scorecardresearch
Sunday, 5 May, 2024
होमविदेशभारत लाये जाने वाले चीते लंबे समय से दक्षिण अफ्रीका पृथकवास में, स्वास्थ्य पर पड़ रहा बुरा असर

भारत लाये जाने वाले चीते लंबे समय से दक्षिण अफ्रीका पृथकवास में, स्वास्थ्य पर पड़ रहा बुरा असर

विशेषज्ञों ने कहा कि लंबे समय तक पृथक-वास में रखने से इनके स्वास्थ्य पर ख़राब असर पड़ रहा है. इन चीतों को भी मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित केएनपी लाया जाना है, जहां नामीबिया से लाये गये आठ चीते इस साल 17 सितंबर से रह रहे हैं.

Text Size:

नई दिल्ली: भारत लाये जाने वालें दर्जनों चीतों को पिछले चार महीनों से ज्यादा वक्त से दक्षिण अफ्रीका में पृथक-वास में रखा गया है. अब चीतों का स्वास्थ्य ख़राब होता नज़र आ रहा है. इन चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान (केएनपी) लाया जाना है. लेकिन भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच सहमति पत्र (एमओयू) पर हस्ताक्षर में देरी की वजह से यह परेशानी हो रही है.

विशेषज्ञों ने कहा कि लंबे समय तक पृथक-वास में रखने से इनके स्वास्थ्य पर ख़राब असर पड़ रहा है. इन चीतों को भी मध्यप्रदेश के श्योपुर जिले में स्थित केएनपी लाया जाना है, जहां नामीबिया से लाये गये आठ चीते इस साल 17 सितंबर से रह रहे हैं.

भारत की चीता पुनर्स्थापन योजना के बारे में जानकार वन्यजीव विशेषज्ञों का कहना है कि ’12 दक्षिण अफ्रीकी चीतों – सात नर और पांच मादा – ने पृथक-वास में छोटे बाड़े में रखे जाने के बाद से उन्होंने एक बार भी अपना शिकार नहीं किया है.

हालांकि, हाल के दिनों में दक्षिण अफ्रीका के साथ चीता परियोजना के कार्यान्वयन में कुछ प्रगति हुई है, लेकिन दक्षिण अफ्रीका ने केएनपी में चीतों के स्थानांतरण के लिए अब तक भारत सरकार के साथ एमओयू पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं.

चीता धरती पर सबसे अधिक तेज दौड़ने वाला जानवर है और दुनिया में सबसे ज्यादा चीते अफ्रीका में पाए जाते हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

विशेषज्ञों ने कहा कि इन 12 चीतों को 15 जुलाई से पृथक-वास में रखा गया है. इनमें से तीन चीते क्वाजुलू-नताल प्रांत के फिंडा में हैं जबकिर नौ लिम्पोपो प्रांत के रूइबर्ग में हैं.

विशेषज्ञों में से एक ने कहा कि, ‘इन चीतों ने 15 जुलाई के बाद से एक बार भी अपना शिकार नहीं किया है. इसलिए इन चीतों ने अपनी फिटनेस काफी हद तक खो दी है.’

उन्होंने कहा कि हो सकता है कि पृथक-वास के दौरान छोटे बाड़े में रह कर इन चीतों का वजन बढ़ गया हो, जैसे खाली बैठे इंसानों के साथ होता है.’

उन्होंने कहा कि जब चीता दौड़ता है तो उसकी मांसपेशियां मजबूत होने के साथ-साथ वह तंदुरूस्त भी रहता है, लेकिन छोटे बाड़े में बैठे-बैठे उसकी सेहत एवं सक्रियता में कुछ गिरावट आ जाती है.

एमओयू पर हस्ताक्षर करने में देरी के बारे में पूछे जाने पर विशेषज्ञ ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका की पर्यावरण एवं वन मंत्री बारबरा क्रीसी ने पिछले सप्ताह चीतों के स्थानांतरण पर भारत के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.

उन्होंने कहा कि अब दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति दोनों देशों के बीच औपचारिक समझौते के प्रस्ताव को मंजूरी देंगे.

एक अन्य विशेषज्ञ ने कहा कि दक्षिण अफ्रीका के एक प्रतिनिधिमंडल ने सितंबर की शुरुआत में केएनपी का दौरा किया था ताकि इन चीतों को वहां बसाने के लिए व्यवस्थाएं देखी जा सकें.

उन्होंने कहा, ‘परियोजना के बारे में सब कुछ सकारात्मक है, लेकिन एमओयू पर अब तक हस्ताक्षर नहीं किए गए हैं. प्रतिनिधिमंडल केएनपी की व्यवस्थाओं से संतुष्ट है. मुझे लगता है कि भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच एमओयू पर इस महीने हस्ताक्षर हो जाएंगे.’

मध्य प्रदेश के प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यजीव) जे एस चौहान ने कहा ‘हम दक्षिण अफ्रीकी चीतों की अगवानी के लिए तैयार हैं.’

वरिष्ठ वन अधिकारी ने कहा, ‘मुझे लगता है कि एमओयू पर जल्द ही हस्ताक्षर किए जाएंगे.

बाघ संरक्षण के लिए काम करने वाले गैर सरकारी संगठन ‘प्रयास’ के संस्थापक सचिव अजय दुबे ने कहा कि दक्षिण अफ्रीकी चीतों की फिटनेस चिंता का विषय है क्योंकि जब वे भारत आएंगे तो उन्हें केएनपी में ताकतवर तेंदुओं से सतर्क रहना होगा.

अफ्रीका में तेंदुओं को चीतों पर हमला करने के लिए जाना जाता है.

उन्होंने कहा, ‘दक्षिण अफ्रीका में जितने चीते मरते हैं, उनमें से नौ प्रतिशत की मौत के लिए तेंदुएं जिम्मेदार होते हैं.’

हालांकि, उन्होंने बताया कि भारत में तेंदुए, चीतों के विलुप्त होने से पहले उनके साथ सदियों से सह-अस्तित्व में रहते थे.

वहीं, वन अधिकारियों ने कहा कि 1,200 वर्ग किलोमीटर में फैले कूनो राष्ट्रीय उद्यान के कोर और बफर क्षेत्र में 70 से 80 तेंदुएं हैं.

मालूम हो कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने चीतों की आबादी को पुनर्जीवित करने की परियोजना के तहत नामीबिया से लाए गए चीतों को 17 सितंबर को कूनो राष्ट्रीय उद्यान के विशेष बाड़ों में पृथकवास में छोड़ा था.

इनमें पांच मादा एवं तीन नर चीते हैं और अब इन सभी को पिछले महीने पृथक-वास क्षेत्र से निकालकर बड़े बाड़े में रखा गया है. भारत से 1952 में चीते विलुप्त हो गए थे.


यह भी पढ़ें: ‘पर्यावरण के अनुरूप नहीं, महंगा प्रोजेक्ट’, संरक्षणवादियों ने भारत के प्रोजेक्ट चीता पर उठाए सवाल


share & View comments