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Friday, 22 November, 2024
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अमरुल्ला सालेह की बेटी ने कहा- तालिबान की वापसी अफगानों की नई पीढ़ी के लिए सबसे बड़ा आघात

दिल्ली यूनिवर्सिटी में अध्ययन करने वाली खालिदा सालेह ने दिप्रिंट को दिए खास इंटरव्यू में कहा कि प्रतिरोध आंदोलन नहीं रुकेगा क्योंकि अफगानों को तालिबान की वापसी स्वीकार करने को मजबूर किया गया है.

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नई दिल्ली: अफगानिस्तान के पूर्व उपराष्ट्रपति अमरुल्ला सालेह की 25 वर्षीय बेटी खालिदा सालेह का कहना है कि अफगानिस्तान के लोगों ने तालिबान को नहीं चुना, वे बलपूर्वक सत्ता में लौटे हैं और ‘कभी सुधरने वाले नहीं’ हैं. उन्होंने तालिबान की वापसी को एक बेहतर और सुरक्षित अफगानिस्तान की उम्मीद करने वाली देश की युवा पीढ़ी के लिए ‘सबसे बड़ा आघात’ बताया है.

खालिदा ने एक अज्ञात स्थान से दिप्रिंट को दिए खास इंटरव्यू में कहा कि प्रतिरोध आंदोलन- जिसे जाने-माने विद्रोही अफगान नेता अहमद शाह मसूद के बेटे अहमद मसूद और अब खुद को इस युद्धग्रस्त देश का ‘कार्यवाहक राष्ट्रपति’ घोषित कर चुके उनके पिता अमरुल्ला की तरफ से शुरू किया गया था- जारी रहेगा क्योंकि इसे अफगानिस्तान के लोगों का समर्थन मिल रहा है.

दिल्ली यूनिवर्सिटी में अध्ययन करने वाली खालिदा ने दिप्रिंट के साथ फोन पर बातचीत में कहा, ‘इस समूह (तालिबान) को लोगों ने नहीं चुना… वे बलपूर्वक आए हैं और इस तरह के किसी गुट से सम्मान की उम्मीद करना शार्क के क्षेत्र में तैरने वाले किसी व्यक्ति पर शार्क की तरफ से हमला नहीं किए जाने की उम्मीद करने जैसा है.’ यह पहला मौका है जब खालिदा ने मीडिया से कोई बातचीत की है.

उन्होंने कहा, ‘मैं मानती हूं कि तालिबान खुद को अफगानिस्तान का शासक कहते हैं लेकिन क्या वे उन लोगों के दिलों पर शासन कर सकते हैं जो अमीरात ऑफ अफगानिस्तान के बजाये रिपब्लिक ऑफ अफगानिस्तान चुनने के इच्छुक हैं और तालिबान के सफेद झंडे के बजाये तीन रंगों के झंडे को चुनना चाहते हैं? अहमद (मसूद) और महामहिम अमरुल्ला सालेह इस लड़ाई में अकेले नहीं हैं, वो लोग उनके साथ खड़े हैं जो सही मायने में अफगानिस्तान राष्ट्र के प्रतिनिधि हैं.’

खालिदा, जो सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ‘फ्रोहर सालेह’ के नाम से जानी जाती हैं, ने हाल ही में एक ट्वीट में कहा था कि उनके पिता को ‘अपने राष्ट्र पर गर्व है’ और वह अपनी जंग से ‘पीछे नहीं हटेंगे.’

1996 में जब तालिबान पहली बार अफगानिस्तान की सत्ता पर काबिज हुआ था, उसी साल जन्मी खालिदा ने कहा कि उनके पिता तालिबान के आगे ‘न झुकने पर अडिग’ हैं क्योंकि वे कभी बदलने वाले नहीं’ हैं.

उन्होंने आगे कहा, ‘उनके क्रूर और हिंसक कृत्य पूरे इंटरनेट पर मौजूद हैं. उन्होंने आम माफी का ऐलान किया था, फिर भी हर दिन हम अपने प्रतिभाशाली पायलटों, एनडीएसएफ कमांडरों और उच्च स्तर के आधिकारिक पदों पर रहे सदस्यों जैसे जाने-माने चेहरों की बेरहमी से हत्या होते देख रहे हैं…वे अमेरिका और अफगानिस्तान सरकार की मदद करने वाले लोगों की तलाश में घर-घर तलाशी लेते हैं. तमाम महिला पत्रकार और महिला अधिकार कार्यकर्ता छिपी हुई हैं और वे अपनी जिंदगी और परिवार की सुरक्षा को लेकर डरी हुई हैं.’

