नई दिल्ली: बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट ने रविवार को 2013 के हाई कोर्ट के उस फैसले को पलट दिया, जिसमें बांग्लादेश जमात-ए-इस्लामी को देश के चुनाव आयोग में राजनीतिक दल के रूप में पंजीकृत करना “अवैध” घोषित किया गया था. अपदस्थ शेख हसीना के नेतृत्व वाली अवामी लीग सरकार ने पिछले साल अगस्त में जमात पर प्रतिबंध लगा दिया था, लेकिन सत्ता संभालने के तुरंत बाद मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व वाली अंतरिम सरकार ने उसी महीने बाद में प्रतिबंध हटा लिया था.
इसके बावजूद, चुनाव लड़ने के लिए जमात को अभी भी चुनाव आयोग में पंजीकृत होना ज़रूरी था. शीर्ष न्यायालय के फैसले ने अब इसके लिए रास्ता साफ कर दिया है.
जमात के पंजीकरण को लेकर कानूनी लड़ाई 25 जनवरी, 2009 को बांग्लादेश तरीकत फेडरेशन के महासचिव मौलाना सैयद रजाउल हक चांदपुरी और 24 अन्य लोगों द्वारा एक रिट याचिका दायर किए जाने के बाद शुरू हुई थी. उन्होंने जमात के पंजीकरण को अवैध घोषित करने की मांग की और 1 अगस्त, 2013 को हाई कोर्ट ने उनके पक्ष में फैसला सुनाया, रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया और कहा कि धर्मनिरपेक्षता के विरोध के कारण पार्टी का चार्टर असंवैधानिक है.
इसके बाद, बांग्लादेश चुनाव आयोग ने 11वें आम चुनाव से ठीक पहले अक्टूबर 2018 में औपचारिक रूप से जमात का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया.
जमात ने हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपीलीय प्रभाग में अपील की, जिसने 3 दिसंबर, 2024 को मामले की सुनवाई शुरू की. मई 2025 में सुनवाई खत्म हुई और रविवार को फैसला सुनाया गया.
फैसले के बाद, जमात-ए-इस्लामी के वकील बैरिस्टर एहसान ए सिद्दीक ने द डेली स्टार को बताया कि पार्टी का रजिस्ट्रेशन अब बहाल कर दिया गया है.
उन्होंने कहा, “चुनाव आयोग अब जमात के चुनाव चिन्ह सहित लंबित मुद्दों को संबोधित करने के लिए आगे बढ़ेगा.” उन्होंने कहा कि पार्टी जल्द ही ज़रूरी फैसलों के लिए चुनाव आयोग को एक औपचारिक आवेदन प्रस्तुत करेगी.
यह कदम बांग्लादेश की सुप्रीम कोर्ट के पिछले हफ्ते के फैसले के बाद उठाया गया है, जिसमें वरिष्ठ जमात-ए-इस्लामी नेता ए.टी.एम. अजहरुल इस्लाम की मौत की सज़ा को पलट दिया गया और उन्हें 1971 के युद्ध से जुड़े युद्ध अपराधों के आरोपों से बरी कर दिया गया था, जिससे अंतर्राष्ट्रीय अपराध न्यायाधिकरण (आईसीटी) के पिछले फैसले को प्रभावी रूप से निष्प्रभावी कर दिया गया था.
1971 में बांग्लादेश की स्वतंत्रता का विरोध करने वाली जमात-ए-इस्लामी पार्टी के शीर्ष नेता इस्लाम को युद्ध के दौरान मानवता के खिलाफ कथित अपराधों के लिए गिरफ्तार किया गया था और उन पर मुकदमा चलाया गया था. 2014 में आईसीटी द्वारा उन्हें दोषी ठहराए जाने और सज़ा सुनाए जाने पर देश और विदेश दोनों जगह तीखी प्रतिक्रिया हुई थी.
न्यायालय ने जेल अधिकारियों को 73-वर्षीय नेता को रिहा करने का भी निर्देश दिया था, जब तक कि वह अन्य मामलों के संबंध में वांछित न हो.
राज्य और बचाव पक्ष के वकीलों के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि सबूतों का पर्याप्त मूल्यांकन किए बिना मौत की सज़ा सुनाई गई थी, जिसके कारण इसे “अन्यायपूर्ण फैसला”कहा गया.
न्यायाधिकरण ने मूल रूप से अजहरुल को नरसंहार, हत्या और बलात्कार सहित कई आरोपों में मौत की सज़ा सुनाई थी. अपीलीय प्रभाग ने 23 अक्टूबर, 2019 को अपील की सुनवाई के बाद दोषसिद्धि को बरकरार रखा. जवाब में, इस्लाम ने 19 जुलाई, 2020 को एक याचिका दायर की, जिसमें फैसले की समीक्षा की मांग की गई और उसी अदालत के समक्ष 14 कानूनी दलीलें पेश की गईं.
इस्लाम को बरी करने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करते हुए, यूनुस की अंतरिम सरकार के पूर्व कानून सलाहकार आसिफ नजरुल ने फैसले को पिछले साल के छात्र-नेतृत्व वाले विरोध आंदोलन का प्रत्यक्ष परिणाम बताया, जिसने 5 अगस्त को प्रधानमंत्री शेख हसीना की अवामी लीग सरकार को गिरा दिया था.
नज़रुल ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा, “न्याय के इस क्षण को सक्षम करने का श्रेय जुलाई-अगस्त के जन आंदोलन के नेतृत्व को जाता है.” उन्होंने पहले पार्टी पर प्रतिबंध हटाने की भी सराहना की, इसे राजनीति से प्रेरित बताया.
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