नई दिल्ली: भारत के पूर्वोत्तर और बांग्लादेश के कुछ हिस्सों में हुई बारिश के एक महीने बाद मानसून का कहर अब पाकिस्तान के कुछ हिस्सों में महसूस किया जा रहा है. भारी बारिश की वजह से इसके कराची और बलूचिस्तान के इलाकों में बाढ़ आ गई है. लेकिन वहीं प्रायद्वीपीय और मध्य भारत के इलाके सूखे जैसी परिस्थितियों और बारिश की कमी से जूझते दिखाई दे रहे हैं.
पाकिस्तान के मौसम विभाग ने भविष्यवाणी की है कि अगले दो दिनों तक सिंध और बलूचिस्तान में भारी बारिश और शहरी बाढ़ का आना जारी रहेगा. 21 जुलाई तक बारिश के चले जाने की संभावना है.
रविवार को अपनी दैनिक मौसम रिपोर्ट में पाकिस्तान ने कहा, ‘पूर्वोत्तर अरब सागर और उससे सटे कच्छ की खाड़ी के ऊपर एक तीव्र निम्न दबाव का क्षेत्र धीरे-धीरे उत्तर-पश्चिम की ओर बढ़ गया है. इसकी वजह से वर्षा सामान्य से थोड़ी ज्यादा होने की संभावना है.’
रिपोर्ट्स के मुताबिक, जुलाई में पाकिस्तान में मूसलाधार बारिश के कारण अचानक आई बाढ़ में 160 से ज्यादा लोग मारे गए हैं.
अब वापस भारत की तरफ आते हैं. भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, देश के पश्चिमी तट और उत्तर-पश्चिमी क्षेत्रों में ज्यादा बारिश हो रही है, जबकि दक्षिणी, उत्तरी और मध्य क्षेत्रों को बारिश की कमी का सामना करना पड़ रहा है.
आईएमडी ने 14 जुलाई को जारी अपने दो सप्ताह के पूर्वानुमान में गुजरात में इस मौसम में मैदानी इलाकों में अब तक हुई बारिश को देखते हुए इसे मानसून के मौसम का सबसे भारी वर्षा काल” बताया है.
इसमें कहा गया, ‘उत्तरी मैदानी इलाकों में उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में सामान्य स्थिति में भी दक्षिण में मॉनसून ट्रफ और इन इलाकों में किसी भी सिस्टम के बनने या आगे बढ़ने के अभाव में कम बारिश हुई है.’
यहां तक कि पूर्वोत्तर भी सूखे जैसी स्थितियों का सामना कर रहा है. इसे लेकर आईएमडी ने भविष्यवाणी की है कि 21 जुलाई के बाद मानसून खुद को ठीक कर लेगा.
भारत में मानसून ने 2 जुलाई को पूरे उपमहाद्वीप को कवर कर लिया था. भले ही इसे ‘सामान्य’ बारिश की कैटेगरी में रखा गया हो, लेकिन देश भर के अलग-अलग इलाकों में बारिश के विभिन्न पैटर्न देखने को मिले हैं.
इधर बांग्लादेश में बारिश और बाढ़ पिछले महीने की तुलना में कम हो गई है. इस बाढ़ में कम से कम 42 लोग मारे गए थे.
पूरे दक्षिण एशिया में मौसम के इन अलग-अलग पैटर्न की वजह क्या है? विशेषज्ञों का कहना है कि यह कुल मिलाकर आंतरिक अस्थिरता (मौसम प्रणालियों में होने वाले प्राकृतिक जलवायु परिवर्तन), असामान्य रूप से लंबी ला नीना अवधि और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का नतीजा है.
ला नीना, जलवायु परिवर्तन
भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश में मौसम विभाग ला नीना की उपस्थिति और मानसून पैटर्न पर इसका प्रभाव को स्वीकार करते हैं. ला लीना के 2023 में अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश करने की भविष्यवाणी की जा रही है.
ला नीना एक वैश्विक मौसम घटना है जो दक्षिण अमेरिका के उष्णकटिबंधीय पश्चिमी तट के साथ सतही समुद्र के पानी को ठंडा करने का कारण बनती है. एक ला नीना पश्चिमी प्रशांत पर कम वायुदाब का कारण बनता है, जिस वजह से आमतौर पर भारी बारिश होती है.
मैरीलैंड यूनिवर्सिटी में एटमोस्फेरिक और ओसियन साइंस विभाग में प्रोफेसर रघु मुर्तुगुड्डे ने कहा, ‘हमारे पास 2021-22 की सर्दियों में ला नीना था और यह आमतौर पर मानसून के दौरान वर्षा की कमी का कारण बनता है. चूंकि ला नीना जारी है, जून की कमी लगभग समाप्त हो गई है और ला नीना मानसून की वापसी को भी प्रभावित कर सकता है और हम मौसम में देर से भारी वर्षा देख सकते हैं.’
मुर्तुगुड्डे के अनुसार, अरब सागर को पार करने वाली दक्षिण-पश्चिमी हवाएं उत्तर की ओर स्थानांतरित हो गई हैं, जिससे पूरे गुजरात और पाकिस्तान और पूर्वोत्तर में भी बारिश हुई और केरल एवं प्रायद्वीपीय क्षेत्रों को सूखा छोड़ दिया गया.
भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, मद्रास के एक सेवानिवृत्त वैज्ञानिक जेआर कुलकर्णी ने कहा कि पूरे दक्षिण एशिया में मानसून के मौसम के ऐसे पैटर्न असामान्य नहीं हैं. पाकिस्तान में होने वाली भारी बारिश कुछ समय के लिए ही है.
उन्होंने जानकारी दी कि एक सप्ताह के भीतर भारी बारिश कम हो जाएगी. वह बताते है, ‘बंगाल की खाड़ी और अरब सागर से नमी पाकिस्तान के ऊपर चली गई है. अरब सागर से नमी उत्तर-पश्चिम भारत में चली गई, उच्च तापमान के कारण सक्रिय हो गई और पाकिस्तानी इलाके से गुजरते हुए बादल बना लिए.’
जबकि समय-समय पर चरम मौसम की घटनाएं सामान्य होती हैं. जलवायु परिवर्तन की शुरुआत से उनकी आवृत्ति बढ़ रही है. इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) के अनुसार, भारत और दक्षिण एशिया में इसका मतलब बारिश का उच्च और अधिक तीव्र दौर है.
पुणे में भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (आईआईटीएम) में सेंटर फॉर क्लाइमेट चेंज रिसर्च के वैज्ञानिक रॉक्सी कोल ने पिछले महीने दिप्रिंट को बताया था, ‘आम तौर पर ग्लोबल वार्मिंग के साथ गर्म हवा लंबे समय तक अधिक नमी बनाए रखती है. इसलिए कई बार ऐसा होता है कि लंबे समय तक बारिश नहीं होती है और जब होती है तो यह कुछ घंटों या दिनों के भीतर उस सारी नमी को छोड़ देता है, जिससे भारी बारिश होती है, ‘
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