पुराने ढाका सेंट्रल जेल के अंदर फांसी के तख्ते के सामने खड़े होकर, जहां उनके पिता को 46 साल पहले फांसी दी गई थी, कमरुज्जमां लेनिन कहते हैं कि वह तय नहीं कर सकते कि उन्हें दुख होता है या गुस्सा आता है, या दोनों. दुखी क्योंकि उनके पिता की “अन्यायपूर्ण फांसी” के बाद उनके परिवार पर बड़ी त्रासदी आ गई और गुस्से में क्योंकि बांग्लादेश में राजनीतिक हिंसा का कोई अंत नहीं हुआ है – 7 जनवरी के राष्ट्रीय चुनावों से ठीक दो दिन पहले एक ट्रेन में आग लगा दी गई थी. लेनिन के लिए, ऐसी घटनाएं बचपन की उन यादों को ताज़ा कर देती हैं जो कि 1977 में इस जेल के अंदर हुआ था.
पुराने ढाका में स्थित इस जेल में अब कैदी नहीं रहते हैं. 2016 में, जेल को केरानीगंज क्षेत्र में नए परिसर में स्थानांतरित कर दिया गया. लेकिन पुरानी जेल में, जहां 19वीं शताब्दी तक मुगल किला खड़ा था, वहां 1971 के बांग्लादेशी स्वतंत्रता संग्राम के स्वतंत्रता सेनानियों के साथ-साथ लेनिन के पिता जैसे लोगों को भी रखा गया है, जिन्हें इतिहास भूल गया है.
शेख हसीना सरकार ने स्वतंत्रता संग्राम के नायकों को याद करने के लिए जेल की जगह पर एक संग्रहालय बनाने का वादा किया है, लेकिन उनकी सरकार में हिंसा का चक्र, जिसमें जबरन लोगों को गायब करना भी शामिल है, कुछ बांग्लादेशियों के अंदर इस परियोजना के प्रति संदेह पैदा कर सकता है.
लगभग 50 साल की उम्र वाले ढाका के एक बिजनेसमैन लेनिन कहते हैं, “मेरे पिता भी एक वॉर हीरो थे. बांग्लादेश के पूर्व राष्ट्रपति जनरल जियाउर्रहमान ने उन्हें और उनके जैसे एक हजार से अधिक अन्य लोगों को इस जेल के अंदर फांसी दे दी थी क्योंकि वह 1971 के इतिहास को मिटा देना चाहते थे. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी), जिसकी उन्होंने स्थापना की, वह अभी भी ऐसी हिंसा का सहारा ले रही है जिसे हमने चुनाव से पहले ढाका की सड़कों पर देखा जिसकी वजह से गलियां खून से रंग गई थीं.”
लेकिन लेनिन इस बात से खुश हैं कि शेख हसीना के नेतृत्व वाली सरकार उनके पिता और अन्य स्वतंत्रता सेनानियों के सम्मान में एक संग्रहालय बनाएगी. “यह शायद मेरी यातनापूर्ण यादों को कुछ हद कम कर देगा.”
एक संग्रहालय और यादें
ढाका जेल संग्रहालय परियोजना के सलाहकार नजमुल हुसैन का कहना है कि वर्षों से, जेल में छोटे अपराधियों को रखा जाता था, जिन्हें चोरी, डकैती, हत्या और बलात्कार जैसे अपराधों के आरोप में लाया जाता था. बांग्लादेश की आजादी के दशक (1971 से 1977) पर केंद्रित काम करने वाले राजनीतिक इतिहास के शोधकर्ता कहते हैं, “यह आम अपराधियों को रखने की जगह नहीं है. यह एक ऐतिहासिक स्थल है जहां बांग्लादेश के विचार के लिए सर्वोच्च बलिदान देने वालों के लिए शोक मनाया जाना चाहिए, उन्हें याद किया जाना चाहिए और उन्हें सेलिब्रेट किया जाना चाहिए.”
बांग्लादेश में अपने उद्भव की खूनी कहानी को सेलिब्रेट करने के लिए मुक्ति संग्रहालय है. यहां वे हथियार हैं जिनसे मुक्ति वाहिनी के सदस्यों ने पश्चिमी पाकिस्तान की सेना से लड़ाई की. इसके अलावा वाहिनी सदस्यों के निजी सामान और मारे गए लोगों की सामूहिक कब्रों से प्राप्त खोपड़ियां और हड्डियां भी यहां हैं.
हुसैन कहते हैं, “ढाका जेल संग्रहालय खुद से खतरे के बारे में कहानी कहता है. बांग्लादेश के अलग देश बनने के बाद भी उसके भीतर कुछ ऐसी ताकतें थीं जो नहीं चाहती थीं कि उसका अस्तित्व रहे. अगर लिबरेशन वॉर म्यूजियम बाहर से खतरे के बारे में है, तो ढाका जेल संग्रहालय भीतर के खतरों के बारे में होगा, जब हमारी अपनी सेना का कुछ हिस्सा खुद के और देश के खिलाफ हो गया.”
