(सिओभान ओडीन, रिसर्च फेलो, द मटिल्डा सेंटर फॉर रिसर्च इन मेंटल हेल्थ एंड सब्स्टेंस यूज, यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी; एलिजाबेथ समरेल, प्राध्यापक, स्कूल ऑफ साइकोलॉजी, फैकल्टी ऑफ हेल्थ एंड मेडिकल साइंसेज, यूनिवर्सिटी ऑफ एडिलेड; टॉम डेंसन, मनोविज्ञान के प्रोफेसर, यूएनएसडब्ल्यू सिडनी)
सिडनी, 23 अप्रैल (द कन्वरसेशन) इनसान अपने रोजमर्रा के जीवन में ऐसी कई चीजों से दो-चार होता है, जो गुस्से का भाव जगाती हैं। राजनीतिक विमर्श हो या सामाजिक अन्याय, जलवायु परिवर्तन हो या बढ़ती महंगाई, दुनिया एक प्रेशर कुकर की तरह लग सकती है।
शोध से पता चलता है कि दुनिया की लगभग एक-चौथाई आबादी किसी भी दिन गुस्सा महसूस करती है। हालांकि, गुस्सा एक सामान्य मानवीय भावना है, लेकिन अगर यह तीव्र हो और इसे प्रभावी रूप से नियंत्रित न किया जाए, तो यह जल्दी ही आक्रामकता का कारण बन सकता है और आपको या दूसरों को नुकसान भी पहुंचा सकता है।
बात-बात पर गुस्सा करने से हमारे मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक असर पड़ता है तथा हमारे रिश्ते भी प्रभावित हो सकते हैं।
ऐसे में गुस्से के भाव को काबू में रखने के लिए हमें क्या करना चाहिए? हमारे नये शोध से पता चलता है कि गुस्से को नियंत्रित करने और आक्रामकता में कमी लाने के लिए ‘माइंडफुलनेस’ एक कारगर हथियार हो सकता है।
‘माइंडफुलनेस’ क्या है
-माइंडफुलनेस या सचेतना ध्यान के माध्यम से विकसित किया जाने वाला एक संज्ञात्मक कौशल है, जिसमें व्यक्ति वर्तमान के अपने विचारों, अनुभवों, भावनाओं और शारीरिक संवेदनाओं का बिना किसी विश्लेषण के और पूरी स्वीकार्यता से अवलोकन करता है।
‘माइंडफुलनेस’ का अभ्यास हजारों वर्षों से किया जा रहा है, खासतौर पर बौद्ध धर्म में। लेकिन मानसिक स्वास्थ्य की बेहतरी और भावनाओं पर अधिक प्रभावी नियंत्रण के लिए हाल-फिलहाल में इसे अधिक व्यापक रूप से अपनाया गया है।
‘माइंडफुलनेस’ की कला कई माध्यमों से सिखाई जाती है, जिसमें व्यक्तिगत कक्षाएं, आवासी कार्यक्रम और ऑनलाइन ऐप के जरिये प्रशिक्षण शामिल है। सभी माध्यमों में व्यक्ति को ध्यान का गहन अभ्यास कराया जाता है, जिससे उसे अपने विचारों, भावनाओं और परिवेश के प्रति अधिक जागरूक बनने में मदद मिलती है।
‘माइंडफुलनेस’ का मानसिक स्वास्थ्य लाभ से सीधा संबंध पाया गया है, जिसमें चिंता, बेचैनी, अवसाद और तनाव के भाव में कमी शामिल है।
तंत्रिका विज्ञान अनुसंधान यह भी बताता है कि ‘माइंडफुलनेस’ के अभ्यास से मस्तिष्क के उन हिस्सों में हलचल घट जाती है, जो भावनात्मक प्रतिक्रिया के लिए जिम्मेदार होते हैं, और उन हिस्सों में हलचल बढ़ जाती है, जिन्हें आत्म-नियमन (विचारों, भावनाओं और प्रतिक्रिया को प्रबंधित करना) की क्षमता निर्धारित करने के लिए जाना जाता है।
इस तरह, ‘माइंडफुलनेस’ के अभ्यास से भावनात्मक जागरूकता को बढ़ावा मिल सकता है, जो क्रोध जैसी नकारात्मक भावनाओं के प्रभावी नियंत्रण के लिए अहम है। और जब व्यक्ति का आपा नियंत्रित रहता है, तो वह जाहिर तौर पर उन चीजों पर ध्यान दे पाता है, जो वाकई मायने रखती हैं और सार्थक कदम उठा पाता है।
शोध से पुष्टि
-हमने एक शोध के जरिये यह समझने की कोशिश की कि क्या ‘माइंडफुलनेस’ वाकई गुस्से और आक्रामकता पर काबू पाने में मददगार है। इस बाबत हमने अलग-अलग देशों और आबादी पर हुए 118 अध्ययन के नतीजों का विश्लेषण किया।
इन अध्ययन में ऐसे प्रतिभागी भी शामिल थे, जिनमें ‘माइंडफुलनेस’ की कला स्वाभाविक रूप से मौजूद थी। जबकि, ऐसी प्रतिभागियों ने भी हिस्सा लिया, जो विभिन्न माध्यमों से ‘माइंडफुलनेस’ की कला सीखने की कवायद में जुटे थे।
जिन प्रतिभागियों में ‘माइंडफुलनेस’ की कला स्वाभाविक रूप से मौजूद थी, वे वर्तमान भावनाओं पर ध्यान केंद्रित करने और बिना विश्लेषण के चीजों को स्वीकार करने में अधिक पारंगत पाए गए। ऐसे प्रतिभागियों में गुस्से और आक्रामकता का भाव भी कम पाया गया।
जादू की छड़ी नहीं
-‘माइंडफुलनेस’ की कला कोई जादू की छड़ी नहीं है। व्यक्ति को यह उम्मीद नहीं करनी चाहिए कि इससे कुछ ही समय में गुस्से और आक्रामकता के भाव पर प्रभावी नियंत्रण हासिल हो जाएगा।
किसी भी नये कौशल की तरह, ‘माइंडफुलनेस’ का अभ्यास भी शुरुआत में चुनौतीपूर्ण लग सकता है और इसमें महारत हासिल करने में थोड़ा अधिक समय लग सकता है। यही नहीं, ‘माइंडफुलनेस’ का सर्वाधिक लाभ तभी हासिल किया जा सकता है, जब इसका नियमित रूप से अभ्यास किया जाए।
यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि अकेले ‘माइंडफुलनेस’ के अभ्यास से अवसाद या अन्य मानसिक परेशानियों से पूरी तरह से निजात नहीं पाई जा सकती। व्यक्ति को भावनात्मक चुनौतियों के बेहतर प्रबंधन के लिए ‘माइंडफुलनेस’ के अभ्यास के साथ उपयुक्त मानसिक स्वास्थ्य पेशेवर की भी मदद लेनी चाहिए।
(द कन्वरसेशन) पारुल पवनेश
पवनेश
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