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गुरूवार, 22 मई, 2025
होमविदेश‘परफेक्ट बॉडी, परफैक्ट लाइफ’: खुद के बारे में युवाओं की राय को बिगाड़ रहे ‘सेल्फी-एडिटिंग टूल’

‘परफेक्ट बॉडी, परफैक्ट लाइफ’: खुद के बारे में युवाओं की राय को बिगाड़ रहे ‘सेल्फी-एडिटिंग टूल’

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(जुलिया कॉफे, एसोसिएट प्रोफेसर इन सोशलॉजी, यूनिवर्सिटी ऑफ न्यूकास्ल)

कैलाघन (ऑस्ट्रेलिया), 22 मई (द कन्वरसेशन) एबिगेल (21) अपने दूसरे दोस्तों की तरह बहुत सारी सेल्फी खींचती है, उन्हें बेहतर व सुंदर बनाने के लिए दूसरे ऐप से एडिट करती है और फिर उन्हें सोशल मीडिया पर पोस्ट करती है। हालांकि उसका कहना है कि ये सेल्फी को एडिट करने वाले ऐप्स, जिस काम के लिए बने हैं ‍उनसे ज्यादा काम के हैं ,जैसे:

, “आप अपने आदर्श रूप को देखते हैं और आप चाहते हैं कि आपका ये नया रूप हकीकत बन जाएं। आप जितना अधिक इसे बेहतर करते जाएंगे, आपको उतने बेहतर परिणाण मिलने लगेंगे।”

एबिगेल उन लगभग 80 युवाओं में से एक थी, जिनका साक्षात्कार मेरे सहकर्मियों और मैंने ‘सेल्फी-एडिटिंग टूल’ पर शोध के हिस्से के रूप में किया था।

लेकिन हाल ही में न्यू मीडिया एंड सोसाइटी में प्रकाशित निष्कर्ष चिंता का कारण बनता दिखाई दे रहा है।

ये ऐप दिखाते हैं कि सेल्फी-एडिटिंग तकनीक युवा लोगों की शारीरिक छवि और स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं।

सावधानीपूर्वक करें ऑनलाइन एडिटिंग

कई युवा जानते हैं कि उन्हें ऑनलाइन कैसा दिखना है, जिस वजह से वह सावधानीपूर्वक तस्वीरें एडिट करते हैं। इसका एक कारण डिजिटल नेटवर्क वाली दुनिया में मौजूदगी के भारी दबाव से निपटना है।

सेल्फी-एडिटिंग तकनीकें इसे सावधानीपूर्वक तैयार करने में सक्षम बनाती हैं।

सबसे लोकप्रिय सेल्फी-एडिटिंग ऐप में ‘फेसट्यून’, ‘फेसऐप’ और ‘मीटू’ शामिल हैं।

ये ऐप लाइटिंग, रंग और फोटो एडजस्टमेंट से लेकर दाग-धब्बे हटाने जैसी ‘टच अप’ सुविधाएं प्रदान करते हैं।

एडिटिंग की व्यापक शैलियां

मेरे नेतृत्व वाली शोध टीम में एमी डॉब्सन (कर्टिन यूनिवर्सिटी), अकाने कनाई (मोनाश यूनिवर्सिटी), रोजालिंड गिल (लंदन यूनिवर्सिटी) और नियाम व्हाइट (मोनाश यूनिवर्सिटी) शामिल थे।

हम यह समझना चाहते थे कि युवाओं द्वारा तस्वीर को बेहतर बनाने वाली तकनीकों का इस्तेमाल कैसे किया जाता है और क्या इन टूल्स ने उनके खुद को देखने के तरीके को प्रभावित किया है।

हमने 18-24 वर्ष की आयु के 33 युवाओं के साथ साक्षात्कार किए।

हमने ऑस्ट्रेलिया के मेलबर्न और न्यूकास्ल में 18-24 वर्ष की आयु के 56 युवाओं के साथ 13 ‘सेल्फी-एडिटिंग’ समूह कार्यशालाएं भी आयोजित कीं, जो सेल्फी लेकर उन्हें ऐप के जरिये एडिट करते हैं।

अधिकांश प्रतिभागियों ने खुद को विभिन्न जातीय, नस्लीय और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि से देखा।

‘फेसट्यून’ सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाने वाला ‘फेस-एडिटिंग ऐप’ था।

