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Wednesday, 9 October, 2024
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रूस, यूक्रेन और वॉर क्राइम्स: बूचा में हुई हत्याओं की जांच की मांग क्यों कोई खास मायने नहीं रखती

रूस-यूक्रेन युद्ध ने मानवता के खिलाफ हुए अपराधों को बड़ी तेजी के साथ चर्चा में ला दिया है. जब पूरी दुनिया रूस को इसके लिए जवाबदेह ठहराना चाहती है, दिप्रिंट इस बात पर गौर कर रहा है कि क्यों इस बारे में बातें करना इसे हासिल करने से कहीं ज्यादा आसान है.

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नई दिल्ली: यूक्रेन के राष्ट्रपति व्लोदिमीर जेलेंस्की ने मंगलवार को संयुक्त राष्ट्र के मंच से बोलते हुए रूस द्वारा उनके देश में, विशेष रूप से यूक्रेन की राजधानी से 24 किमी उत्तर-पश्चिम में स्थित कीव ओब्लास्ट के एक शहर बूचा में, युद्ध अपराधों को अंजाम दिए जाने का आरोप लगाया.

मार्च से ही रूसी नियंत्रण में रहे बूचा शहर पर फिर से अपना नियंत्रण पाने के बाद यूक्रेनी अधिकारियों ने कथित तौर पर कम-से कम 300 ऐसे नागरिकों के शवों की पहचान की थी जिन पर अत्याचार और यातना- जैसे कि बांधा जाना, जलाया जाना या सिर में गोली मारे जाने- के संकेत स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहे थे.

हालांकि, रूस ने इन आरोपों को झूठा और यूक्रेन द्वारा ‘एक और उकसावे’ की कार्रवाई करार दिया, पर मौके पर मौजूद मीडिया के सदस्यों ने स्थानीय चश्मदीदों के बयानों, उपग्रह की तस्वीरों और यूक्रेनी अधिकारियों का हवाला देते हुए रूस के दावों का खंडन किया है.

इस बीच, यूक्रेन पर भी इस सप्ताह युद्ध अपराध में शामिल होने का आरोप लगाया गया है- न्यूयॉर्क टाइम्स द्वारा सत्यापित किये गए एक वीडियो में कीव के बाहर यूक्रेनी सैनिकों को साफ तौर पर उन रूसी सैनिकों को मारते हुए दिखाया गया है जिन्हें उन्होंने पहले ही अपने कब्जे में ले लिया था.

इसके बाद से संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसी प्रमुख शक्तियों ने रूस के खिलाफ ऊर्जा उत्पाद के आयात पर प्रतिबंधों और कड़े वित्तीय प्रतिबंधों के रूप में और अधिक प्रतिबंध लगाए हैं. इसके अलावा, गुरुवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा रूस को संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से निलंबित करने के लिए भी एक प्रस्ताव पारित किया गया.

एक ओर जहां रूस को जवाबदेह ठहराने के लिए उठ रही अंतरराष्ट्रीय मांगों ने युद्ध अपराधों की धारणा पर फोकस फिर से डाला है, वहीं दिप्रिंट ने यह दर्शाने के लिए अंतरराष्ट्रीय कानूनों की रूपरेखा की पड़ताल करने की कोशिश की है कि किन वजहों से ऐसा करना इतना आसान नहीं होने वाला.


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युद्ध अपराध होते क्या हैं?

इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट (आईसीसी) के रोम स्टेट्यूट के अनुच्छेद 8 के अनुसार, युद्ध अपराध का मतलब मुख्य रूप से 1949 के जिनेवा कन्वेंशन का ‘गंभीर उल्लंघन’ होता है. इन उल्लंघनों में किसी को जानबूझकर जान से मारना या शारीरिक नुकसान पहुंचाना, यातना देना, संपत्ति को नष्ट करना, युद्धबंदियों को निष्पक्ष मुकदमे के अधिकार से वंचित करना या उन्हें ‘शत्रुतापूर्ण ताकत’ के लिए काम करने के लिए मजबूर करना और बंधक बनाना शामिल है.