हुसैन का कहना है कि नया संग्रहालय कमरुज्जमां लेनिन के पिता जैसे पुरुषों की स्मृति में एक उचित श्रद्धांजलि होगी.
1977 और स्वतंत्रता सेनानियों की फांसी
1977 में लेनिन मुश्किल से पांच साल के थे जब 1971 के स्वतंत्रता संग्राम में मुक्ति जोधा (स्वतंत्रता सेनानी) के रूप में लड़ने वाले उनके पिता सैयदुर्रहमान, को फांसी दे दी गई थी. बांग्लादेश के आज़ाद होने के बाद सईदुर्रहमान वायुसेना में शामिल हो गए थे. बड़े होते हुए, लेनिन को आश्चर्य हुआ कि एक स्वतंत्रता सेनानी और सशस्त्र बलों के सदस्य को उनके जैसे हजारों अन्य लोगों के साथ फांसी क्यों दी गई.
“बहुत बाद में, मुझे मेरे जैसे अन्य लोग मिले जो वॉर हीरोज़ के परिवार के सदस्य थे. वे वॉर हीरोज़ जिन्हें ज़िया के लोगों ने पकड़ लिया था, यातनाएं दीं और बाद में फांसी दे दी थी. हमने मेयर कन्ना या द मदर्स क्राई नामक एक संगठन बनाया. यह जेल उन खूनी दिनों की याद दिलाती है.
मेयर कन्ना के मुख्य समन्वयक हुसैन कहते हैं कि बांग्लादेश को लेकर जनरल जिया का विज़न इस्लामिक था और वह बंगबंधु शेख मुजीबुर्रहमान और उन सभी स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति को मिटा देना चाहते थे जिन्होंने 1971 में एक धर्मनिरपेक्ष बांग्लादेश के लिए लड़ाई लड़ी थी.
हुसैन बताते हैं कि कैसे देश के अंदर के नैरेटिव को बांग्लादेशी स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ करने के लिए जनरल ज़िया ने एक अंतर्राष्ट्रीय संकट का इस्तेमाल किया. हुसैन कहते हैं, “जापानी रेड आर्मी के पांच सशस्त्र सदस्यों ने पेरिस से टोक्यो जा रही जापान एयरलाइंस की फ्लाइट 472 को बंबई में रोककर अपहरण कर लिया था और इसे 28 सितंबर 1977 को ढाका में उतरने का आदेश दिया था. बांग्लादेश वायु सेना के प्रमुख ने अपहरणकर्ताओं से बातचीत की. साथ-साथ, बांग्लादेश वायु सेना के भीतर एक प्रकार का विद्रोह चल रहा था.”.
हुसैन ने कहा कि जनरल ज़िया अपहरण की साजिश का दोष अपने ही सशस्त्र बलों के सदस्य पर डालना चाहते थे. उन्होंने कहा, “ज़िया चाहते थे कि सशस्त्र बलों से उन लोगों को हटा दिया जाए जो आज़ादी की लड़ाई के लिए लड़े थे. कम से कम 1156 सैन्यकर्मियों को या तो फांसी दे दी गई या फिर फायरिंग दस्ते का सामना करना पड़ा. इससे तीन साल पहले शेख मुजीब की हत्या कर दी गई थी. देश में इस पागलपन को रोकने वाला कोई नहीं था.”
लेनिन के पिता फांसी पर चढ़ाए गए लोगों में से एक थे.
मेयर कन्ना बनाम मेयर डक
मेयर कन्ना ने 1977 के शहीदों के लिए न्याय की मांग करते हुए विरोध प्रदर्शन किया है. 8 नवंबर 2022 को, संगठन के सदस्यों ने ढाका के संसद भवन क्षेत्र में चंद्रिमा उद्यान में जनरल जियाउर्रहमान की कब्र के पास एक ह्यूमन चेन बनाई. वे चाहते थे कि कब्र को हटा दिया जाए और धमकी दी गई कि यदि मांग पूरी नहीं की गई, तो वे खुद ही ऐसा करेंगे.
