निग्धो ने कहा, मुग्धो हमेशा छात्र अधिकारों के लिए दृढ़ता से सोचते थे, भले ही उन्होंने बांग्लादेश में कभी सरकारी नौकरी पाने की इच्छा नहीं की थी. उनका कहना है कि मुग्धो कोटा सुधारों के लिए विरोध का हिस्सा नहीं थे, बल्कि मानवाधिकारों और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के लिए थे, जिसे हसीना के शासन द्वारा सीमित कर दिया गया था.

स्निग्धो ने कहा, मुग्धो राजनीति की नहीं बल्कि अधिकारों की परवाह करते थे.

स्निग्धो ने आगे कहा, “वे कभी सरकारी नौकरी नहीं चाहते थे, लेकिन छात्रों के अधिकारों के लिए दृढ़ता से सोचते थे. वे जानते थे कि उन अधिकारों को कैसे सीमित किया गया है और जब ये विरोध प्रदर्शन शुरू हुए, तो वे शुरू से ही इसका हिस्सा थे, छात्रों को जो भी मदद की ज़रूरत थी, उसे उन्होंने मुहैया कराया.”

उन्होंने कहा, जिस दिन पुलिस ने कथित तौर पर उन्हें गोली मारी, उस दिन मुग्धो बस प्रदर्शनकारियों को पानी और बिस्कुट बांट रहे थे और उनके हाथ में कोई हथियार या पत्थर नहीं था.

अपनी मृत्यु से कुछ दिन पहले अपने भाई के साथ हुई बातचीत को याद करते हुए स्निग्धो ने बताया, “उन्होंने मुझसे कहा कि छात्रों की मांग ज़ायज है, इसलिए हमें उनकी मदद के लिए कुछ करना चाहिए.”

स्निग्धो ने याद किया कि उनके भाई ने छात्रों के समर्थन में फेसबुक पर पोस्ट लिखना शुरू किए थे, जिसमें हसीना सरकार और उसके द्वारा किए गए अत्याचारों के बारे में बताया गया था.

17 जुलाई को मुग्धो ने अपने भाई से कहा कि वे भी विरोध प्रदर्शन में शामिल हो जाए. उन्होंने स्निग्धो से कहा कि भले ही वे अग्रिम मोर्चे पर न हो सकें, लेकिन दोनों को पीछे से छात्रों की मदद करनी चाहिए.

स्निग्धो सहमत हो गए और दोनों को 18 जुलाई को एक साथ पानी बांटने के लिए विरोध स्थल पर जाना था.

हालांकि, स्निगधो 18 जुलाई को अपने भाई के साथ नहीं जा पाए क्योंकि उन्हें थोड़ी चोट लग गई थी और उन्होंने घर पर आराम करने का फैसला किया.

यही वो दिन था जब मुग्धो की गोली मारकर हत्या कर दी गई थी.

स्निग्धो ने कहा, “मुझे उस दिन वहां न होने का अफसोस है.”

मुग्धो के दोस्त, जो पुलिस द्वारा गोली चलाने के समय घटनास्थल पर थे, उन्होंने बाद में स्निगधो को बताया कि क्या हुआ था.

स्निग्धो ने कहा, “वहां बहुत अफरा-तफरी मची हुई थी. पानी बांटने के बाद, मुग्धो और उनके दोस्त आराम करने के लिए सड़क किनारे बैठ गए और तभी पुलिस भीड़ को तितर-बितर करने के लिए आई. लोग यहां वहां भागने लगे. चूंकि आंसू गैस का धुआं था, इसलिए मुग्धो अपनी आंखें रगड़ता रहे और लोगों से पानी पीने के लिए कहते रहे. तभी एक गोली आई और उनके सिर में लगी. उनकी मौके पर ही मौत हो गई.”

स्निग्धो ने बताया कि मुग्धो ने पहले भी छात्र विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था. उनका कहना है कि उन्होंने कभी नहीं सोचा था कि सरकार उनके भाई जैसे नागरिकों को अंधाधुंध गोलीबारी करके मार डालेगी.


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‘खुशी है कि वे आंदोलन के लिए कुछ कर पाए’

मुग्धो के घर की ओर जाने वाली सड़क का नाम बदलकर उनके सम्मान में रखा गया और हर जगह उनकी तस्वीर वाले कई बैनर लगे हैं. स्निग्धो ने बताया कि मुग्धो हमेशा से छात्रों के अधिकारों का चेहरा बनना चाहते थे, लेकिन परिवार को नहीं पता था कि इसकी उन्हें इतनी भारी कीमत चुकानी पड़ेगी.

हालांकि उनका परिवार मुग्धो को खोने के गम से कभी उबर नहीं पाएगा, लेकिन उन्हें खुशी है कि हर कोई मुग्धो को एक नायक के रूप में याद करेगा.

‘‘वे छात्र अधिकारों के लिए बहुत भावुक थे, हमेशा सच्चाई के साथ खड़े रहे और बदलाव में अहम भूमिका निभाना चाहते थे. वे हमेशा इन विरोध प्रदर्शनों में सबसे आगे रहे. इसलिए मुझे खुशी है कि आंदोलन में उनके योगदान को पूरे देश द्वारा पहचाना और स्वीकार किया जा रहा है.’’

The street named after Mugdho | Ananya Bhardwaj | ThePrint
मुग्धो के नाम पर सड़क | फोटो: अनन्या भारद्वाज/दिप्रिंट

हालांकि, उन्होंने कहा कि इन विरोध प्रदर्शनों में अपनी जान गंवाने वाले हर छात्र को स्वीकार किया जाना चाहिए. उन्होंने कहा, “सिर्फ मुग्धो ही नहीं, बल्कि सैकड़ों अन्य लोगों ने देश के लिए अपनी जान दी है. वे सभी पहचाने जाने और सम्मान पाने के हकदार हैं.”
उन्होंने कहा कि सभी को न्याय मिलना चाहिए. “आंदोलन सफल रहा, लेकिन इन सामूहिक हत्याओं को अंजाम देने वाले अपराधियों को सज़ा मिलनी चाहिए. ये सब अनकही नहीं रहनी चाहिए. ये सभी हत्याएं थीं.”

लेकिन, स्निग्धो को एक बात का अफसोस है. उनके पास अपने भाई के साथ कोई फोटो नहीं है.

नम आंखों से उन्होंने कहा, “हम हमेशा साथ में फोटो खिंचवाने में असहज महसूस करते थे, क्योंकि हमारे चेहरे एक जैसे हैं और अब, मुझे इस बात का बहुत अफसोस है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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