scorecardresearch
Monday, 16 December, 2024
होमविदेशकोलंबो में छोड़ी गई आंसू गैस से मेरी हालत खराब तो हुई लेकिन उसका इलाज कराने में ज़्यादा आंसू निकल आए

कोलंबो में छोड़ी गई आंसू गैस से मेरी हालत खराब तो हुई लेकिन उसका इलाज कराने में ज़्यादा आंसू निकल आए

काम पर निकले दिप्रिंट के पत्रकारों के अनुभवों और उनके पीछे की कहानी- iWitness.

Text Size:

कोलंबो: श्रीलंका में आपके साथ सबसे बुरी चीज़ ये हो सकती है कि आपको किसी डॉक्टर की ज़रूरत पड़ जाए. आपको सिर्फ बीमारी को ही नहीं झेलना है. आपको डॉक्टर तक पहुंचने के लिए कोई वाहन तलाशने का तनाव झेलना है, ये भी सोचना है कि आपके इलाज के लिए कोई डॉक्टर मिलेगा कि नहीं, और इस सारी मुसीबत से निपटने में आपको ख़र्च कितना आएगा.

उस सब के ऊपर, दवाओं की क़िल्लत भी बढ़ती जा रही है, इसलिए डॉक्टर के नुस्ख़े का कितना फायदा है?

ऐसा लगता है कि या तो दिल्ली से कोलंबो आते हुए मेरी आंख में कुछ आ गया था, या फिर श्रीलंका के राष्ट्रपति तथा प्रधानमंत्री के भीड़-भाड़ भरे अधिकारिक सरकारी परिसर में जाते हुए- जिसे भीड़ के लिए खोल दिया गया था, जब 9 जुलाई को उसकी महलनुमा इमारतों में हज़ारों-लाखों प्रदर्शानकारी घुस आए थे, और गोटाबाया (तथा रानिल) के अपने घर लौटने की मांग कर रहे थे.

मैं ख़ुद से दवा करने की कोशिश कर रही थी, और मुझे लगा कि उससे ठीक हो जाएगी. लेकिन 13 जुलाई को मेरी आंख पर और ज़्यादा चोट पड़ गई, जब उसमें अच्छी ख़ासी आंसू गैस आ गई जिसे प्रधानमंत्री कार्यालय के बाहर जमा हो रही भीड़ को तितर-बितर करने के लिए छोड़ा गया था.

लगभग पूरी रात बिना सोए बीत गई- राष्ट्रपति गोटाबाया के इस्तीफे के इंतज़ार में, जो कभी आया ही नहीं.

अगले दिन, मैं सुबह 5.30 बजे उठ गई. मेरी आंखें बिल्कुल लाल और धुंधली थीं और ख़राब होती जा रहीं थीं.

Regina Mihindukulasuriya, shortly after being teargassed | Regina Mihindukulasuriya | ThePrint

कोलंबो दिल्ली की तरह नहीं है जहां एक गूगल सर्च आपको आंखों के 20 डॉक्टर बता देती है, जिनके व्हाट्सएप नंबरों पर आप उनसे सीछे संपर्क कर सकते हैं. नहीं, कोलंबो में आपको सिर्फ मुठ्ठीभर डॉक्टर मिलेंगे, और उनमें से किसी के कॉन्टेक्ट नंबर आपको गूगल पर नहीं दिखेंगे. उनके पास सिर्फ किसी अस्पताल के ज़रिए पहुंचा जा सकता है.

मुझे समझ नहीं आ रहा था कि क्या करूं. क्या मुझे किसी फार्मेसी के खुलने का इंतज़ार करना चाहिए,जहां से मैं बिना पर्ची के आंख के ड्रॉप्स ले सकती हूं? क्या मुझे किसी अस्पताल जाना चाहिए? तकलीफ में 9 बजे तक इंतज़ार करने के बाद, मैंने सबसे नज़दीकी अस्पताल की ओपीडी जाने का फैसला किया, क्योंकि जो आई ड्रॉप्स मैं पहले ही कोलंबो में 330 रुपए में ख़रीद चुकी थी, उनसे काम नहीं बना था.

थोड़ी सी राहत, लेकिन देर तक नहीं

किसी भी सफर की तैयारी किसी छोटे ड्रामे से कम नहीं है. ऑटो तक़रीबन नदारद हैं, और जो हैं भी वो जेब पर डाका डालते हैं, क्योंकि या तो उन्होंने ईंधन कालाबाज़ारी में ख़रीदा है (एक लीटर पेट्रोल 470 एलकेआर या 104 रुपए का है, लेकिन ब्लैक मार्केट में इसके दाम 2,500 एलकेआर-लगभग 555 रुपए के क़रीब हैं), या कई दिन ईंधन के लिए लाइन में खड़े होकर बिताए हैं.

राहत की बात सिर्फ ये थी कि मैं रात में कोलंबो में अपनी एक दोस्त के यहां ठहरी थी, और केवल दो मिनट में किरुला रोड पर स्थित असीरी मेडिकल हॉस्पिटल पहुंच गई. इन दिनों यहां लोग भगवान को बहुत याद करते हैं, क्योंकि हर चीज़ आपके नियंत्रण से बाहर लगती है. मुझे भी भगवान याद आ गया और मैंने उसका धन्यवाद किया, कि उसने मुझे एक अस्पताल के पास रखा क्योंकि मेरी आंखें बिल्कुल भी अच्छी नहीं हो रहीं थीं.

