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Friday, 22 November, 2024
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श्रीलंका के राष्ट्रपति ने कहा, भू-राजनीति के कारण हिंद महासागर अचानक ‘इंडो-पैसिफिक’ बन गया है

कोलंबो में आयोजित गोलमेज चर्चा में वीडियो कॉन्फ्रेंस के दौरान संबोधित करते हुए रानिल विक्रमसिंघे ने कहा कि 'अब नक्शे भूगोल के हिसाब से नहीं, बल्कि भू-राजनीति के हिसाब से बनाए जाते हैं.'

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नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के शपथ ग्रहण समारोह में भाग लेने के लिए भारत आने से पहले श्रीलंका के राष्ट्रपति रानिल विक्रमसिंघे ने भू-राजनीति और वैश्विक प्रतिद्वंद्विता के प्रभाव के बारे में बात की, जिसने हिंद महासागर क्षेत्र को “इंडो-पैसिफिक” में बदल दिया है.

श्रीलंका के राष्ट्रपति ने शुक्रवार को कहा, “अब नक्शे भूगोल के हिसाब से नहीं, बल्कि भू-राजनीति के हिसाब से बनाए जाते हैं. लंबे समय तक हम हिंद महासागर के नाम से जाने जाने वाले क्षेत्र के थे और अचानक यह हिंद-प्रशांत बन गया. यह भू-राजनीतिक मानचित्रण का परिणाम है.”

वे कोलंबो स्थित थिंक टैंक जियोपॉलिटिकल कार्टोग्राफर द्वारा आयोजित ‘बंगाल की खाड़ी और हिंद महासागर परिदृश्य’ पर एक गोलमेज चर्चा में वीडियो कॉन्फ्रेंस के जरिए संबोधित कर रहे थे. चीन के बढ़ते प्रभाव के बीच भारत के लिए अपने पड़ोस में एक महत्वपूर्ण साझेदार श्रीलंका में इस साल 17 सितंबर से 16 अक्टूबर तक राष्ट्रपति चुनाव होंगे.

स्थानीय रिपोर्टों से पता चलता है कि विक्रमसिंघे एक और कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ेंगे, हालांकि इसकी पुष्टि अभी नहीं हुई है. जुलाई 2022 में द्वीपीय देश के आर्थिक संकट के कारण राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शन शुरू होने के बाद से श्रीलंका में पहले से सत्तारूढ़ राजपक्षे परिवार के खिलाफ जनता का असंतोष बहुत अधिक है.

‘इंडो-पैसिफिक’ शब्द ने पहली बार 2017 में अमेरिकी और जापानी अधिकारियों के बीच जोर पकड़ा. उल्लेखनीय रूप से, मई 2018 में यूएस ‘पैसिफिक’ कमांड का नाम बदलकर ‘इंडो-पैसिफिक कमांड’ कर दिया गया था, उस समय जब ट्रंप प्रशासन के तहत यूएस-चीन प्रतिद्वंद्विता तेज हो रही थी.

आज, अमेरिका, यूके, कई प्रमुख यूरोपीय खिलाड़ी और ऑस्ट्रेलिया के पास उभरते चीन का मुकाबला करने के लिए एक समर्पित ‘इंडो-पैसिफिक’ विदेश नीति रणनीति है, और कई लोगों के लिए, भारत को शामिल करना महत्वपूर्ण है.

गोलमेज सम्मेलन में अपनी टिप्पणी में, श्रीलंकाई राष्ट्रपति ने यूरोप में सीमाओं के मामले में भू-राजनीति के प्रभाव का उल्लेख किया.

विक्रमसिंघे ने कहा, “यूरोप के सामने अब यह समस्या है कि रूस और यूक्रेन के बीच सीमाएं कहा खींची जाएं. यह बदलती रहती है और विभिन्न दावे किए जाते हैं. लेकिन हमें अब यह सीखना होगा कि मानचित्रण पूरी तरह से भू-राजनीति पर निर्भर करता है, किसी और चीज़ पर नहीं.”

गोलमेज चर्चा में नए रणनीतिक गठबंधनों के उद्भव, नौवहन की स्वतंत्रता और हिंद महासागर क्षेत्र में “गैर-पारंपरिक खतरों” से निपटने के तरीकों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया.

श्रीलंका में भारत के उप उच्चायुक्त डॉ. सत्यंजल पाण्डेय के साथ-साथ इंडोनेशिया, थाईलैंड, बांग्लादेश और ऑस्ट्रेलिया के राजनयिक भी मौजूद थे. ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्रीय विश्वविद्यालय के राष्ट्रीय सुरक्षा कॉलेज के वरिष्ठ शोध फेलो डेविड ब्रूस्टर और ढाका विश्वविद्यालय के अंतर्राष्ट्रीय संबंध विभाग के प्रोफेसर और अध्यक्ष डॉ. लैलुफ़र यास्मीन भी मौजूद थे.

चर्चा में भारत के साथ आर्थिक और प्रौद्योगिकी सहयोग समझौते (ETCA) को गहरा करने के श्रीलंका के प्रयासों पर भी ध्यान केंद्रित किया गया. 2018 में दोनों देशों के बीच बातचीत रुकने के बाद नई दिल्ली और कोलंबो ने पिछले नवंबर में ETCA के लिए बातचीत फिर से शुरू की.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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