देश में महिलाओं की सुरक्षा और अधिकारों का मुद्दा पिछले एक पखवाड़े से सुर्खियों में है, जबसे काबुल तालिबान के हाथों में आया है. महिलाओं को उनके सरकारी दफ्तर के बजाये घरों में रहने को कहा गया है और बुर्के की दुकानों पर ग्राहकों में तेजी दिखी है. हालांकि, कुछ महिलाओं ने ताजा हालात का कड़ा मुकाबला किया है और यहां तक कि काबुल में विरोध प्रदर्शन भी किया.


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‘कभी सोचा नहीं था कि काबुल में इतनी जल्दी हार होगी’

खालिदा ने कहा कि 2001 में अमेरिका और नाटो बलों की तरफ से सत्ता से बेदखल किए जाने के बाद तालिबान की सत्ता में वापसी देश की युवा पीढ़ी के लिए ‘सबसे बड़ा आघात’ है, खासकर उनके जैसी महिलाओं के लिए जिन्होंने इसे और आगे बढ़ाने और अफगानिस्तान में शांतिपूर्ण जीवन जीने का सपना देखा.

उन्होंने कहा, ‘मैं अप्रैल 1996 में पैदा हुई थी, उसी साल जब तालिबान ने अफगानिस्तान पर कब्जा कर लिया था और अब यह वर्ष 2021 है और वे फिर से लौट आए हैं. हमने कभी सोचा भी नहीं था कि काबुल पर इतनी जल्दी उनका कब्जा हो जाएगा…सिर्फ मैं ही नहीं, बल्कि मुझे तो लगता है कि पूरी दुनिया यहां मिली शिकस्त से स्तब्ध थी. सबसे बड़ा आघात तो देश की युवा पीढ़ी को लगा है जो कभी इतिहास दोहराने का हिस्सा नहीं बनना चाहती थी.’

15 अगस्त को तालिबान आराम से राजधानी की सड़कों पर पहुंच गए थे और 24 घंटे के भीतर ही उन्होंने इसे अपने नियंत्रण में ले लिया था, क्योंकि राष्ट्रपति अशरफ गनी देश छोड़कर भाग गए थे.

पूरे घटनाक्रम पर दुनियाभर की नजरें टिकी होने को देखते हुए तालिबान ने अफगानिस्तान के सरकारी कर्मियों के लिए माफी की घोषणा की थी और कहा था कि महिलाओं के अधिकारों को तब तक बनाए रखेगा, जब तक कि यह शरिया कानून के मुताबिक होंगे.

खालिदा के मुताबिक, यह वैसा नहीं है जैसा आज की अफगान महिलाएं चाहती हैं.

उन्होंने कहा, ‘कोई भी अफगान महिला शरिया शासन में नहीं रहना चाहती क्योंकि इस्लाम और शरीयत वह नहीं है जो वे महिलाओं पर थोप रहे हैं. अफगान महिलाएं 1996 के दौर में नहीं हैं. तालिबान उन्हें जितना ही दबाना चाहता था, उससे उलट उन्होंने कहीं ज्यादा ही हासिल कर लिया है.’

खालिदा ने कहा कि अगर तालिबान ‘सही मायने में इस्लाम के अनुयायी’ होते तो वे इस तरह लोगों को नहीं मारते और महिलाओं को प्रताड़ित नहीं करते.

उन्होंने कहा, ‘क्या आपको लगता है कि किसी देश की राजधानी पर ऐसे किसी समूह का नियंत्रण होना किसी भी तरह सुरक्षित है जिसे महान साम्राज्यों का कब्रगाह कहा जाता है? नहीं… न केवल उनका काबुल पर कब्जा सुरक्षित है, बल्कि उनका फिर से काबिज होना मेरी पीढ़ी के लिए बेहद खतरनाक है जो अपने अधिकारों और देश को नहीं छोड़ना चाहती. और साथ ही यह दुनियाभर के लिए भी एक बड़ी चिंता है.’


