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Wednesday, 6 November, 2024
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कोविड-19 टीकों के नुकसान को लेकर अफवाहें फैलाता है सोशल मीडिया, लेकिन इसकी शुरुआत हमेशा वह नहीं करता

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(केटी एटवेल और टौएल हार्पर, यूनिवर्सिटी ऑफ वेस्टर्न ऑस्ट्रेलिया)

क्रॉले (ऑस्ट्रेलिया), चार जून (द कन्वरसेशन) दुनिया भर में दशकों से टीका विरोधी मुहिम चल रही है, जो टीकों से गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं पैदा होने की अफवाहें फैलाती रही है। ऐसे में कोविड-19 रोधी टीकाकरण शुरू होने के बाद इस प्रकार की अफवाहें फिर से फैलने लगी हैं।

वैश्विक महामारी की शुरुआत में लोग वायरस और उससे निपटने के लिए उठाए जाने वाले लॉकडाउन जैसे कदमों के सामाजिक एवं शारीरिक असर को लेकर चिंतित थे। कोविड-19 टीकाकरण शुरू होने के बाद एस्ट्राजेनेका टीकों के कारण खून के थक्के जमने संबंधी चिंताएं पैदा हो गईं।

इसके अलावा टीकाकरण के बाद अत्यंत दुर्लभ चिकित्सकीय समस्याएं होने को लेकर सोशल मीडिया पर फैलाई गईं कई अन्य निराधार अफवाहों ने लोगों में और घबराहट पैदा की।

आम तौर पर माना जाता है कि इन अफवाहों को फैलाने के पीछे सोशल मीडिया का हाथ है, लेकिन नए अनुसंधान के अनुसार, सोशल मीडिया इन अफवाहों को फैलाने में केवल मदद करता है।

हमारे हालिया अध्ययन में हमने टीकों के कथित प्रतिकूल प्रभावों को लेकर दुनिया भर में पैदा हो रही चिंताओं का पता लगाने की कोशिश की। इसके लिए हमने ‘गूगल ट्रेंड्स’ और ‘क्राउडटैंगल’ जैसे मंचों का उपयोग किया, जो फेसबुक के सार्वजनिक डेटा का अध्ययन करते हैं।

हमने सबसे अधिक बार खोजे जाने वाले पांच प्रतिकूल प्रभावों-थक्के जमना, बेहोशी, बेल्स पाल्सी, समय से पहले मौत और बांझपन का अध्ययन किया।

थक्के जमना

थक्के जमने की समस्या एस्ट्राजेनेका टीके से जुड़ी थी। इसके कारण टीकों को निलंबित कर दिया गया था या कई देशों में प्राधिकारियों ने टीकाकरण के लिए आयु संबंधी प्रतिबंध लगाए।

इससे संबंधित समाचार मुख्य रूप से सही थे और टीकाकरण से पैदा होने वाले खतरों से जुड़े थे। सोशल मीडिया ने इन खबरों को वैश्विक स्तर पर फैलाया और ऑस्ट्रिया में थक्के जमने का पहला मामला फेसबुक के जरिए घाना, फिलीपीन और मेक्सिको जैसे दूरस्थ देशों में भी चंद घंटों में पहुंच गया।

बेहोशी, बेल्स पाल्सी और समय से पहले मौत

जब हमने जांच की, तो अन्य चार अफवाहों का कोई वैज्ञानिक आधार नहीं मिला। इनमें से तीन अफवाहें टेलीविजन और अखबारों जैसे ‘‘पारंपरिक’’ समाचार माध्यमों से फैलीं।

बांझपन

कोविड-19 टीकाकरण से बांझपन की समस्या पैदा होने संबंधी अफवाह एकमात्र ऐसी अफवाह है, जो मूल रूप से ‘‘पारंपरिक मीडिया’’ से नहीं फैली। इंटरनेट पर प्रसारित दो रिपोर्ट में वैज्ञानिकों के शब्दों को गलत तरीके से पेश किया और इन्हें सोशल मीडिया पर व्यापक रूप से साझा किया गया।

मुख्यधारा के मीडिया संस्थान क्या करते हैं?

सोशल मीडिया पर पोस्ट साझा करने वालों के लिए पारंपरिक मीडिया संस्थान अहम हैं, क्योंकि वे मुख्यधारा के मीडिया की खबर को विश्वसनीय समझते हैं।

एक ओर, मुख्यधारा मीडिया की गलत और सनसनीखेज सुर्खियों को व्यापक स्तर पर साझा किया गया, तो दूसरी ओर, अनुचित दावों को खारिज करने या दबाने में भी पत्रकारों ने अहम भूमिका निभाई।

समाधान क्या है?

गलत सूचना के ऑनलाइन प्रसार को थामने का कोई आसान समाधान नजर नहीं आता। हालांकि, सोशल मीडिया पर प्रसारित खबरों और उन खबरों को लिखने वालों के लिए विश्वसनीयता संबंधी मापकों का उपयोग एक संभावित समाधान है।

इस बीच, हमारी सलाह है कि जब कथित प्रतिकूल प्रभावों की किसी खबर को लेकर स्पष्टीकरण की आवश्यकता हो, तो वैज्ञानिक एवं स्वास्थ्य पेशेवर अपना नजरिया पेश करें। इस तरह वे अफवाहें फैलने से होने वाले नुकसान को कम कर सकते हैं।

द कन्वरसेशन सिम्मी नेत्रपाल

नेत्रपाल

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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