इसी स्टेट्यूट के अनुसार, युद्ध अपराध का आशय जानबूझकर सामान्य नागरिकों की हत्या करना या उन पर हमला करना, मानवीय कार्यों या शांति स्थापना में लगे वाहनों या कर्मियों पर हमला करना, लूटपाट, बलात्कार और जहरीले या रसायनिक हथियारों का उपयोग आदि भी है.

17 जून 1998 को इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट के रोम स्टेट्यूट का मसौदा तैयार किया गया और इस पर हस्ताक्षर किए गए तथा यह 1 जुलाई 2002 को अमल में आ गया. यह स्टेट्यूट नरसंहार, मानवता के खिलाफ अपराध, युद्ध अपराध और आक्रामकता के अपराधों को अंतरराष्ट्रीय अपराधों की चार प्रमुख श्रेणियों के रूप में वर्गीकृत करता है.

हालांकि, रोम स्टेट्यूट के तहत युद्ध अपराध, नरसंहार और मानवता के खिलाफ अपराधों की पड़ताल के लिए स्थापित इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट- जिसका मुख्यालय द हेग, नीदरलैंड में है- का अधिकार क्षेत्र केवल उन्हीं देशों तक सीमित है जो इसके सदस्य राष्ट्र (स्टेट पार्टीज) हैं यानी जिन्होंने इस पर हस्ताक्षर किए हैं और इस कानून का रैटिफिकेशन किया है.


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जटिलताएं और प्रतिरोध करने वाले देश

एक तरफ जहां यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, जर्मनी, जापान और दक्षिण अफ्रीका सहित 123 देशों ने इन वर्षों के दौरान रोम स्टेट्यूट को माना है, वहीं कुछ देश अभी भी ऐसा करने से मना कर रहे हैं. इनमे वे देश भी शामिल हैं जिन्होंने शुरुआत में इस पर हस्ताक्षर कर दिए थे लेकिन ईरान, मिस्र, सीरिया, संयुक्त अरब अमीरात और यूक्रेन, जैसे ये देश अब इसकी संपुष्टि से मना कर रहें हैं. इसके अलावा कुछ ऐसे देश- जैसे रूस, संयुक्त राज्य अमेरिका, इजरायल और सूडान भी हैं जिन्होंने बाद में अपने हस्ताक्षर वापस ले लिये थे.

मिसाल के तौर पर, यूक्रेन ने 2000 में इस कानून पर हस्ताक्षर किए लेकिन इसकी पुष्टि नहीं की. इसने ऐसा 2001 में एक संवैधानिक अदालत के फैसले के मद्देनजर किया था जिसने इस कानून को यूक्रेनी संविधान के साथ ‘असंगत (बेमेल)’ घोषित कर दिया था.

हालांकि, यूरोमैदान की क्रांति– यूक्रेन में 2014 में हुए विरोध प्रदर्शन जिनकी वजह से तत्कालीन यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच को देश से निष्काषित कर दिया था और डोनबास क्षेत्र- एक विवादित क्षेत्र जहां रूस दो अलगाववादी क्षेत्रों डोनेत्स्क और लुगांस्क को नियंत्रित करता है- में बढ़ती अलगाववादी हिंसा के बीच आईसीसी को नवंबर 2013 में यूक्रेन में इसका अधिकार क्षेत्र दे दिया गया था. इसके बाद से 2019 में हुए संवैधानिक संशोधनों के बाद यूक्रेन पिछले तीन वर्षों में किसी भी समय रोम स्टेट्यूट की पुष्टि कर सकता था लेकिन अभी तक ऐसा नहीं किया गया है.

यूरोमैदान की क्रांति एक बड़े पैमाने पर हुआ सार्वजनिक विरोध प्रदर्शन था, जो कि यानुकोविच द्वारा यूरोपियन यूनियन – यूक्रेन एसोसिएशन एग्रीमेंट और डीप एंड कॉम्प्रेहैन्सिव ट्रेड एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिए जाने के बाद भड़का था. इन दोनों समझौतों का मकसद यूक्रेन और यूरोपीय संघ के बीच के रिश्तों को और मजबूत करना था. फिलहाल यूक्रेन के पूर्व राष्ट्रपति यानुकोविच रूस में निर्वासित जीवन व्यतीत कर रहे हैं.