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‘अमेरिकी जंग के लिए अफगानों ने खुद को जोखिम में डाला’

अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन द्वारा अपने बयान में उठाए गए इस सवाल कि अमेरिका को किसी ऐसे देश में जंग क्यों लड़नी चाहिए जो उसके राष्ट्रीय हित में नहीं है, पर खालिदा ने कहा कि वह भूल गए हैं कि अफगानिस्तान ने ‘70,000 लोगों की शहादत दी है…जो हमेशा अग्रिम पंक्ति में रहे थे.’

उन्होंने कहा, ‘उन्होंने वो जंग लड़ने के लिए अपने जीवन और परिवारों को जोखिम में डाल दिया जो उनके हित में नहीं थी. अफगान नागरिकों ने एक युद्ध लड़ा जो 9/11 की घटना के बाद शुरू हुआ था और अभी भी लड़ रहा है. अमेरिका का जल्दबाजी में पीछे हटना मेरे लिए हतप्रभ करने वाला कदम नहीं था, खासकर जब हम यह जानते हैं कि उन्होंने इराक, वियतनाम और अब अफगानिस्तान में क्या किया है.

बाइडन ने यह टिप्पणी तालिबान के कब्जे के बीच अमेरिका के जल्दबाजी में पीछे हटने को लेकर बढ़ती आलोचना के जवाब में की थी. उन्होंने अपने फैसले का बचाव करते हुए कहा था कि अमेरिका उस देश के लिए जंग नहीं लड़ सकता जो अपनी लड़ाई खुद लड़ने को तैयार नहीं है.

अमेरिकी सैनिकों की वापसी पर अपने पिता की बीबीसी के साथ बातचीत का हवाला देते हुए खालिदा ने कहा, ‘अमेरिका अपने काले इतिहास को अपनी अगली पीढ़ियों तक कैसे पहुंचाएगा?’

अमरुल्ला ने कहा था कि अमेरिका ने ‘तालिबान को बहुत ज्यादा स्वीकार्यता देकर’ गलती की है.

खालिदा ने परोक्ष रूप से पाकिस्तान का जिक्र करते हुए कहा, ‘क्या वे (अमेरिका) कहेंगे कि हमने 3 ट्रिलियन डॉलर खर्च किए, हमने 300,000 अफगान सैनिकों को प्रशिक्षित किया और फिर भी एक ऐसे समूह को हराने में नाकाम रहे जिसे मदरसों में प्रशिक्षित किया गया, जिसका कुछ मुल्लाओं ने ब्रेनवॉश किया और जिसे एक ऐसे देश में प्रशिक्षण मिला जो खुद को आर्थिक और राजनीतिक रूप से स्थिरता के साथ स्थापित करने में नाकाम रहा है और कभी भारत और अफगानिस्तान का हिस्सा था.’


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‘अफगानिस्तान में शांति लौटेगी और यह फिर चमकेगा’

अफगानिस्तान की ‘बेटी होने पर गर्व करने’ वाली खालिदा का मानना है कि पंजशीर घाटी में उनके पिता और मसूद की तरफ से चलाया जा रहा प्रतिरोध आंदोलन बेकार नहीं जाएगा और यह आने वाले दशकों में इसे एक शांतिपूर्ण राष्ट्र बनाने में मददगार साबित देगा.

खालिदा ने कहा, ‘मैं अगले 20 सालों में एक शांतिपूर्ण अफगानिस्तान देखती हूं और यह ऐसा देश होगा जिसमें सभी के लिए जगह होगी. यह न भूलें कि हमारे पूर्वजों ने सिकंदर महान के साथ क्या किया था, न ही यह भूलना चाहिए कि अहमद शाह मसूद ने यूएसएसआर के साथ क्या किया था. यह हमारे लिए काला युग नहीं है. यह हमारे लिए फिर से खड़े होने का मौका है और इस बार हम पहले से कहीं ज्यादा मजबूत होकर उठेंगे और चमकेंगे और यह सब हम अपने लिए करेंगे, किसी और देश के लिए नहीं. यह हमारी अपनी जंग है.’

(नोट: सुरक्षा कारणों से खालिदा सालेह ने दिप्रिंट के साथ अपनी तस्वीर साझा करने से मना किया है)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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