(जॉयस सियेट, वेस्टर्न सिडनी यूनिवर्सिटी और गिलबर्ट नैग्स, यूनिवर्सिटी ऑफ सिडनी)
सिडनी, 13 मई (द कन्वरसेशन) जैसे-जैसे डिमेंशिया के बारे में लोगों में जागरूकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे रोकथाम के उपाय जानने की दिलचस्पी में भी इजाफा हो रहा है। मीडिया में आई खबरों में नियमित व्यायाम, स्वस्थ खानपान, दिमागी कसरत और सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी को डिमेंशिया के जोखिम में कमी लाने के लिए कारगर बताया गया है।
पिछले साल ‘द लांसेट’ पत्रिका में छपे एक शोध में दावा किया गया था कि जोखिम वाले कारकों को हल करके दुनिया भर में डिमेंशिया के लगभग 45 फीसदी मामलों को या तो टाला जा सकता है या फिर बीमारी के उभार को रोका जा सकता है।
ये शोध बेशक उम्मीद की किरण जगाते हैं। इनसे संकेत मिलता है कि व्यक्तिगत प्रयासों और चिकित्सा-विज्ञान जगत में होने वाली नयी खोजों से डिमेंशिया जैसी लाइलाज बीमारी से बचाव में मदद मिल सकती है।
डिमेंशिया क्या है और क्यों होता है?
-डिमेंशिया तंत्रिका-तंत्र से जुड़ा एक विकार है, जिसमें याददाश्त, सोचने-समझने एवं फैसले लेने की शक्ति और रोजमर्रा के काम करने की क्षमता प्रभावित होती है।
अल्जाइमर (मस्तिष्क के अंदर और उसके आसपास की कोशिकाओं में एमिलॉयड नाम के प्रोटीन के थक्के जमने से होने वाला डिमेंशिया) को डिमेंशिया का सबसे आम स्वरूप माना जाता है।
इसके अलावा, बड़े पैमाने पर ‘वैस्कुलर डिमेंशिया’ (मस्तिष्क में खून का प्रवाह धीमा पड़ने के कारण होने वाला डिमेंशिया) और ‘लेवी बॉडी डिमेंशिया’ (मस्तिष्क में ‘लेवी बॉडी’ नाम के प्रोटीन के थक्के जमने से होने वाला डिमेंशिया) के मामले भी सामने आते हैं।
डिमेंशिया में तंत्रिका-तंत्र की कोशिकाएं क्षतिग्रस्त हो जाती हैं, जिससे उनमें संचार की प्रक्रिया प्रभावित होती है और व्यक्ति को भ्रम, भूलने की बीमारी और व्यवहार में बदलाव की शिकायत सता सकती है।
डिमेंशिया को लेकर मरीज को आजादी छिनने, उसके दूसरों पर निर्भर होने और अलग-थलग पड़ जाने जैसे सामाजिक डर व्याप्त हैं।
किन वजहों से बढ़ता है खतरा?
-डिमेंशिया का जोखिम बढ़ाने वाले कुछ कारकों को संबोधित नहीं किया जा सकता है। उम्र इनमें से एक कारक है। इसके अलावा, परिवार में बीमारी का इतिहास और ‘एपीओई-ई4’ सहित कुछ अन्य जीन की मौजूदगी भी डिमेंशिया के खतरे के प्रति अधिक संवेदनशील बनाती है।
हालांकि, जोखिम बढ़ाने वाले कई ऐसे कारक भी हैं, जिन्हें हल कर डिमेंशिया के उभार को टाला या रोका जा सकता है। इनमें मोटापा, उच्च कोलेस्ट्रॉल और उच्च रक्तचाप की समस्या शामिल है। इसके अलावा, शारीरिक सक्रियता बढ़ाकर और स्वस्थ खानपान अपनाकर भी डिमेंशिया का खतरा घटाया जा सकता है।
बचाव के उपाय
-फिनलैंड, फ्रांस, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका सहित कई देशों में शोध के जरिये यह पता लगाने की कोशिश की गई कि क्या स्वस्थ खानपान अपनाकर, शारीरिक सक्रियता बढ़ाकर, दिमागी कसरत वाली गतिविधियों में शामिल होकर और हृदयरोगों का जोखिम बढ़ाने वाले कारकों (उच्च रक्तचाप, उच्च कोलेस्ट्रॉल, मोटापा और धूम्रपान) को नियंत्रित करके डिमेंशिया के खतरे में कमी लाई जा सकती है।
फिनलैंड में हुए शोध से सामने आया कि डिमेंशिया के जोखिम के प्रति संवेदनशील बुजुर्ग लगातार दो-तीन साल तक स्वस्थ दिनचर्या से जुड़ी ये आदतें अपनाएं, तो उनकी याददाश्त और तर्क-शक्ति प्रभावित होने की आशंका में कमी आती है।
(द कन्वरसेशन) पारुल मनीषा
मनीषा
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