7 नवंबर 1975 के तख्तापलट में मारे गए शहीद कर्नल खोंडकर नजमुल हुदा की बेटी और कानूनविद् नाहीद एज़हर खान ने द बिजनेस पोस्ट की रिपोर्ट में कहा, “ज़िया ने 47 साल पहले हमारे पिता की बेरहमी से हत्या कर दी थी”, उन्होंने आगे कहा, “एक हत्यारे का शव नहीं रह सकता. संसद भवन जैसे पवित्र क्षेत्र में.”
tbsnews.net की 2022 रिपोर्ट के मुताबिक 2009 में शेख हसीना की सरकार के सत्ता में आने के बाद से जबरन गायब किए गए पीड़ितों के परिवारों के एक समूह ‘मेयर डाक’ या मदर्स कॉल की समन्वयक संजीदा इस्लाम से जब बांग्लादेश में अमेरिकी राजदूत पीटर डी हास ढाका के शाहीनबाग में मिलने गए, तो मेयर कन्ना के सदस्यों ने उनसे कहा कि इसके बजाय 1977 पर गौर करने की ज़रूरत है.
संजीदा बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेता सजेदुल इस्लाम सुमोन की बहन हैं, जो कथित तौर पर 2013 में हुई जबरन गुमशुदगी का शिकार हैं.
ढाका स्थित 22 वर्षीय पत्रकार सकलैन रिज़वी कहते हैं कि चूंकि बांग्लादेश का हिंसक अतीत इसके वर्तमान को अंधकारमय बना रहा है, जेल संग्रहालय इस बात की याद दिलाने वाला सबसे उपयुक्त होगा कि यह सब कैसे शुरू हुआ. रिज़वी ने दिप्रिंट को बताया, “इस चुनाव के दौरान भी लोग सड़कों पर मारे गए. जब भी ढाका सेंट्रल जेल में संग्रहालय बनेगा, तो यह हमारे इतिहास के एक हिस्से पर प्रकाश डालेगा, जिसके बारे में मेरी पीढ़ी के कई लोगों को पता भी नहीं है,”
लिबरेशन वॉर म्यूजियम के ट्रस्टी मोफिदुल हक के लिए, ढाका जेल संग्रहालय एक स्वागत योग्य कदम है. उनका कहना है कि नया संग्रहालय बांग्लादेश की कहानी को उसके अपने नागरिकों और देश में आने वाले विदेशियों दोनों के लिए प्रभावी ढंग से आगे ले जाएगा, जो 1977 में क्या हुआ था, इसके बारे में ज्यादा नहीं जानते हैं.
संग्रहालय को 2018 में मंजूरी दी गई थी और शेख हसीना ने वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से इस पहल का उद्घाटन किया था. बांग्लादेश के गृह मंत्रालय के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि अब जब हसीना सत्ता में वापस आ गई हैं, तो इस परियोजना पर तेजी से काम किया जाएगा. संग्रहालय में 1977 के शहीदों का संक्षिप्त इतिहास रखा जाएगा, वे कौन थे और उन्होंने कैसे सर्वोच्च बलिदान दिया. योजना के मुताबिक जेल क्षेत्र को तीन जोन या खंड में बांटा जाएगा.
सूत्रों से पता चला है कि पहले खंड में एक बहुउद्देश्यीय भवन परिसर, एक सम्मेलन केंद्र, सिनेप्लेक्स, स्विमिंग पूल और एक जल निकाय होगा. ज़ोन दो में मस्जिद, किताब की दुकान, फूलों की दुकान, एक जल निकाय और भूमिगत पार्किंग स्थान को रिस्टोर किया जाएगा. तीसरे जोन में शेख मुजीबुर्रहमान को समर्पित एक संग्रहालय, चार मारे गए नेताओं – एएचएम कमरुज्जमां, ताजुद्दीन अहमद, सैयद नजरूल इस्लाम और कैप्टन मुहम्मद मंसूर अली – की याद में एक संग्रहालय और एक बगीचा होगा. परियोजना के लिए निर्माण कार्य पूरे जोरों पर है और संग्रहालय 2026 में खुलने वाला है.
बांग्लादेशी शिक्षाविद डॉ. शरीन शाजहां नाओमी का कहना है कि 1977 की घटनाएं ज्यादातर उन लोगों की यादों तक ही सीमित हैं, जिन्होंने जनरल जिया के “पागलपन” के कारण अपने प्रियजनों को खो दिया था. “1977 में सशस्त्र बलों के सबसे अच्छे और प्रतिभाशाली लोगों की हत्या कर दी गई थी. वे लोग जो सेना के भीतर बांग्लादेश के धर्मनिरपेक्ष चरित्र को अक्षुण्ण बनाए रखे हुए थे. यह बात जनरल जिया को पसंद नहीं आई क्योंकि उस समय का सैन्य शासन इस्लाम का राजनीतिकरण करना चाहता था और बांग्लादेश को पाकिस्तान के ढांचे में ढालना चाहता था. नाओमी कहती हैं, ”जेल संग्रहालय हमें ऐसे प्रयोग के खतरों की याद दिलाएगा.”
(संपादनः शिव पाण्डेय)
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