कोलंबो: सख्त टोपी पहनकर दो श्रीलंकाई मजदूर कोलंबो पोर्ट सिटी में घुसने के लिए अपनी बारी का इंतजार कर रहे हैं. इसे कभी ‘विश्व स्तरीय’ महानगर के रूप में देखा जा रहा था. वहीं सड़क के उस पार ‘गोटा गोगामा’ सैकड़ों प्रदर्शनकारी राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के इस्तीफे की मांग करते हुए 50 दिनों से ज्यादा से समय से डेरा डाले हुए हैं.
कोलंबो पोर्ट सिटी की बाड़ पर एक बड़ा सा बोर्ड लटका है जिसपर लिखा है, ‘आइए, भ्रष्ट, शोषक आर्थिक व्यवस्था के खिलाफ लड़ें.’ श्रीलंका की राजधानी के समुद्र किनारे के गॉल फेस ग्रीन में बसा भव्य महानगर कोलंबो पोर्ट सिटी उस आर्थिक तूफान का प्रतीक है जिसने श्रीलंका को अपनी चपेट में ले लिया है.
महिंदा राजपक्षे के शासन काल (2005-15) के दौरान स्वीकृत 1.4 बिलियन अमरीकी डालर की परियोजना में 269 हेक्टेयर नई भूमि हासिल करने के लिए चीन से भी मदद ली जा रही थी या कहें कि इस परियोजना में चीन ने एक बड़ी रकम का निवेश किया था और वही इस शहर को विकसित करने में मदद कर रहा था. जापान और एशियाई विकास बैंक (एडीबी) के बाद लेनदारों में तीसरे स्थान पर चीन है जिसका द्वीप राष्ट्र के कर्ज का 10 प्रतिशत हिस्सा है.
श्रीलंका में हालात खराब हैं. देश के 2.2 करोड़ लोग ईंधन और ऊर्जा संकट का सामना करने के लिए मजबूर हैं, स्थिति से निपटने के लिए फिलहाल उनके पास कोई विदेशी भंडार नहीं है. आर्थिक संकट से गुजर रहे कोलंबो के लिए बेहद नाजुक स्थिति है. मदद के लिए उसके एक तरफ बीजिंग है तो वहीं दूसरी तरफ नई दिल्ली उसके साथ चल रहा है. श्रीलंका के पूर्व विदेश सचिव जयनाथ कोलम्बेज ने कहा था, ‘सुरक्षा मुद्दे पर पर हमारी नीति में भारत हमेशा पहले बना रहेगा. लेकिन हम चीन के साथ भी आर्थिक संबंध चाहते हैं.’
जनवरी चीनी विदेश मंत्री वांग यी श्रीलंका के दौरे पर आए थे. तो वहीं विदेश मंत्री (ईएएम) एस जयशंकर ने इस साल मार्च में द्वीप राष्ट्र की यात्रा की थी. इन सबके बीच भारत और चीन के साथ अपने संबंधों को दर्शाने के लिए श्रीलंका का संघर्ष कुछ महीनों से दिखाई दे रहा है. दरअसल श्रीलंका चीनी क्रेडिट कार्ड और भारतीय दोस्ती के बीच उलझा हुआ है.
जिनेवा में संयुक्त राष्ट्र (यूएन) में श्रीलंका के पूर्व प्रतिनिधि दयान जयतिल्लेका ने कहा, ’श्रीलंका का संकट आंशिक रूप से विदेशी संबंधों का संकट है. विडंबना यह है कि एक ऐसेा देश जो बौद्ध विरासत पर गर्व करता है, इस संकट से निपटने के लिए बौद्ध धर्म के मध्य मार्ग पर नहीं चला रहा है.’
उन्होंने कहा, ‘हमें अभी यह देखना बाकी है कि श्रीलंका के लिए अंतिम उपाय का ऋणदाता कौन होगा- भारत या फिर चीन. सबूतों की सुई भारत की तरफ जा रही है जो हमें बचाए रखने में मदद करेगा’
जयतिल्लेका ने कहा कि राष्ट्रपति गोतबया राजपक्षे श्रीलंका में पसंद नहीं किए जाते हैं और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर व्यापक तौर पर बदनाम हैं. यही कारण है कि वह धन नहीं जुटा सकते या मदद नहीं ला सकते हैं.
उन्होंने कहा, ‘वैश्विक नागरिक देश की सहायता के लिए नो-होल्ड-बार नजरिए को स्वीकार नहीं कर सकते हैं. श्रीलंका अपने आप में एक अच्छा ब्रांड है लेकिन उस ब्रांड पर राजपक्षे का लोगो लगा हुआ है. और जब तक इस लोगो को हटाया नहीं जाता, तब तक श्रीलंका के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी ताकत दिखाना मुश्किल होगा.’
