(कोविला पीएल कूपामूटू, किंग्स कॉलेज लंदन)
लंदन, 28 दिसंबर (द कन्वरसेशन) महिलाएं ऑनलाइन सुरक्षा पर ज्यादा ध्यान नहीं देतीं, जबकि उनके लिए साइबर अपराधों और सोशल मीडिया पर उत्पीड़न का शिकार होने का जोखिम ज्यादा होता है। एक अध्ययन में हर पांच में से एक महिला ने माना कि उसे ऑनलाइन धोखाधड़ी और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है।
ब्रिटेन का ऑनलाइन सुरक्षा अधिनियम भले ही महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ साइबर हिंसा से निपटने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन समाधान सीधे नहीं हैं। महिलाओं के लिए रोकथाम, प्रशिक्षण और जागरूकता सभी आवश्यक हैं।
वेस्टमिंस्टर विश्वविद्यालय की मैगडेलिन एनजी के साथ किए गए सर्वेक्षण में मैंने पाया कि महिलाएं ऑनलाइन सुरक्षा सलाह और प्रौद्योगिकी को ज्यादा गंभीरता से नहीं लेतीं। लोगों को ऑनलाइन सुरक्षित रखने वाले सुरक्षा फीचर और गोपनीयता उपायों का इस्तेमाल करने तथा उनके बारे में जानकारी रखने के मामले में पुरुष महिलाओं से कहीं आगे हैं।
सर्वे में हमने 600 से अधिक वयस्कों (50 फीसदी महिलाएं और 50 फीसदी पुरुष) से उनके पसंदीदा ऑनलाइन गोपनीयता और सुरक्षा उपायों के बारे में पूछा। प्रतिभागियों ने ऑनलाइन सुरक्षा के बारे में सूचित रहने को अपना पसंदीदा उपाय बताया, जिसमें आधिकारिक निकायों से औपचारिक प्रशिक्षण लेना, वेब पेज के जरिये जानकारी जुटाना, साइबर सुरक्षा सॉफ्टवेयर को डाउनलोड करना और उनका इस्तेमाल करना तथा परिवार के सदस्यों एवं दोस्तों से मौखिक रूप से अनौपचारिक सलाह हासिल करना शामिल है।
हमारे सर्वे से पता चलता है कि पुरुषों और महिलाओं के ऑनलाइन सुरक्षा सलाह लेने के तरीके में बड़ा अंतर है। मिसाल के तौर पर, 76 फीसदी महिलाओं ने कहा कि वे परिवार के सदस्यों और दोस्तों से साइबर सुरक्षा के उपाय पूछने पर जोर देती हैं, जबकि पुरुषों के मामले में यह संख्या 24 प्रतिशत थी। वहीं, ऑनलाइन स्रोतों से साइबर सुरक्षा एवं गोपनीयता के उपायों के बारे में जानकारी जुटाने की बात करें, तो ऐसा करने वाले पुरुषों की संख्या 70 फीसदी और महिलाओं की तादाद 38 प्रतिशत थी।
हालांकि, यह जरूरी नहीं कि परिवार के सदस्यों और दोस्तों से मार्गदर्शन लेना जोखिम भरा हो, लेकिन इस बात की कोई गारंटी नहीं रहती कि उनके पास उचित जानकारी एवं सलाह मुहैया कराने का कौशल है। साथ ही, हमारा सर्वे दिखाता है कि ज्यादातर महिलाएं डिजिटल सुरक्षा सलाह उपलब्ध कराने वाले विश्वसनीय ऑनलाइन स्रोतों से अनजान हैं।
सर्वे से यह भी पता चलता है कि महिलाओं के सरल और अंतर्निहित ऑनलाइन सुरक्षा उपायों, मसलन-प्राइवेसी सेटिंग, सॉफ्टवेयर अपडेट तथा मजबूत पासवर्ड पर निर्भर रहने की संभावना ज्यादा होती है। जबकि, पुरुष अधिक उन्नत और मजबूत सुरक्षा उपायों का सहारा लेते हैं, जिनमें फायरवॉल, वीपीएन, एंटी-स्पाइवेयर, एंटी-मालवेयर, एंटी-ट्रैकिंग सॉफ्टवेयर और बहु-स्तरीय प्रमाणीकरण जैसी तकनीकें शामिल हैं।
हमारी रिपोर्ट में शोधकर्ताओं, प्रौद्योगिकी विकास एवं प्रदाता कंपनियों, ऑनलाइन सुरक्षा के पैरोकारों और नीति निर्माताओं के लिए निम्नलिखित सिफारिशें की गई हैं, जिन पर अमल कर डिजिटल सुरक्षा को महिलाओं की जरूरतों के हिसाब से अधिक समावेशी बनाया जा सकता है।
1.एनजीओ को सक्रिय समर्थन मुहैया कराना
-महिलाओं और लड़कियों को हिंसा एवं उत्पीड़न से बचाने पर ध्यान केंद्रित करने वाले कुछ सामुदायिक गैर-सरकारी संगठनों (एनजीओ) के पास महिलाओं की ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने का प्रत्यक्ष तथा गहन अनुभव होता है। ये एनजीओ साइबर हमले और ऑनलाइन उत्पीड़न झेलनी वाली महिलाओं को विशेष सहायता प्रदान कर सकते हैं।
