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Sunday, 5 May, 2024
होमदेश'ग्लोबल इंडस्ट्री में सबके लिए जगह है', US और ताइवान का 'चिप्स अधिनियम' भारत को नहीं करेगा प्रभावित

‘ग्लोबल इंडस्ट्री में सबके लिए जगह है’, US और ताइवान का ‘चिप्स अधिनियम’ भारत को नहीं करेगा प्रभावित

उद्योग विशेषज्ञ के. कृष्ण मूर्ति का कहना है कि ताइवान और अमेरिका द्वारा सप्लाई चेन की रक्षा के लिए पारित कानून भारत को प्रभावित नहीं करेगा क्योंकि ग्लोबल इंडस्ट्री में 'हर किसी के लिए पर्याप्त जगह' है.

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नई दिल्ली: ताइवान जिसे वैश्विक सेमीकंडक्टर उद्योग का केंद्र भी माना जाता है, उसने पिछले महीने कानून पारित किया जो स्थानीय चिप निर्माताओं को अपने ही क्षेत्र में रिसर्च और डेवलपमेंट को बनाए रखने के लिए प्रोत्साहित करेगा. यह अमेरिका द्वारा चिप्स अधिनियम पारित करने के छह महीने बाद आया, जिसने चिप निर्माण को आगे बढ़ाने के लिए $50 बिलियन से अधिक का धन आवंटित किया.

हालांकि, ग्लोबल सेमीकंडक्टर इंडस्ट्री में सभी के लिए पर्याप्त जगह है और सप्लाई चेन की रक्षा के लिए पारित कानून भारत को प्रभावित नहीं करेगा.

विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसा इसलिए है क्योंकि भारत अभी भी आपूर्ति श्रृंखला के निचले स्तर पर है और यह इंटेल या टीएसएमसी (ताइवान सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग) के लिए किसी प्रकार का खतरा पैदा नहीं करता है.

इस बीच, हाल ही में शुरू की गई पहल में क्रिटिकल एंड इमर्जिंग टेक्नोलॉजी (आईसीईटी) पर अमेरिका ने कहा कि वह सेमीकंडक्टर प्रोडक्शन में भारत की मदद करेगा.


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इंडिया इलेक्ट्रॉनिक्स एंड सेमीकंडक्टर एसोसिएशन (IESA) के सीईओ और अध्यक्ष के. कृष्ण मूर्ति का तर्क है कि CHIPS (क्रिएटिंग हेल्पफुल इन्सेन्टिव्स टू प्रोडूस सेमिकंडक्टर्स एंड साइंस) अधिनियम जैसे कानूनों को ‘संरक्षणवादी उपक्रम’ के रूप में नोट किया गया है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘ये अधिनियम जो उन्होंने पारित किए हैं, उन्हें संरक्षणवादी के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि यह सुनिश्चित करना चाहिए कि आपूर्ति श्रृंखलाएं विघटन के लिए अतिसंवेदनशील नहीं हैं, जैसा कि वे कोविड -19 महामारी के दौरान थे.’

2020 के बाद से, दुनिया भर में सेमीकंडक्टर की आपूर्ति में बड़ी कमी आई है. चूंकि सभी आधुनिक उपकरणों और इलेक्ट्रॉनिक्स को चिप्स की आवश्यकता होती है और विभिन्न उद्योगों ने उपभोक्ता मांग को पूरा करने के लिए संघर्ष किया है.

मूर्ति ने कहा कि चिप्स अधिनियम भारत को ज्यादा प्रभावित नहीं करेगा और ग्लोबल इंडस्ट्री में ‘सभी के लिए पर्याप्त जगह’ है.

दिसंबर 2021 में, भारत के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने लगभग 10 बिलियन डॉलर के परिव्यय के साथ सेमीकॉन इंडिया प्रोग्राम को मंजूरी दी थी. भारत में कोई सेमीकंडक्टर निर्माण प्लांट नहीं है, जो चिप्स का निर्माण करता है, लेकिन भारत हमेशा से विदेशी चिप निर्माताओं को लुभाता रहा है.

भारत की चिप योजनाओं के लिए समर्थन

तक्षशिला इंस्टीट्यूशन में हाई टेक जियोपॉलिटिक्स प्रोग्राम के अध्यक्ष प्रणय कोटास्थाने जैसे विशेषज्ञों का तर्क है कि ताइवान और अमेरिका के ऐसे कानून, सबसे उन्नत तकनीकों की रक्षा करना चाहते हैं.

कोटास्थाने ने कहा ‘इन कानूनों का उद्देश्य सबसे उन्नत प्रौद्योगिकियों की रक्षा करना है और भारत TSMC या Intel के लिए बिल्कुल खतरा नहीं है. यह अभी भी आपूर्ति श्रृंखला निचले स्तर पर है. इसके अलावा, आईसीईटी जैसी पहल के साथ, अमेरिका ने भारत में सेमीकंडक्टर डिजाइन निर्माण के विकास के लिए समर्थन देने की बात कही है.

आईसीईटी पहल 31 जनवरी को अमेरिका और भारत के बीच स्ट्रेटेजिक टेक्नोलॉजी पार्टनर्शिप और डिफेन्स इंडस्ट्री को बढ़ाने के लिए शुरू की गई थी.

आईसीईटी ने लचीली सेमीकंडक्टर आपूर्ति श्रृंखलाओं के निर्माण में भारत-अमेरिका सहयोग और ‘परिपक्व प्रौद्योगिकी नोड्स और पैकेजिंग पर संयुक्त उद्यमों और प्रौद्योगिकी साझेदारी के विकास को प्रोत्साहित करने’ का आह्वान किया.

पिछले मई में, अबू धाबी स्थित नेक्स्ट ऑर्बिट वेंचर्स और इज़राइल स्थित टॉवर सेमीकंडक्टर द्वारा संचालित एक अंतरराष्ट्रीय सेमीकंडक्टर कंसोर्टियम (ISMC) ने घोषणा की कि वह भारत में चिप बनाने का प्लांट स्थापित करने के लिए $3 बिलियन का निवेश करेगा.

रिपोर्टों से यह भी संकेत मिलता है कि अमेरिका स्थित माइक्रोन टेक्नोलॉजी इंक और गुजरात सरकार राज्य में विनिर्माण में $10 बिलियन का सौदा कर सकते है.

हालांकि, कोटास्थाने ने समझाया कि सेमीकंडक्टर्स निर्माण प्लांट आवश्यक हैं लेकिन वो भारत को ‘आत्मनिर्भर’ नहीं बनाएंगे.

उन्होंने कहा, ‘यह कुछ हद तक स्ट्रेटेजिक वल्नेरेबिलिटी को कम कर सकता है. भारत की ताकत चिप डिजाइन और संभावित रूप से चिप असेम्बलिंग में है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

(संपादन: अलमिना)


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