नई दिल्ली: तालिबान, जिसने पिछले ही महीने समूचे अफगानिस्तान पर अपना कब्जा कर लिया था, के पास अपनी खुद की सशस्त्र ड्रोन इकाइयां हैं जो निशानों का पता लगाने (ट्रैक करने) और उनको मार गिरने में सक्षम हैं. न्यूलाइन्स पत्रिका की एक खबर के अनुसार, इस युद्धग्रस्त देश में प्रतिरोध के अंतिम इलाक़े, पंजशीर घाटी, में हुई लड़ाई के दौरान भी इन ड्रोन इकाइयों को तैनात किया गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ये ड्रोन चीन से एक छद्म कंपनी के माध्यम से ‘खरीदे’ गए थे और इनकी पाकिस्तान के रास्ते अफगानिस्तान में ‘तस्करी’ की गई थी.
हालांकि, अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह और नेशनल रेज़िस्टेन्स फ्रंट (एनआरएफ) के संस्थापक अहमद मसूद के नेतृत्व वाले एनआरएफ के साथ तालिबान की लड़ाई में इस्तेमाल किए गए सशस्त्र ड्रोन को उपलब्ध करवाने के लिए पहले पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया गया था, पर अब यह बात सामने आई है कि तालिबानी समूह कीटनाशकों के छिड़काव के लिए. इस्तेमाल किए जाने वाले सामान्य ड्रोन को सशस्त्र यूएवी में बदलने में कामयाब रहा था.
जब इस महीने की शुरुआत में, तालिबान के समर्थन में पाकिस्तान द्वारा सशस्त्र ड्रोन का उपयोग किए जाने की रिपोर्ट पहली बार सामने आई थी, तो भारत के रक्षा और सुरक्षा प्रतिष्ठान से जुड़े सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया था कि हर किसी को सावधान रहकर यह देखना और जानना होगा कि ये ड्रोन वास्तव में किसके हैं.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि जब 2019 के आसपास इस ड्रोन टीम की स्थापना की गई थी, तो इसको दिए गये आदेश स्पष्ट थे. हालांकि तालिबान के अन्य गुटों को निगरानी के लिए इस बुनियादी सुविधाओं वाले नागरिक ड्रोन का उपयोग करने की स्वतंत्रता थी, परंतु सिर्फ़ हक्कानी नेटवर्क को ही स्वतंत्र रूप से हासिल किए गए इस उपकरणों का उपयोग करके देश (अफ़ग़ानिस्तान) के दक्षिण और पूर्व में कभी-कभी अनियंत्रित ड्रोन हमले करने की इजाजत थी. यह हिट स्क्वाड एकमात्र ऐसी ड्रोन इकाई थी जिसे तालिबान के नेतृत्व द्वारा आधिकारिक रूप से परिचालन की मंजूरी मिली थी.’
तालिबान ने इन ड्रोन को कीटनाशक के बजाय आरडीएक्स ले जाने के लिए संशोधित कर लिया था
यह बताया जाता है कि तालिबान को मिले पहले ड्रोन की कीमत करीब 60,000 डॉलर थी.
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रिपोर्ट में दावा किया गया है कि इन्हें खरीदे जाने के बाद तालिबान इंजीनियरों ने उर्वरक और कीटनाशकों को ले जाने और छिड़काव करने के लिए प्रयुक्त होने वाले रासायनिक टैंकों और होसेस (नलिकाओं) की जगह चार मोर्टार राउंड रखने में सक्षम एक अस्थायी प्लास्टिक मिसाइल रैक लगा दिया था जिसे कंप्यूटर-आधारित स्प्रिंग मेकनिज़म के माध्यम से दागा जा सकता है.
इसमें रिपोर्ट में कहा गया है कि आगे चलकर इस यूनिट के इंजीनियरों ने अपने सामान्य मोर्टार पर लगे फ़्यूज़ को उनके आरडीएक्स युक्त अधिक शक्तिशाली संस्करणों से बदल दिया.
इसके अलावा, इन काले ड्रोन और आरडीएक्स मोर्टार को आसमान में छिपाने के लिए उन्हें नीले रंग में रंगा गया था.
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘इन ड्रोन की उड़ान को नियंत्रित करने के लिए लैपटॉप कंप्यूटर और स्मार्टफोन, जो पोर्टेबल सेटिलाइट टर्मिनल के माध्यम से इंटरनेट से जुड़े, के एक संयोजन को तैयार किया गया था.’
ड्रोन इकाइयां
अफ़ग़ानिस्तान के उत्तरी प्रांत कुंदुज़ में मुख्यालय वाली यह विशिष्ट ड्रोन इकाई इंजीनियरों से लड़ाकू बने लोगों की एक टीम है और इसे उत्तर अफ़ग़ानिस्तान में अफगान सरकार के अधिकारियों की निगरानी और उनकी हत्या करने का काम सौंपा गया था.
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगान सुरक्षा बलों की चौकियों पर किए गये कई अभ्यास वाले हमलों के बाद इन नए ड्रोन के साथ तालिबान का पहला बड़ा अभियान 1 नवंबर 2020 को उत्तरी शहर कुंदुज में हुआ था, जब उसने एक प्रांतीय गवर्नर के कम से कम चार अंगरक्षकों को उस समय मार डाला था जब वे उसके परिसर में वॉलीबॉल खेल रहे थे.
दिलचस्प बात तो यह है कि अमेरिका को तालिबान की इस ड्रोन हमले कर सकने की क्षमता की जानकारी थी.
इस मैगनीन ने बताया कि तालिबान फरवरी में ही अमेरिकी सैनिकों को मारने के लिए इस ड्रोन का इस्तेमाल करना चाहता था, लेकिन अमेरिकी सेना के सदस्यों ने इस ड्रोन को देख लिया और उन्होने कतर स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय में यह शिकायत दर्ज की कि ऐसा करना फरवरी 2020 में ट्रम्प प्रशासन द्वारा तालिबान के साथ अफ़ग़ानिस्तान से राष्ट्रव्यापी वापसी के लिए किए गये समझौते की शर्तों का उल्लंघन होगा. इसके बाद इस हमले को रोका दिया गया था.
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