नई दिल्ली: श्रीलंका के विपक्षी नेता साजिथ प्रेमदासा ने प्रतिद्वंद्वी उम्मीदवार का समर्थन करने के लिए मंगलवार को राष्ट्रपति बनने की दौड़ से नाम वापस ले लिया है.
प्रेमदासा ने कहा, ‘मैं राष्ट्रपति पद के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस लेता हूं.’
For the greater good of my country that I love and the people I cherish I hereby withdraw my candidacy for the position of President. @sjbsrilanka and our alliance and our opposition partners will work hard towards making @DullasOfficial victorious.
— Sajith Premadasa (@sajithpremadasa) July 19, 2022
प्रेमदासा ने ट्वीट किया, ‘अपने देश की अधिक भलाई के लिए जिसे मैं प्यार करता हूं और जिन लोगों को मैं प्यार करता हूं, मैं राष्ट्रपति पद के लिए अपनी उम्मीदवारी वापस लेता हूं.’
वहीं, श्रीलंका के कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे की सरकार ने सीएनएन को एक इंटरव्यू में दावा किया कि गोटाबाया राजापक्षे ने आर्थिक संकट को लेकर देश से ‘तथ्य छुपाए’ थे और झूठ बोला था. उन्होंने कहा कि उनका लक्ष्य साल 2023 तक आर्थिक संकट को स्थिर करने का है.
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भारत सरकार की सर्वदलीय बैठक
केंद्र ने श्रीलंका में जारी संकट पर चर्चा करने के लिए मंगलवार को सर्वदलीय बैठक बुलाई है.
संसदीय कार्य मंत्री प्रल्हाद जोशी ने रविवार को सर्वदलीय बैठक में कहा कि वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस जयशंकर बैठक में संसद के दोनों सदनों में सभी राजनीतिक दलों के नेताओं को जानकारी साझा करेंगे.
जोशी ने रविवार को कहा, ‘मंगलवार को, हम श्रीलंकाई संकट पर संक्षिप्त जानकारी के लिए एक और सर्वदलीय बैठक बुला रहे हैं. हमने वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण और विदेश मंत्री एस जयशंकर से इस पर ब्रीफिंग करने का अनुरोध किया है.’
सूत्रों के मुताबिक, विदेश सचिव विनय मोहन क्वात्रा ने सदस्यों के सामने श्रीलंका की स्थिति और भारत द्वारा पूर्व में द्वीप राष्ट्र को दी गई सहायता पर एक प्रेसेंटेशन देने की संभावना है.
सरकार कई राजनीतिक दलों की चिंताओं को दूर करने के लिए खुद बैठक बुला रही है, खासकर तमिलनाडु में क्योंकि वे श्रीलंका संकट और राज्य में शरणार्थियों की आने से चिंतित हैं.
श्रीलंका पिछले सात दशकों में सबसे गंभीर आर्थिक संकट का सामना कर रहा है, जहां विदेशी मुद्रा की कमी के कारण भोजन, ईंधन और दवाओं सहित आवश्यक वस्तुओं के आयात में बाधा आ रही है. सरकार के खिलाफ उग्र प्रदर्शनों के बाद आर्थिक संकट से उपजे हालातों ने देश में एक राजनीतिक संकट को भी जन्म दिया है. कार्यवाहक राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने देश में आपातकाल घोषित किया है.
संसद के मॉनसून सत्र से पहले रविवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के दौरान तमिलनाडु के दलों द्रविड़ मुनेत्र कषगम (द्रमुक) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कषगम (अन्नाद्रमुक) ने भारत से श्रीलंका के मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है.
पड़ोसी देश श्रीलंका को करीब 2.2 करोड़ की अपनी आबादी की बुनियादी जरूरतें पूरा करने के लिए अगले छह महीनों में पांच अरब डॉलर की जरूरत है. पिछले कई महीनों से देश में जरूरी सामान और ईंधन की किल्लत बनी हुई है.
रविवार को प्रदर्शन के 100 दिन पूरे हो गए. सरकारी विरोधी प्रदर्शनों की शुरुआत नौ अप्रैल को हुई थी. प्रदर्शनों के बाद गोटबाया राजपक्षे को राष्ट्रपति पद से इस्तीफा देना पड़ा. राजपक्षे (73) श्रीलंका छोड़कर बुधवार को मालदीव गए और फिर गुरुवार को सिंगापुर पहुंचे. उन्होंने शुक्रवार को इस्तीफा दिया था.
भाषा के इनपुट से
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