प्रतिभागियों ने ‘स्नैपसीड’, ‘मीटू’, ‘वीएससीओ’, ‘लाइटरूम’ और ‘बिल्ट-इन ब्यूटी फिल्टर’ का भी इस्तेमाल किया, जो अब नए ऐप्पल या सैमसंग स्मार्टफोन में एक मानक बन चुका है।

इन लोगों में एडिटिंग करने की कला उन लोगों से भिन्न थीं, जो केवल तस्वीर में रोशनी बढ़ाने और तस्वीर को छोटा-बड़ा करने जैसी मामूली चीजें करते थे।

लगभग एक तिहाई प्रतिभागियों ने बताया कि वे वर्तमान में या पहले चेहरे की विशेषताओं को बदलकर नाटकीय या ‘संरचनात्मक’ एडिटिंग कर रहे थे।

इस तरीके की एडिटिंग में नाक, गाल, सिर का आकार, कंधे या कमर को कम करना शामिल था।

अपने आप को सर्वश्रेष्ठ दिखाना

युवाओं ने हमें बताया कि सेल्फी लेना और उसे संपादित करना दुनिया को यह दिखाने का एक महत्वपूर्ण तरीका है कि ‘वे कौन हैं’।

एक प्रतिभागी ने हमें बताया, तस्वीरें एडिट करना यह बताने का एक तरीका है कि ‘मैं यहां हूं, मैं मौजूद हूं’।

उन्होंने हालांकि यह भी बताया कि ऑनलाइन होने और खुद की तस्वीरें पोस्ट करने का मतलब है कि वे ‘परफेक्ट बॉडी और परफेक्ट लाइफ’ दिखाने वाली तस्वीरों के बारे में जानते हैं।

प्रतिभागियों ने हमें बताया कि वे मानते हैं कि हर तस्वीर को संपादित किया गया है।

इस कला को बनाए रखने के लिए, उन्हें खुद को ‘सर्वश्रेष्ठ’ दिखाना होगा, जिसके लिए फोटो को संपादित करने में भी निपुण होना चाहिए।

युवतियों ने खास तौर पर बताया कि उन्हें लगता है कि सामान्य महसूस करना, पहले की तुलना में और अधिक दबाव भरा हो गया है और दिखावा कहीं ज्यादा है।

कई लोगों ने महसूस किया कि ‘ब्यूटी फिल्टर’ और ‘एडिटिंग ऐप’ जैसी तस्वीर बदलने वाली तकनीकें उन्हें ‘फिलर्स’ और ‘बोटोक्स’ जैसी नॉन-सर्जिकल कॉस्मेटिक प्रक्रियाओं को वास्तविक जीवन में ढालने के लिए प्रोत्साहित कर रही हैं।

जैसा कि एक प्रतिभागी एम्बर (19) ने हमें बताया, “मुझे लगता है कि बहुत सी प्लास्टिक सर्जरी अब फिल्टर से बस एक कदम दूर है।”

एक अन्य प्रतिभागी फ्रेया (20) ने फोटो संपादन और कॉस्मेटिक विकल्प चुनने के बीच एक सीधा संबंध बताया।

उसने कहा, “जब से मैंने तस्वीरों में अपने शरीर को एडिट करना शुरू किया, मैं इसे वास्तविक जीवन में बदलना चाहती थी। इसलिए मैंने होंठ और गालों में फिलर लगवाने का फैसला किया।”

तकनीक और मानव अनुभव के बीच संबंध बदलना

ये निष्कर्ष बताते हैं कि कृत्रिम मेधा (एआई) फिल्टर और ‘सेल्फी-एडिटिंग ऐप’ सहित तस्वीरों की संपादन तकनीकें, युवाओं की शारीरिक छवि और उनके स्वास्थ्य पर महत्वपूर्ण प्रभाव डालती हैं।

कॉस्मेटिक और ब्यूटी रिटेल उद्योगों में ‘ब्यूटी कैम’ तकनीक में एआई का तेजी से विस्तार इन प्रभावों का अध्ययन करना अनिवार्य बनाता है। साथ ही यह भी कि युवाओं के इन नई प्रौद्योगिकियों को लेकर अनुभव कैसे हैं।

ये कैमरे उनके चेहरे पर ‘पहले और बाद’ को मिनटों में देखने में सक्षम बनाते हैं।

ये प्रौद्योगिकियां, तकनीक और मानव अनुभव के बीच संबंधों को बदलने की अपनी क्षमता के माध्यम से युवाओं के मानसिक स्वास्थ्य पर विनाशकारी प्रभाव डाल सकती हैं।

द कन्वरसेशन जितेंद्र नरेश

नरेश

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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