(विनय शुक्ला)
मॉस्को, सात मई (भाषा) आज से ठीक 25 साल पहले सात मई को केबीजी के पूर्व कर्नल और सार्वजनिक रूप से कम दिखाई देने वाले सेंट पीटर्सबर्ग के उपमहापौर व्लादिमीर पुतिन रूस के शीर्ष पद पर आसीन हुए।
पच्चीस साल बाद भी पुतिन रूस के सबसे लोकप्रिय नेता बने हुए हैं और पिछले साल हुए चुनाव इसकी स्पष्ट गवाही देते हैं जिसमें पुतिन को कुल 88.48 प्रतिशत वोट मिले थे।
रविवार को दिखाई गई एक टीवी डॉक्युमेंट्री में उन्होंने कहा कि वह एक उत्तराधिकारी की तलाश कर रहे हैं, लेकिन यह उनके अधिकार में नहीं है, क्योंकि उत्तराधिकारी को मजबूत प्रतिद्वंद्वियों के साथ चुनाव में बहुमत हासिल करना होगा।
पुतिन के पूर्ववर्ती बोरिस येल्तसिन रूस के प्रत्यक्ष रूप से चुने गए पहले राष्ट्रपति थे। उन्होंने बिगड़ते स्वास्थ्य, राजनीतिक अस्थिरता, वित्तीय और आर्थिक समस्याओं, उत्तरी कॉकेसस में उग्रवाद और सिलसिलेवार आतंकी हमलों के कारण अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने नववर्ष की पूर्व संध्या पर 31 दिसंबर 1999 को तत्कालीन प्रधानमंत्री पुतिन को देश की बागडोर सौंप दी थी।
पुतिन 26 मार्च 2000 को राष्ट्रपति चुने गए। 53 प्रतिशत वोट हासिल करके उन्होंने अपने वामपंथी प्रतिद्वंद्वी गेनेडी ज्यूगानोव और लिबरल ब्लॉक याबलोको को नेता ग्रिगोरी यावलिंस्की को हराया था।
जिस तरह पुतिन ने चेचन उग्रवाद का डटकर मुकाबला किया, समाज के सबसे कमजोर वर्ग को समय पर पेंशन का आश्वासन दिया, देश में विनिर्माण को पुनर्जीवित किया, रोजगार के अवसर पैदा किए, उसकी वजह से लगभग 72 प्रतिशत वोटों के साथ उन्हें दूसरी बार जीत हासिल हुई।
रूस के संविधान में कोई व्यक्ति लगातार दो बार चार-चार वर्ष के लिए राष्ट्रपति बन सकता है। ऐसे में पुतिन ने पद छोड़ दिया और चार वर्षों के लिए राष्ट्रपति दिमित्री मेदवेदेव के अधीन प्रधानमंत्री का पद संभाला।
बाद में मेदवेदेव की सरकार में हुए संवैधानिक संशोधनों के कारण राष्ट्रपति का कार्यकाल छह साल के लिए बढ़ा दिया गया और 2012 व 2018 में पुतिन क्रमशः 64.95 और 77.53 प्रतिशत वोटों के साथ निर्वाचित हुए।
हालांकि, जब जुलाई 2020 में राष्ट्रव्यापी मतदान के जरिए संविधान में संशोधन किया गया, तो उन्हें 2036 तक दो और बार छह वर्ष के कार्यकाल के लिए चुनाव लड़ने का अधिकार मिल गया।
इस बीच, रूस ने यूक्रेन में एक शांतिपूर्ण अभियान के तहत क्रीमिया पर कब्जा कर लिया था। रूस का दावा है कि मार्च 2014 में यूक्रेन के राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविक के खिलाफ अमेरिका द्वारा किए गए तख्तापलट के कारण रूस ने क्रीमिया पर कब्जा किया।
कई वर्षों बाद, जब अमेरिका के नेतृत्व वाले उत्तर अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने अपना दायरा न बढ़ाने और रूस को सुरक्षा की गारंटी देने की पुतिन की मांग ठुकरा दी तो मॉस्को ने 24 फरवरी, 2022 को यूक्रेन में एक ‘विशेष सैन्य अभियान’ शुरू किया।
नवीनतम जनमत सर्वेक्षण से पता चला है कि यूक्रेन से युद्ध के बावजूद पुतिन की लोकप्रियता रेटिंग 80 प्रतिशत है।
पुतिन ने पिछले वर्ष 88.48 प्रतिशत मतों के साथ चुनाव जीता था।
तातियाना पी (72) ने कहा, “हम नाटो के साथ युद्ध का सामना कर रहे हैं, ठीक वैसे ही जैसे जार अलेक्जेंडर 1 के नेतृत्व में नेपोलियन के साथ या स्टालिन के नेतृत्व में नाजी जर्मनी के साथ हुआ था। हम अपने मतभेदों को भुलाकर अपनी मातृभूमि के लिए पूरी तरह से एकजुट रहते हैं, चाहे नेता कोई भी हो”
पुतिन का भारत से जुड़ाव
सेवानिवृत्त खुफिया अधिकारी पुतिन सेंट पीटर्सबर्ग स्टेट यूनिवर्सिटी में काम कर रहे थे, तभी स्थानीय मेयर अनातोली सोबचक ने उन्हें विदेशी व्यापार संबंधों का प्रभारी उप मेयर बनने के लिए आमंत्रित किया।
स्थानीय लोगों को याद है कि धाराप्रवाह जर्मन बोलने वाले पुतिन केवल जर्मनी और भारत के वाणिज्य दूतावासों द्वारा आयोजित कार्यक्रमों में जाते थे।
उन्होंने तत्कालीन भारतीय वाणिज्यदूत डॉ. रमेशचंद्र के साथ बहुत दोस्ताना संबंध बनाए थे और भारतीय व्यंजनों के प्रति उनका रुझान बढ़ा था।
साल 1996 में एक सार्वजनिक कार्यक्रम में उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा था: ‘क्रेमलिन में बैठे लोग भारत के महत्व को नहीं समझते, हमें संयुक्त हाई-टेक परियोजनाओं के लिए भारत की जरूरत है।’
राष्ट्रपति बनने के बाद पुतिन ने प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निमंत्रण पर भारत का दौरा किया और दोनों नेताओं ने एक रणनीतिक सहयोग संधि पर हस्ताक्षर किए, जिसे इस साल अक्टूबर में 25 वर्ष पूरे हो जाएंगे।
पुतिन की भारत की पहली आधिकारिक यात्रा की यादें साझा करते हुए रूसी रक्षा मंत्रालय के अंतरराष्ट्रीय विभाग के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल (सेवानिवृत्त) लियोनिद इवाशोव ने ‘पीटीआई-भाषा’ को बताया, ‘दिल्ली जाते समय मैंने राष्ट्रपति पुतिन से कहा कि वह विभिन्न देशों के साथ संबंध विकसित कर सकते हैं लेकिन भारत से संबंध खास हैं और उसे हमेशा रूस के साथ रखना चाहिए।”
जनरल इवाशोव ने बताया कि उनकी सेवानिवृत्ति के कई साल बाद वह एक सम्मेलन में पहुंचे, जहां पुतिन भी मौजूद थे।
इवाशोव ने कहा, ‘राष्ट्रपति मेरे पास आए और कहा, ‘मैं भारत के बारे में आपकी सलाह को नहीं भूला हूं।”
भाषा जोहेब पवनेश
पवनेश
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