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Monday, 25 November, 2024
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ईरान को झुकाने की कड़ी में लगाए गए प्रतिबंध और भारत का हित

ईरान पर जो प्रतिबंध अमेरिका ने लगाए हैं उसके दायरे में भारत भी आ गया है. इससे भारतीय नागरिकों की ज़िंदगी प्रभावित हो सकती है, क्योंकि पाबंदी की वजह से पेट्रोल-डीज़ल महंगा हो जाएगा.

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ईरान का तेल आयात एकदम खत्म करने और उसे आर्थिक रूप से लाचार करने के लिए अमेरिका ने पिछले साल नवंबर में उस पर प्रतिबंध लगाए थे, लेकिन 2 मई, 2019 तक की छूट चीन, जापान, भारत, इटली, तुर्की, दक्षिण कोरिया, ताईवान, यूनान को दी गई थी, जो अब खत्म हो रही है. अब ये देश ईरान से तेल नहीं ले सकते. अगर लेंगे तो इन्हें भी अमेरिका की ओर से कुछ व्यापारिक प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा.

अमेरिका के गृह सचिव माइक पोम्पियो ने कहा कि ‘अब छूट एकदम खत्म की जा रही है, हम ईरान के तेल आयात को जीरो पर लाएंगे.’ ईरान की अर्थव्यवस्था तेल पर आधारित है. पहले भी अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगाए हैं. इन प्रतिबंधों का मकसद ईरान के परमाणु कार्यक्रम को दबाव बना कर बंद करवा देना है. अमेरिका ने ईरान के सामने 12 शर्तें रखी हैं. जिसमे परमाणु कार्यक्रम का निरीक्षण, परिष्कृत यूरेनियम पर प्रतिबंध लगाना, परमाणु मिसाइल पर प्रतिबंध लगाना, सीरिया के मुद्दे पर दखल न देना और हिजबुल्ला तथा हमास को समर्थन बंद करना आदि शामिल हैं.

पहले भी ईरान में आयतुल्लाह ख़ामेनई का शासन खत्म करने की कोशिश हुई हैं. लेकिन ईरान का साथ चीन और रूस ने दिया. जिसके कारण ईरान पर ज्यादा फर्क नहीं पड़ा. लेकिन इस बार नहीं कहा जा सकता कि ईरान यह प्रतिबंध झेल लेगा. प्रतिबंधों के कारण महंगाई बढ़ने पर जनता में ईरानी शासन के प्रति असंतोष की भावना मजबूत होगी.

ईरान की अर्थव्यवस्था में पिछले साल ही 6 प्रतिशत गिरावट आ गयी थी. डॉलर के मुकाबले ईरानी मुद्रा रियाल बहुत नीचे पहुंच गई है. ईरान के इन प्रतिबंधों के पीछे सऊदी अरब शासन और इजरायल का बहुत बड़ा हाथ है. फिलिस्तीन के मुद्दे पर, ईरानी सरकार द्वारा हमास, हिज्बुल्लाह और अन्य संगठनों को समर्थन के कारण इजरायल की ईरान से ठनी हुई है.

ईरानी नेताओं ने कई बार इजरायल को दुनिया के नक्शे से मिटाने की बात भी कही है. इजरायल समर्थक लॉबी अमेरिका में बहुत सक्रिय है. उनका दबाव भी अमेरिकी प्रतिबंधों के लिए कुछ हद तक ज़िम्मेदार है. दूसरा कारण सऊदी अरब है. सऊदी अरब के साथ ईरान की शत्रुता है. इसका कारण साम्प्रदायिक और नस्ली दोनों हैं. दोनों देश इस्लाम के अलग- अलग संप्रदायों की लीडरी का दावा ठोकते हैं. सऊदी अरब सुन्नियों के वहाबी इस्लाम का नेता बनता है तो ईरान शिया सम्प्रदाय का. सऊदी अरब, अरबों का देश है तो ईरान, आर्य नस्ल का.

