(अदिति खन्ना)
लंदन, 25 मई (भाषा) ब्रिटेन के प्रमुख सामरिक विशेषज्ञों का मानना है कि किसी तीसरे देश में भारतीय और पाकिस्तानी अधिकारियों के बीच अनौपचारिक वार्ता को समन्वित करने का प्रयास, क्षेत्र में हालिया सैन्य तनाव के बाद स्थिरता बहाल करने की संभावना बना सकता है।
लंदन स्थित विचारक संस्था इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रेटेजिक स्टडीज (आईआईएसएस) ने पिछले सप्ताह ‘भारत-पाकिस्तान सैन्य संघर्ष और क्षेत्रीय स्थिरता एवं सुरक्षा की संभावनाएं’ विषय पर एक सत्र आयोजित किया था, जिसका उद्देश्य क्षेत्र में संघर्ष के राजनीतिक और सुरक्षा संबंधी पहलुओं पर विचार करना था।
यह आयोजन, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नेता रविशंकर प्रसाद के नेतृत्व में एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के यूरोप जाने से पहले किया गया। प्रतिनिधिमंडल रविवार को फ्रांस की राजधानी पेरिस पहुंचेगा। वह 22 अप्रैल को पहलगाम में हुए आतंकी हमले के मद्देनजर भारत के आतंकवाद विरोधी रुख से फ्रांस को अवगत कराएगा। इस हमले में 26 लोग मारे गए थे।
आईआईएसएस के वरिष्ठ फेलो और दक्षिण एवं मध्य एशियाई कार्यक्रम के प्रमुख राहुल रॉय चौधरी ने कहा, ‘‘भारत और पाकिस्तान अपने 100 घंटे के सैन्य संघर्ष से काफी विरोधी और विवादित विमर्शों के साथ उभरे हैं।’’
उन्होंने कहा, ‘‘नयी दिल्ली ने पाकिस्तान के साथ तब तक बातचीत या व्यापार करने से इनकार कर दिया है, जब तक कि भारत के खिलाफ आतंकवादी हमले खत्म नहीं हो जाते।’’
चौधरी ने कहा कि जब कभी या यदि ऐसा होता है, तो भारत का कहना है कि वह पाकिस्तान के साथ भविष्य की किसी भी वार्ता में केवल आतंकवाद और पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर (पीओके) पर ही ध्यान केंद्रित करेगा।
उन्होंने कहा, ‘‘पाकिस्तान वार्ता के लिए इन पूर्व शर्तों को चुनौती दे सकता है और इस दिशा में अंतरराष्ट्रीय हस्तक्षेप की मांग कर रहा है।’’
उन्होंने कहा, ‘‘इस संदर्भ में, किसी तीसरे देश में आयोजित भारतीय और पाकिस्तानी वरिष्ठ अधिकारियों और प्रभावशाली विशेषज्ञों के बीच निजी और अनौपचारिक ‘ट्रैक 1.5’ वार्ता शुरू करना क्षेत्रीय स्थिरता बहाल करने की सबसे अच्छी तत्काल संभावना प्रदान करता है।’’
ट्रैक 1.5 वार्ता से तात्पर्य विभिन्न देशों के सरकारी अधिकारियों, विशेषज्ञों और शिक्षाविदों के बीच अनौपचारिक, अर्ध-आधिकारिक बातचीत से है, जिसका उद्देश्य विशिष्ट मुद्दों पर चर्चा करना और संबंध बनाना है।
भारत ने स्पष्ट कर दिया है कि वह पाकिस्तान के साथ केवल, पीओके की वापसी और आतंकवाद के मुद्दे पर ही बातचीत करेगा। नयी दिल्ली ने हमेशा कहा है कि कश्मीर मुद्दा द्विपक्षीय मामला है और इसमें किसी तीसरे पक्ष के लिए कोई जगह नहीं है।
अगले सप्ताह ब्रिटेन पहुंचने वाले सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल के संदर्भ में रॉय-चौधरी का मानना है कि इसका मुख्य जोर अखिल भारतीय आम सहमति प्रदर्शित करने और भारत के आतंकवाद-रोधी सिद्धांत से अंतरराष्ट्रीय समुदाय को अवगत कराने पर होगा।
दक्षिण और मध्य एशिया के लिए आईआईएसएस एसोसिएट फेलो डेसमंड बोवेन ने इस क्षेत्रीय संघर्ष में व्यापक वैश्विक हित की ओर इशारा किया।
बोवेन ने कहा, ‘‘दुनिया इस बात में दिलचस्पी रखती है क्योंकि दुनिया परमाणु युद्ध की आशंका और वास्तव में इसे टाले जाने में रुचि रखती है… इस संदर्भ में, खतरा स्पष्ट रूप से बढ़ गया है, दोनों पक्षों की ओर से प्रतिरोध विफल हो गया है और भारत-पाकिस्तान के बीच विभाजन को गलत तरीके से समझने का खतरा पिछले कई वर्षों की तुलना में अब बहुत अधिक है।’’
दक्षिण और मध्य एशिया के लिए आईआईएसएस के वरिष्ठ फेलो एंटनी लेवेस्कस ने इस महीने की शुरुआत में संघर्ष के सैन्य प्रौद्योगिकी पहलुओं पर ध्यान केंद्रित किया था।
दक्षिण और मध्य एशिया के लिए आईआईएसएस रिसर्च फेलो विराज सोलंकी ने संघर्ष रोकने के लिए 10 मई को बनी सहमति पर अमेरिका, भारत और पाकिस्तान के बीच ‘‘विवादित और भिन्न’’ विमर्शों के निहितार्थों को रेखांकित किया।
भाषा सुभाष धीरज
धीरज
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