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‘चीन हमें कभी निराश नहीं करेगा’
श्रीलंकाई मीडिया आउटलेट इकोनॉमी नेक्स्ट के सलाहकार संपादक शिहार अनीज़ ने कहा, ‘श्रीलंका के पास चीन का क्रेडिट कार्ड था. और चीनी हमसे यह नहीं पूछ रहे थे कि हमें पैसों की जरूरत क्यों और क्या है.’
जयतिल्लेका ने जैविक खाद के लिए चीनियों की ओर रुख करने से पहले उर्वरकों पर प्रतिबंध लगाने का श्रीलंकाई राष्ट्रपति के फैसले का जिक्र करते हुए कहा, ‘राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे की अंतर्निहित धारणा यह थी कि चीन हमें कभी निराश नहीं करेगा. हम चीनियों के बहुत करीब है और उनके लिए बहुत महत्वपूर्ण भी. उनके पास काफी पैसा है.’
पत्रकार शिहार अनीज़ ने भी इस बात पर सहमति जताई कि आर्थिक संकट से उबरने में मदद के लिए श्रीलंका ‘चीन पर निर्भर’ था. उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘श्रीलंका चीन के साथ अपने संबंधों की वजह से सभी को नाराज करता रहा. जब 2019 में गोतबाया राजपक्षे राष्ट्रपति चुने गए थे, तब से पिछले साल जून या जुलाई तक ऐसा ही चलता रहा.’
अनीज़ ने कहा कि कोलंबो के ‘यू-टर्न’ के कारण श्रीलंका अब चीन से ‘आसान वित्तीय ऋण’ का फायदा नहीं उठा सकता था. उन्होंने कहा, ‘यह तब था जब श्रीलंका को चुभन महसूस होने लगी थी. यह तब हुआ जब उन्होंने भारत, अमेरिका और यूरोपीय संघ के साथ संबंधों को तटस्थ बनाने और स्थापित करने की कोशिश की.’
जिस वजह से कोलोंबो ने ‘यू-टर्न’ लिया उसमें एक कारण श्रीलंका के उत्तरी प्रांत में तीन द्वीपों में रिन्यूएबल एनर्जी प्रोजेक्ट का विकास था. परियोजनाओं को शुरू में एक चीनी कंपनी को दिया गया था लेकिन नई दिल्ली ने कोलंबो को इस अनुबंध को रद्द करने के लिए राजी करने में कामयाबी हासिल कर ली. और इस संबंध में भारत सरकार के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर भी किए.
इस कदम ने चीनी विदेश मंत्री वांग यी को इस साल जनवरी में राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे और तत्कालीन प्रधानमंत्री महिंदा राजपक्षे को आश्वस्त करने के लिए श्रीलंका के दौरे पर आना पड़ा था. कोलंबो स्थित थिंक टैंक अवेयरलॉग इनिशिएटिव के संस्थापक डॉ. जॉर्ज कुक ने दिप्रिंट को बताया, ‘जनवरी में चीनी विदेश मंत्री ने श्रीलंका आना जरूरी समझा क्योंकि चीन को डर था कि संबंध ठीक नहीं चल रहे हैं.’
जनवरी में वांग यी के साथ अपनी बैठक के बाद श्रीलंका के विदेश मंत्री प्रोफेसर जीएल पेइरिस ने कहा था, ‘जब भी श्रीलंका के सामने मुश्किलें आई हैं, तो चीन ने हमेशा साथ दिया है. संभवत यहां 2021 में चीन द्वारा निर्मित सिनोफार्म कोविड-19 दिए जाने के संदर्भ में बात की जा रही थी. कोलंबो ने अपने मुद्रा भंडार को बढ़ावा देने में मदद करने के लिए श्रीलंका के सेंट्रल बैंक के साथ 1.5 बिलियन अमरीकी डालर की मुद्रा विनिमय की सुविधा को वहन करने के लिए चीन को धन्यवाद दिया था.
डॉ कुक ने समझाते हुए कहा, ‘श्रीलंका के लिए चीन एक कमर्शियल पार्टनर रहा है. चीन निवेश के मकसद से इस देश में रुचि रखता है. वे यहां व्यापार के लिए हैं. वे इस जगह में में रुचि रखते हैं, और इसके अलावा उन्हें और कोई चीज परेशान नहीं करती है.’
‘भारत एकमात्र विकल्प’
वांग यी की कोलंबो यात्रा के बमुश्किल दो महीने बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने मार्च में बिम्सटेक शिखर सम्मेलन से इतर अपने श्रीलंकाई समकक्ष से मुलाकात की थी. जयशंकर की यात्रा के पहले दिन दोनों देशों ने कई समझौतों पर हस्ताक्षर भी किए थे.
उस समय श्रीलंका के विदेश मंत्रालय द्वारा जारी एक बयान में कहा गया था कि दोनों विदेश मंत्रियों ने कोलंबो और नई दिल्ली के बीच राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक संबंधों के व्यापक दायरे की समीक्षा की जो कि अति प्राचीन काल से दोनों राष्ट्रों का अटूट संबंध है.