इसके अलावा मिडल-ईस्ट और इस्लामिक वर्ल्ड में लीडरी के लिए भी दोनों में संघर्ष है. इस मुद्दे पर ईरान, सऊदी अरब पर भारी पड़ता है क्योंकि ईरान एक क्षेत्रीय शक्ति है और इराक के साथ 10 साल युद्ध लड़ चुका है. ईरान में धार्मिक शासन है तो सऊदी अरब में राजशाही. जब 1979 में ईरान में इस्लामिक क्रांति हुई तो सऊदी अरब ने इस क्रांति से डर कर ईरान के चारों और वहाबी मदरसों को बहुत फंडिंग की. जिससे पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान में भारी मात्रा में इस्लामी अतिवादी उठ खड़े हुए और उन्होंने एशिया के बड़े इलाको में आतंक मचा दिया.

सऊदी अरब के राजपरिवार को डर था कि कहीं ईरानी इस्लामिक क्रांति से प्रेरित होकर सऊदी जनता राजशाही समाप्त करने की मांग न करने लगे. इसी कारण, ऐसा आरोप है कि उन्होंने सद्दाम हुसैन को 40 अरब डॉलर दिए और ईरान को युद्ध में उलझा कर रखा.

इसी कड़ी में पिछले दिनों अमेरिका ने ईरानी सेना के दस्ते इस्लामिक रेवोल्यूशनरी गार्ड्स को आतंकवादी संगठन घोषित कर दिया. इस घोषणा के बाद अब अमेरिका को ईरान पर हमला करने के लिए सीनेट में अनुमति नहीं लेनी पड़ेगी.

इन प्रतिबंधों का भारत पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

भारत, चीन के बाद ईरानी तेल का दूसरा सबसे बड़ा खरीदार है, ईरान से तेल न आने पर भारत को अन्य विकल्प ढूंढने होंगे, नहीं तो पेट्रोल-डीजल का दाम बढ़ना तय है. सऊदी अरब के युवराज मुहम्मद-बिन-सलमान ने फरवरी में भारत यात्रा के दौरान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सामने प्रस्ताव रखा था कि अगर भारत, ईरान से तेल खरीदना बंद कर दे तो सऊदी अरब सस्ते में भारत को तेल दे सकता है. ईरान के साथ भारत के पुराने संबंधों को ध्यान में रखकर नरेंद्र मोदी ने यह प्रस्ताव ठुकरा दिया.

इस पूरे विवाद में सबसे ज्यादा फायदा सऊदी अरब को होगा, जिसका तेल अब ज्यादा बिकेगा. सऊदी अरब, अमेरिका का विश्वस्त सहयोगी है. सऊदी अरब की रक्षा का जिम्मा भी अमेरिकी सरकार को ठेके पर सऊदी राज परिवार ने दिया हुआ है. सऊदी अरब सैनिक शक्ति के मामले में कमजोर देश है. सऊदी युवराज मुहम्मद-बिन-सलमान की योजना सऊदी अरब को कई मामलो में आत्मनिर्भर एवं मजबूत देश बनाना है और इसके लिए उसे ईरान से आगे जाना होगा.

ईरान के चाहबहार बंदरगाह में भी भारत ने अरबों रूपये निवेश कर रखे हैं. भारत ने इस बंदरगाह को पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह के मुकाबले विकसित किया था. भारत का मकसद अफ़ग़ानिस्तान और मध्य एशियायी देशों में चाहबहार के माध्यम से माल भेजना है. अगर भारत में सहज तेल आपूर्ति अन्य देशों से नहीं हुई तो तेल का दाम बढ़ना तय है. भारत को इस मुद्दे को सुलझाने के लिए बीच का रास्ता निकालना चाहिए, जिससे अमेरिका के साथ संबंध भी प्रभावित न हो.

(लेखक मध्य पूर्व राजनीति एवं ईरान मामलो के विशेषज्ञ हैं.)

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