दस मिनट से भी कम समय में, मैं ओपीडी यूनिट की एक डॉक्टर से मिलने में कामयाब हो गई.

‘हम इतने लाचार हैं…’

परामर्श के कुछ ही मिनटों में मेरी राहत काफूर हो गई, क्योंकि डॉक्टर बहुत निश्चित नज़र नहीं आ रही थी कि मेरा इलाज कैसे करे. उसने मेरा ब्लड प्रेशर चेक किया, मेरी ज़बान देखी, मुझसे पूछा कि क्या मुझे कोई एलर्जी है. फिर उसने ब्लाइंड्स नीचे कीं, एक उपकरण से मेरी आंखों पर हल्की रोशनी डाली और फिर कहा कि वो मेरा इलाज नहीं कर सकती, क्योंकि मुझे कोई एलर्जी नहीं थी.

मुझे अस्पताल कभी पसंद नहीं रहे, क्योंकि उनमें कभी कोई अच्छी ख़बर नहीं होती. वो डॉक्टर अब मुझे डराने लगी थी. वो चाहती थी कि मैं किसी आंखों के डॉक्टर को दिखाऊं, लेकिन अस्पताल में उस समय ऐसा डॉक्टर नहीं था. ईंधन की क़िल्लत के चलते आंखों का डॉक्टर छुट्टी पर चला गया था.

मेरी मायूसी को भांपते हुए डॉक्टर ने दो बार कहा, ‘हम भी लाचार हैं’. डॉक्टर शायद दोपहर में आएगा. हो सकता है कि डॉक्टर 4 बजे पास के एक दूसरे अस्पताल में आ जाए. हम कुछ कह नहीं सकते’.

हालांकि उसके बाद डॉक्टर ने जो मेहरबानी का काम किया, उसके लिए मुझे उसकी सराहना करनी होगी. उसने ख़ुद आंखों के डॉक्टर को फोन किया और मेरे बारे में बात की. उसने डॉक्टर से पूछा कि क्या मेरे लिए टेलीमेडिसिन का टाइम मिल सकता है. फिर उसने मेरी फीस वापस कर दी और एक नर्स और अस्पताल की जन संपर्क महिला से कहा, कि या तो मुझे किसी दूसरे अस्पताल के आंखों के डॉक्टर तक पहुंचा दें, या कोई टेलीमेडिसिन अपॉइंटमेंट दिला दें.

दूसरे अस्पताल में जहां पीआर महिला ने चेक किया, डॉक्टर मौजूद थे. उसे गोल्डन की हॉस्पिटल कहा जाता है जो आंखों में विशेषज्ञता रखता है, लेकिन वो कोलंबो के बाहरी इलाके के पास राजागिरिया में स्थित है.

मुझे एक घंटे में वहां पहुंचना था- जो कोई समस्या नहीं है अगर आपको कोई वाहन मिल जाए, क्योंकि ईंधन की क़िल्लत ने सड़कों को वीरान कर दिया है.

A long line of autos and cars waiting for fuel. There are hardly any vehicles to be seen actually travelling on the roads | Regina Mihindukulasuriya | ThePrint
ईंधन के इंतजार में ऑटो और कारों की लंबी लाइन। सड़कों पर वास्तव में यात्रा करते हुए शायद ही कोई वाहन देखे जा सकते हैं | रेजिना मिहिंदुकुलसुरिया | दिप्रिंट

उस दिन, एक ऑटो असीरी अस्पताल के बाहर ही खड़ा था, जो 600 एलकेआर (132 रुपए) मांग रहा था. मैंने उसे सामान्य दरों पर लाने की कोशिश की, लेकिन उसने कहा, ‘मिस, प्लीज़ कोई दूसरा ले लीजिए, मैं बहुत वाजिब पैसा मांग रहा हूं. हमें ब्लैक मार्केट में पेट्रोल ख़रीदना होता है’. मैं तैयार हो गई.

दूसरे अस्पताल में आंखों के डॉक्टर ने मेरी आंखों का मुआयना किया, और कहा कि ये एक इनफेक्शन है और उसने मुझे 15 दिन की दवाएं लिख दीं. मैंने क़रीब 40 मिनट वहां बिताए. डॉक्टर का अपॉइंटमेंट, दवाएं, और वहां आने जाने में 5,000 एलकेआर (1,100) से अधिक ख़र्च हो गए.

पैसा बचाने के लिए मैंने दो बसें लीं और आख़िरी एक किलोमीटर पैदल चली. तब तक दोपहर हो चुकी थी और फिर से कर्फ्यू लग चुका था.

आप सोच सकते हैं कि श्रीलंका और कितने समय इस तरह से चल सकता है- आंखों के एक बेसिक इनफेक्शन के लिए 5,000 एलकेआर? वो भी कई अस्पतालों में एक डॉक्टर तलाशने के बाद. अगर आपके जीवन के लिए कोई ख़तरे वाली स्थिति हो जाए तो क्या होगा? या, अगर आपको कोई पुरानी गंभीर बीमारी हो, जिसमें लंबी देखभाल की ज़रूरत हो? सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवा की हालत पहले ही सुस्त थी. सोचकर ही कांप उठती हूं कि उसकी मौजूदा हालत क्या होगी.

श्रीलंका में बीमार पड़ना सच में अब कोई अमीर व्यक्ति ही सहन कर सकता है.


यह भी पढ़ें- दार्जिलिंग में आखिर चल क्या रहा है? पहाड़ी क्षेत्र में NSA डोभाल, ममता और हिमंत की यात्रा से सुगबुगाहट तेज


 

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

share & View comments