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शुक्रवार, 6 जून, 2025
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भारत में हाशिये पर पड़े समुदायों के लोग कुछ सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आसीन: सीजेआई

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(फोटो के साथ)

(अदिति खन्ना)

लंदन, छह जून (भाषा) भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) बी आर गवई ने कहा है कि हाशिये पर पड़े समुदायों के प्रतिनिधि आज भारत के कुछ सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर आसीन हैं, जो डॉ. बी. आर. आंबेडकर के ”समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व” के दृष्टिकोण के अनुरूप है।

न्यायमूर्ति गवई ने लंदन के ऐतिहासिक ‘ग्रेज इन’ में बृहस्पतिवार शाम को भारतीय संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के अवसर पर एक विशेष व्याख्यान में संविधान निर्माता के रूप में डॉ. आंबेडकर की स्थायी विरासत पर प्रकाश डाला।

आंबेडकर ने एक सदी से भी पहले ‘ग्रेज इन’ से ही बैरिस्टर की उपाधि प्राप्त की थी।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा कि आधुनिक इतिहास के सबसे महान विधि विशेषज्ञों में से एक (डॉ. आंबेडकर) की विरासत पर विचार करना उनके लिए ‘अविश्वसनीय रूप से भावनात्मक क्षण’ है। उन्होंने कहा कि उनके (सीजेआई के) खुद के करियर में भी इनका गहरा असर रहा है।

सीजेआई ने कहा कि आंबेडकर की तरह ही हाशिये पर पड़े दलित सामाजिक पृष्ठभूमि वाले विभिन्न प्रतिनिधि आज देश के कुछ सर्वोच्च संवैधानिक पदों पर विराजमान हैं, जो बाबा साहब के भारतीय समाज के सभी वर्गों के लिए ‘‘समानता, स्वतंत्रता, न्याय और बंधुत्व’’ के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए काम कर रहे हैं।

न्यायमूर्ति गवई ने कहा, ‘‘इस ऐतिहासिक संस्थान में खड़े होकर, मुझे डॉ. बी.आर. आंबेडकर द्वारा छोड़ी गई स्थायी विरासत की याद आती है,जो केवल कानूनी क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि भारतीय लोकतंत्र की बुनियाद में भी है।’’

उन्होंने कहा, ‘‘मेरा जन्म डॉ. आंबेडकर के हमें छोड़कर जाने के लगभग चार साल बाद 1960 में हुआ था। मैं भारत के नागरिक के रूप में पैदा हुआ था, न कि अछूत के रूप में। डॉ. आंबेडकर की उपस्थिति हमेशा मेरे घर में महसूस की जाती थी। छोटी उम्र से ही मैं उनके साहस, उनकी बुद्धिमत्ता, समानता के लिए उनके अथक प्रयास की कहानियां सुनता था। वे कहानियां मेरे मूल्यों, मेरे दृष्टिकोण और मेरे उद्देश्य का हिस्सा बन गईं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘प्रत्येक नागरिक को संवैधानिक संरक्षण का पूरा लाभ प्राप्त होने से संबंधित डॉ. आंबेडकर का समाज के लिए दृष्टिकोण न्यायपालिका, कानून और कार्यकारी आदेशों के माध्यम से लगातार साकार हो रहा है…।’’

उन्होंने कहा, ‘‘यह गर्व की बात है कि देश ने पिछले 75 वर्षों में दो महिला राष्ट्रपति देखे हैं और अब हमारे पास एक ऐसी महिला राष्ट्रपति (द्रौपदी मुर्मू) हैं, जो आदिवासी क्षेत्र के समाज के सबसे हाशिये पर पड़े वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं।’’

उन्होंने कहा, ‘‘और, मुझे यह कहते हुए गर्व होता है कि भारत के पास एक प्रधान न्यायाधीश भी है, जो हाशिये पर पड़े वर्गों और विनम्र पृष्ठभूमि से आता है।’’

न्यायमूर्ति गवई ने ‘‘जीवित दस्तावेज: भारत के संविधान के 75 वर्ष और डॉ. आंबेडकर की स्थायी प्रासंगिकता’’ विषय पर अपने संबोधन में भारत के संविधान में निहित कुछ अग्रगामी पहलुओं पर प्रकाश डाला, जिसमें ‘‘न्यायपूर्ण और समावेशी समाज’’ के लिए मौलिक अधिकार और नीति निर्देशक सिद्धांत शामिल हैं।

उन्होंने कहा, ‘‘इस उल्लेखनीय जीवंत दस्तावेज के 75 वर्ष पूरे होने पर मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि यह डॉ. बी.आर. आंबेडकर की दूरदर्शिता और दृष्टिकोण ही है, जिसने संविधान को टिकाऊ बनाया है और समय की कसौटी पर खरा उतरने में सहायक हुआ है।’’

विधि और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने 1922 में ‘ग्रेज इन’ बार में बुलाए जाने से पहले लंदन में कानून के एक युवा छात्र के रूप में आंबेडकर के जीवन से कुछ व्यक्तिगत अंतर्दृष्टि साझा की।

मेघवाल ने कहा, ‘‘उनके (आंबेडकर के) पास पैसे नहीं होते थे और वह अक्सर भोजन छोड़ देते थे और बहुत कम नींद लेकर काम चलाते थे, यह उनकी प्रतिबद्धता थी।’’

उन्होंने संविधान को दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के लिए एक ‘महान दस्तावेज’ बताया।

यह कार्यक्रम लंदन में भारतीय उच्चायोग के सहयोग से आयोजित किया गया था और इसमें इंग्लैंड में कानून के छात्र के रूप में आंबेडकर के जीवन की अभिलेखीय झलकियां भी पेश की गईं।

ब्रिटेन में भारतीय उच्चायुक्त विक्रम दोरईस्वामी ने कहा, ‘‘जनवरी 1950 में हमारे संविधान को अपनाने के बाद ही हमारा लोकतंत्र लागू हुआ। यह कल्पना करना कठिन है कि बाबा साहब आंबेडकर ने हमें जो संविधान दिया, उसके बिना भारत कैसा दिखता।’’

‘ग्रेज इन’ लंदन में चार प्रतिष्ठित ‘इन्स ऑफ कोर्ट’ या बैरिस्टर और जजों के लिए पेशेवर संघों में से एक है।

भाषा सुरेश दिलीप

दिलीप

यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेंट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.

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