रूस ने भी साल 2000 में इस स्टेट्यूट की पुष्टि किए बिना इस पर हस्ताक्षर कर दिया थे. मगर, नवंबर 2016 में आईसीसी द्वारा एक रिपोर्ट प्रकाशित करने के एक दिन बाद रूस ने संयुक्त राष्ट्र महासचिव बान की-मून को सूचित किया कि वह अपने हस्ताक्षर वापस ले रहा है. इस रिपोर्ट में रूस द्वारा 2014 में क्रीमिया के अपने देश में विलय को ऑक्यूपेशन बताया गया था.

दूसरी ओर, भारत और पाकिस्तान उन गैर-सदस्य राज्यों (नॉन-पार्टी स्टेट्स) में से हैं, जिन्होंने कभी भी इसके स्टेट्यूट पर हस्ताक्षर ही नहीं किए, हालांकि दोनों देशों के टिप्पणीकार उनसे अपने रूख पर फिर से विचार करने की मांग करते रहे हैं.

इस तरह की टिप्पणियों के अलावा इन कुछ वर्षों में पाकिस्तान द्वारा हस्ताक्षर न किये जाने पर अपेक्षाकृत कम ध्यान दिया गया है लेकिन 1998 में आईसीसी में रोम स्टेट्यूट पर मतदान से दूर रहने का भारत का फैसला काफी विवादास्पद रहा है.

भारत ने इस संभावना का हवाला दिया था कि आईसीसी को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के ‘अधीन कर दिया जाएगा’ और इसकी विभिन्न आपत्तियों में संयुक्त राष्ट्र के स्थायी सदस्यों का संभावित ‘राजनीतिक हस्तक्षेप’ भी शामिल था. दिलीप लाहिरी ने आर्गेनाइजर रिसर्च फाउंडेशन (ओआरएफ) के लिए लिखते हुए बताया था कि भारत ने तब यह भी कहा था कि इस कानून द्वारा दी गई युद्ध अपराधों की परिभाषा में आतंकवाद और परमाणु हथियारों का उपयोग किया जाना शामिल नहीं है.


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क्यों आरोपों से बच कर निकल सकता है रूस?

रोम स्टेट्यूट की स्थापना के बाद से आईसीसी के सामने सबसे बड़ी बाधा सार्वभौमिक अधिकार क्षेत्र, या यूं कहें की इसकी कमी- की रही है, क्योंकि इस स्टेट्यूट पर हस्ताक्षर करने वाले देशों ने हमेशा से आईसीसी को यूनिवर्सल जूरिस्डिक्शन देने को मना किया है. इसके बजाय जिन देशों में आईसीसी का अधिकार क्षेत्र नहीं था वहां होने वाले युद्ध अपराधों की कुछ पिछली घटनाओं- जैसे कि 2005 में हुआ दारफुर वाला मामला- में ये मामले संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद द्वारा आईसीसी को स्थानांतरित किये गए थे.

चूंकि न तो रूस और न ही यूक्रेन रोम स्टेट्यूट का एक सदस्य देश है, इसलिए वहां के युद्ध अपराधों की जांच के बारे में आईसीसी के अधिकार क्षेत्र पर संदेह बना हुआ है. यूक्रेन द्वारा 2013 में आईसीसी को अधिकार क्षेत्र दिए जाने का मतलब है कि इस अदालत के पास यूक्रेन के भीतर हुए युद्ध अपराधों के संबंध में अधिकार क्षेत्र है. लेकिन, अल जज़ीरा की एक रिपोर्ट के अनुसार अगर आईसीसी के पास इन युद्ध अपराधों की जांच करने का अधिकार क्षेत्र हो तब भी व्लादिमीर पुतिन या बूचा में हुए अपराधों के लिए कथित तौर पर दोषी किसी अन्य रूसी अपराधी पर मुकदमा चलाने की कानूनी प्रक्रिया काफी लंबी हो सकती है.


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यूएस और यूके कहां खड़े हैं?

हालांकि, युद्ध अपराधों और आईसीसी के संदर्भ में कुछ सबसे बड़ी जटिलताओं में एक इसके एक सदस्य देश, यूनाइटेड किंगडम और लंबे समय से हस्ताक्षर वापस ले लेने वाले देश, संयुक्त राज्य अमेरिका से जुड़े मामले भी शामिल हैं. इनमें विशेष रूप से इराक और अफगानिस्तान में उनके सशस्त्र बलों द्वारा कथित रूप से किए गए ऐतिहासिक कृत्यों के मामले भी शामिल हैं.