लिहाजा, इन एनजीओ को ब्रिटिश सरकार और अन्य वित्त-पोषक संगठनों से सक्रिय समर्थन मिलना चाहिए, ताकि वे सभी महिलाओं तक पहुंच बनाने के लिए जरूरी उपकरण, संसाधन और कौशल हासिल कर सकें।
2.ऑनलाइन सलाह को अधिक सरल बनाना
-हमारे सर्वे में सामने आया है कि ऑनलाइन सुरक्षा सलाह को सरल रूप में तैयार किए जाने की जरूरत है, ताकि यह बिना तकनीकी पृष्ठभूमि वाले लोगों के लिए भी उपयोगी साबित हो सके। तकनीकी शब्दावली का इस्तेमाल और जटिल विवरण लोगों को बोझिल लग सकता है, जिससे अच्छी एवं जरूरी सलाह का प्रसार बाधित होता है।
सलाह के सबसे महत्वपूर्ण हिस्सों को प्राथमिकता देना और उन्हें उन ऑनलाइन स्रोतों पर लगातार प्रसारित करते रहना भी बेहद जरूरी है, जिनका लोग अकसर इस्तेमाल करते हैं। इन स्रोतों में सर्च इंजन, ऑनलाइन ‘रिव्यू्’ एवं सिफारिशें, प्रौद्योगिकी कंपनी के विज्ञापन और यूट्यूब तथा ‘एक्स’ जैसे सोशल मीडिया मंच शामिल हैं।
3.सलाह का बड़े पैमाने पर प्रसार जरूरी
-दुर्भाग्य से, महिलाओं को उनकी अंतरंग तस्वीरों को साझा किए जाने, साइबरफ्लैशिंग (अश्लील तस्वीरें भेजना) और ऑनलाइन उत्पीड़न जैसे कई विशिष्ट ऑनलाइन खतरों का सामना करना पड़ता है। इन खतरों से निपटने में मददगार सुरक्षा सलाह आमतौर पर महिलाओं का समर्थन करने वाले एनजीओ की वेबसाइट पर दी जाती है। हालांकि, हमें ऐसी सलाह को बड़े पैमाने पर सर्च इंजन, प्रौद्योगिकी कंपनी के विज्ञापनों और यूट्यूब तथा ‘एक्स’ जैसे सोशल मीडिया मंचों पर प्रसारित करने की जरूरत है।
4.साइबर सुरक्षा के उपाय बताने का मंच प्रदान करना
-साइबर हिंसा का सामना करने वाली महिलाओं और लड़कियों के लिए सुरक्षा सलाह अकसर उस सहायता पैकेज में अंतर्निहित होती है, जो एनजीओ पीड़िताओं को आघात से उबरने में मदद करने के लिए देते हैं। ऐसे में दुर्व्यवहार झेलने वाली महिलाओं के लिए नए ऑनलाइन मंच विकसित करना भी जरूरी है, ताकि वे अपने अनुभव साझा करने के साथ ही अन्य महिलाओं और लड़कियों में साइबर सुरक्षा के उपायों को लेकर जागरूकता पैदा कर सकें।
5.महिलाओं और लड़कियों में जरूरी कौशल का विकास
-हमारा सर्वे इस बात पर ध्यान देने की आवश्यकता को रेखांकित करता है कि महिलाओं और लड़कियों के पास अपनी ऑनलाइन सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए उचित डिजिटल कौशल होना चाहिए। इसके लिए स्कूल-कॉलेज और स्थानीय सामुदायिक केंद्रों के माध्यम से साइबर सुरक्षा का प्रशिक्षण उपलब्ध कराया जा सकता है।
इसके अलावा, महिलाएं और लड़कियां अपने तकनीकी कौशल से इतर बिना किसी खर्च के सर्वश्रेष्ठ सुरक्षा हासिल करने के लिए, इस बाबत सरल भाषा में सलाह तैयार करना और आसान तकनीक एवं उपाय विकसित करना भी जरूरी है।
6.नयी तकनीक पेश करने से पहले उसके जोखिम आंकना
-जब कोई नयी तकनीक या ऑनलाइन मंच विकसित किया जाता है, तब विभिन्न हितधारकों से राय-मशविरा कर इस बात का आकलन किया जाना चाहिए कि क्या यह लिंग-आधारित ऑनलाइन उत्पीड़न को बढ़ावा दे सकता है।
ऐसा उक्त तकनीक या ऑनलाइन मंच को सार्वजनिक इस्तेमाल के लिए उपलब्ध कराए जाने से पहले किया जाना चाहिए। इसके लिए सरकार, ऑफकॉम (ब्रिटेन का संचार नियामक), प्रौद्योगिकी जगत, ऑनलाइन मंच, गैर-सरकारी संगठनों और अनुसंधान संस्थानों के बीच संवाद एवं सहयोग बेहद जरूरी है।
(द कन्वरसेशन) पारुल नेत्रपाल
नेत्रपाल
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