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Friday, 22 November, 2024
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भारतीय भगोड़ों ही नहीं, कनाडा मुजीबुर रहमान और उनके परिवार के हत्यारे को भी दे रहा है पनाह

1998 में बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति की हत्या के दोषी नूर चौधरी के बारे में कहा जाता है कि वो 1996 से एटोबिकोक में रह रहा है. 2011 में वो कनाडा के सीबीसी रेडियो पर खुद को निर्दोष बताते हुए दिखाई दिया.

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नई दिल्ली: केवल भारत द्वारा वांछित आतंकवादियों और गैंगस्टरों को ही कनाडा में सुरक्षित पनाहगाह नहीं मिली है, बल्कि नूर चौधरी को भी शरण दी गई है — वो व्यक्ति जिसने 1975 में सैन्य तख्तापलट के तहत बांग्लादेश के पहले राष्ट्रपति शेख मुजीबुर रहमान को मशीन गन से कई बार गोली मारकर हत्या कर दी थी.

बांग्लादेश ने कई बार चौधरी के प्रत्यर्पण की मांग की है, जो 1996 में शेख हसीना सरकार के सत्ता में आने के बाद कनाडा भाग गए थे.

1998 में ढाका की एक अदालत द्वारा मौत की सज़ा पाने वाले चौधरी, जो अब 70 वर्ष के हो चुके हैं, को अभी तक कनाडा में शरणार्थी का दर्ज़ा नहीं मिला है क्योंकि 1999 के बाद से कई मौकों पर उनके आवेदन को खारिज किया गया है.

2009 में बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने रहमान और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या में शामिल चौधरी और 11 अन्य को दी गई मौत की सज़ा को बरकरार रखा. उसके पांच साथियों को 2010 में फांसी दे दी गई.

गौरतलब है कि चौधरी 1996 से एटोबिकोक में रह हैं. ओटावा ने प्रत्यर्पण के लिए बांग्लादेश के अनुरोध को स्वीकार नहीं किया है, यह तर्क देते हुए कि कनाडा के प्रत्यर्पण अधिनियम के तहत, किसी दूसरे देश में मौत की सजा का सामना कर रहे भगोड़े को निर्वासित नहीं किया जा सकता है.

2011 में चौधरी कनाडा के सीबीसी रेडियो पर खुद को निर्दोष बता रहे थे. उन्होंने यह भी कहा कि उन्हें बांग्लादेश निर्वासित करना एक “प्रतिशोध” था.

शेख रहमान, जिन्हें बंगबंधु (बंगाल का मित्र) के नाम से जाना जाता है, बांग्लादेश के सबसे प्रमुख राजनेताओं में से एक थे और तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान की स्वायत्तता की मांग में सबसे आगे थे.

बांग्लादेश के पहले कार्यवाहक राष्ट्रपति और बाद में इसके प्रधानमंत्री, उनकी, उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों के साथ, 15 अगस्त 1975 को एक सैन्य तख्तापलट के हिस्से के रूप में बांग्लादेश सेना के कर्मियों के एक समूह द्वारा उनके ढाका स्थित घर पर हत्या कर दी गई थी.

उनकी दो बेटियां, बांग्लादेश की वर्तमान प्रधानमंत्री और अवामी लीग नेता शेख हसीना और उनकी बहन शेख रेहाना, एक अन्य अवामी लीग राजनेता, फिलहाल जीवित हैं.

पिछले महीने, हत्या की 48वीं बरसी पर, बांग्लादेश के कानून और न्याय मंत्री अनीसुल हक ने समाचार एजेंसी पीटीआई को दिए एक इंटरव्यू में शेख रहमान के दो “स्वयं-कबूल किए गए हत्यारों” – अमेरिका से राशेद चौधरी और कनाडा से नूर चौधरी की वापसी का आग्रह किया था.

कनाडा की तरह, अमेरिका और ब्रिटेन क्रमशः बांग्लादेशी भगोड़ों अशरफुज्जमां खान और चौधरी मुईन-उद्दीन को पनाह दे रहे हैं, जिन पर 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान बंगाली बुद्धिजीवियों की हत्या का आरोप है. ढाका पिछले साल से ब्रिटेन के साथ प्रत्यर्पण संधि की मांग कर रहा है.