एक भारतीय राजनयिक ने द प्रिंट को बताया, ‘श्रीलंका के लोगों के बीच धीरे-धीरे अब ये बात बैठ रही है कि भारत उनका एक सच्चा दोस्त है, जिस पर वे भरोसा कर सकते हैं. इस साल भारत ने अलग-अलग तरीके से समर्थन देकर, इस मोर्चे पर एक निर्णायक भूमिका निभाई है’
कोलंबो की विदेश नीति के बारे में बात करते हुए हुए श्रीलंका के पूर्व राजनयिक जयतिल्लेका ने दिप्रिंट को बताया: ‘ हमारे पास राजपक्षे हैं जिनका झुकाव चीन की ओर ज्यादा है. हालांकि महिंदा राजपक्षे भारत और चीन के बीच अधिक से अधिक संतुलन बनाने में सक्षम थे. लेकिन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे ने अपने मौजूदा कार्यकाल में चीन पर जरूरत से ज्यादा भरोसा जताकर उसे गले लगाया. उन्होंने जानबूझकर उस लाल रेखा को पार करने का विकल्प चुना जिसने दिल्ली से वाशिंगटन तक की भौहें चढ़ गईं’
जयतिल्लेका ने कहा कि कोलंबो के लिए विदेशी सहयोगियों से बेहतर संबंध बनाने का प्रयास करने के लिए ‘बहुत देर हो चुकी है.’
जयतिल्लेका ने आगे कहा, ‘यह भी काम नहीं कर रहा है क्योंकि आपके पास एक भीख का कटोरा है और आपने अपने सॉफ्ट पावर रिजर्व को खत्म कर दिया है. इस स्थिति में रणनीतिक रूप से सोची-समझी किसी भी विदेश नीति को बनाए रखना मुश्किल है. अब आपके सामने भारत ही एकमात्र विकल्प बचा है चाहे आप प्रधान मंत्री रानिल विक्रमसिंघे हों या राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे. शायद श्रीलंका की ओर से भारी भूलों के कारण, श्रीलंका के विदेशी संबंधों में स्पष्ट रूप से पूर्व-प्रतिष्ठित बाहरी खिलाड़ी के रूप में भारत ने अपने तरीके से वापसी की है.’
2022 की शुरुआत के बाद से, भारत ने श्रीलंका को दो क्रेडिट लाइनें दी हैं- एक 500 मिलियन अमरीकी डालर की ईंधन क्रेडिट लाइन और आवश्यक भोजन और दवाओं की आपूर्ति के लिए एक और 1 बिलियन अमरीकी डालर की क्रेडिट लाइन.
22 मई को भारतीय उच्चायुक्त गोपाल बागले ने श्रीलंका के विदेश मंत्री को 9,000 मीट्रिक टन (मिलियन टन) चावल, 50 मीट्रिक टन दूध पाउडर और 25 मीट्रिक टन से अधिक दवाओं और 2 अरब एलकेआर से अधिक की अन्य चिकित्सा आपूर्ति की एक खेप सौंपी.
1. Assistance from India and Japan: I am grateful for the positive response from India and Japan on the proposal made for the Quad members (United States, India, Japan, and Australia) to take the lead in setting up a foreign aid consortium to assist Sri Lanka.
— Ranil Wickremesinghe (@RW_UNP) May 27, 2022
डॉ. कुक ने दिप्रिंट को बताया, ‘भारतीय नेताओं को श्रीलंका से मदद की गुहार से डरना चाहिए क्योंकि यह ऐसा है: ‘क्या मुझे और मिल सकता है? क्या मुझे और मिल सकता है?’ हम एक ऐसे बिंदु पर पहुंचने जा रहे हैं जहां भारत यह कहने जा रहा है कि हम अब और नहीं दे सकते हैं, हमारे पास देने के लिए और कुछ नहीं है.’
उन्होंने सुझाव दिया कि श्रीलंका को इसके बजाय भारत से तकनीक के हस्तांतरण के मामले में मदद करने के लिए कहना चाहिए, जिससे देश को विशिष्ट क्षेत्रों में मदद मिल सके.
उन्होंने कहा, ‘हम इस सप्ताह, इस महीने स्थिति से निकलने की तरफ देख रहे हैं. लेकिन हम अगले साल कैसे इससे कैसे निबटेंगे इसकी तरफ नहीं देख रहे हैं या स्थिति अब से दो साल या पांच साल बाद कैसे होगी इस पर हमारा ध्यान नहीं है.’
वह आगे कहते हैं, ‘हम इस समस्या के मूल समाधान की तरफ नहीं जा रहे हैं. फिलहाल इससे निपटने के लिए भारत अभी मदद कर रहा है, लेकिन बाद में क्या! यह स्थिति ‘जिंदगी की जद्दोजहद कर रहे एक व्यक्ति को मछली पकड़ना सिखाने या उसे खाने के लिए मछली देते रहने’ की है. ‘भारत हमें मछली दे रहा है और हम उससे अपना गुजारा कर रहे हैं.’
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