ब्रिटेन के मामले में कथित युद्ध अपराधों की जांच का सबसे प्रसिद्ध मामला लंबे समय तक चलने वाली इराक मामले की जांच है. सबसे पहले 2009 में पूर्व प्रधानमंत्री गॉर्डन ब्राउन द्वारा घोषित इस जांच की प्रमुख रिपोर्ट, जिसे चिलकोट रिपोर्ट के रूप में जाना जाता है, 2016 तक भी प्रकाशित नहीं हुई थी.

यह रिपोर्ट मुख्य रूप से युद्ध से पहले तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री टोनी ब्लेयर की कार्रवाइयों पर केंद्रित थी, जैसे कि उनके द्वारा इराकी राज्य के प्रमुख सद्दाम हुसैन 2002-03 से ‘खतरे को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करना’ और इन चेतावनियों पर ध्यान नहीं देना कि आक्रमण के बाद क्या हो सकता है.

रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि ब्रिटेन ने मारे गए इराकी नागरिकों की संख्या पर नज़र रखने के संदर्भ में समुचित कार्यवाही नहीं की और इसके बजाए मोटे तौर पर प्राप्त अनुमानों का हवाला दिया.

इस बारे में ‘द गार्जियन’ ने एक खबर छापी थी कि 2014 में आईसीसी ने इराक में यूके द्वारा किए गए युद्ध अपराधों के आरोपों के बारे में अपनी जांच फिर से शुरू कर दी थी लेकिन 2020 में उसने इसे यह कहते हुए छोड़ दिया कि इन अपराधों के सबूत उपलब्ध होने के बावजूद, ‘इस बात का कोई सबूत नहीं था कि यूके के अधिकारियों ने किसी भी तरह से जांच को अवरुद्ध कर दिया था या फिर वे इसका पता लगाने के प्रति अनिच्छुक थे.’

इस बीच, अमेरिका ने साल 2000 में राष्ट्रपति क्लिंटन के प्रशासन के तहत रोम स्टेट्यूट पर हस्ताक्षर किए थे लेकिन वह आईसीसी के अधिकार क्षेत्र से बाहर रहा क्योंकि दो साल से भी कम समय के बाद राष्ट्रपति बुश ने घोषणा की कि वह रोम स्टेट्यूट से पीछे हट रहे हैं.

विभिन्न राष्ट्रपतियों के तहत विभिन्न प्रशासनों द्वारा व्यक्त किए गए विभिन्न राय के बावजूद अमेरिका के पास तब से लेकर अब तक के समय काल में इस कानून और आईसीसी के प्रति आलोचनाओं की लंबी चौड़ी सूची रही है.

इनमें ‘राजनीतिक अभियोगों’ और आईसीसी अभियोजकों की जवाबदेही से लेकर अमेरिकी सैन्य गतिविधियों पर सामान्य अधिकार क्षेत्र के मुद्दों और ‘उचित प्रक्रिया की कमी’ तक के आरोप शामिल हैं.

हालांकि इनमें सबसे उल्लेखनीय मामला ट्रंप प्रशासन के दौरान आईसीसी के प्रति अमेरिका का आक्रामक रवैया था. सितंबर 2020 में, इस देश ने अफगानिस्तान में किये गए कथित अमेरिकी युद्ध अपराधों की जांच के बीच आईसीसी अभियोजक फतो बेंसौदा पर प्रतिबंध लगा दिए थे.

‘फॉरेन पॉलिसी’ की एक रिपोर्ट के अनुसार, हालांकि ट्रंप के उत्तराधिकारी के रूप में राष्ट्रपति बाइडन ने रूस द्वारा किये जा रहे कथित युद्ध अपराधों की जांच के लिए आईसीसी से मांग की है मगर, यूक्रेन की स्थिति ने बाइडन प्रशासन को एक ऐसे अंतरराष्ट्रीय संगठन का समर्थन करने की दुविधा में डाल दिया है जिसे अमेरिका ने पहले ही अपने स्वयं के सैन्य क्रियाकलापों की पड़ताल करने से रोका हुआ है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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