हक ने पीटीआई से कहा, “हालांकि, मेजर शरीफुल हक दलिम (रहमान की हत्या में एक प्रमुख साजिशकर्ता) का ठिकाना अभी भी मालूम नहीं है, हम जानते हैं कि कर्नल रशीद चौधरी अमेरिका में हैं और बंगबंधु की हत्या में शामिल तख्तापलट की साजिश रचने वालों में से एक नूर चौधरी कनाडा में हैं. हम अभी भी हत्यारे अधिकारी को वापस लाने के लिए अमेरिका के साथ बातचीत कर रहे हैं.”


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पांच दोषी अभी भी फरार

रहमान की हत्या के बाद अवामी लीग के चार नेता – बांग्लादेश के पहले प्रधानमंत्री ताजुद्दीन अहमद, एक अन्य पूर्व प्रधानमंत्री मंसूर अली, पूर्व उपराष्ट्रपति सैयद नजरूल इस्लाम और पूर्व गृह मंत्री ए.एच.एम. कमरुज्जमां – ढाका जेल में कैद थे और बाद में जेल में ही मारे गए.

1975 और 1996 के बीच बांग्लादेश ने खालिद मोशर्रफ और जियाउर रहमान जैसे नेताओं के तहत कई सैन्य तख्तापलट का अनुभव किया. इस अवधि के दौरान 1975 के तख्तापलट के दौरान हिंसा के लिए जिम्मेदार सैन्य अधिकारियों को राजनयिक पदों से सम्मानित किया गया. चौधरी को 1976 में तेहरान में दूतावास में दूसरा सचिव बनाया गया और 1996 तक इस पद पर रहे.

1996 में बांग्लादेश में शेख हसीना के सत्ता संभालने के बाद, उनकी सरकार ने आरोपियों को बचाने वाले क्षतिपूर्ति कानून को रद्द करके रहमान हत्याकांड के आरोपियों के खिलाफ मुकदमा शुरू किया.

1998 में ढाका की एक अदालत ने इस मामले में चौधरी और अन्य पूर्व सैन्य अधिकारियों सहित 15 लोगों को मौत की सज़ा सुनाई.

हालांकि, हाई कोर्ट ने 2001 में तीन को बरी कर दिया, जबकि 12 की दोषसिद्धि बरकरार रखी. उसी वर्ष हसीना के सत्ता खोने के बाद कार्यवाही रोक दी गई.

2009 में हसीना के सत्ता में लौटने के बाद मामला फिर से अदालत में तेजी से आगे बढ़ा.

12 दोषियों में से बांग्लादेश सुप्रीम कोर्ट ने 2009 में पांच की अपील खारिज कर दी और उनकी मौत की सजा बरकरार रखी, जबकि सात अन्य देश छोड़कर भाग गए थे. भगोड़ों में से एक, अज़ीज़ पाशा की जून 2001 में जिम्बाब्वे में प्राकृतिक कारणों से मृत्यु हो गई.

2010 में पांच दोषियों, सैयद फारूक रहमान, मोहिउद्दीन अहमद, बज़लुल हुदा, ए.के.एम. मोहिउद्दीन और सुल्तान शहरयार रशीद खान को फांसी दे दी गई.

हाल ही में, 2020 में भागने वालों में से एक पूर्व सैन्य कप्तान अब्दुल माजिद को ढाका में गिरफ्तार किए जाने के बाद बांग्लादेश में फांसी दे दी गई थी. माजिद ने कथित तौर पर दो दशकों से अधिक समय तक कोलकाता में छिपे रहने की बात स्वीकार की है.

पांच दोषियों में कर्नल खांडेकर अब्दुर रशीद (बर्खास्त), लेफ्टिनेंट कर्नल शरीफुल हक डालिम (मुक्त), नूर चौधरी, राशेद चौधरी और रिसालदार मोस्लेहुद्दीन खान शामिल हैं.

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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