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Friday, 3 May, 2024
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ब्रिटेन के आतंकवाद निरोधक प्रमुख भारतीय मूल के अधिकारी नील बासु नस्ली भेदभाव झेल चुके हैं

लंदन मेट्रोपोलिटन पुलिस (स्कॉटलैंड यार्ड) के असिस्टेंट कमिश्नर बासु की जड़ें कोलकाता में हैं क्योंकि उनके पिता पंकज कुमार बासु वहीं के थे.

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नई दिल्ली: लंदन ब्रिज आतंकी हमले में शुक्रवार को हमलावर आतंकवादी उस्मान ख़ान को मार गिराने वाले पुलिस दस्ते की अगुआई करने वाले ब्रिटेन के शीर्षस्थ आतंक निरोधक पुलिस अधिकारी अनिल कांति ‘नील’ बासु की पारिवारिक पृष्ठभूमि भारत की है.

लंदन मेट्रोपोलिटन पुलिस (स्कॉटलैंड यार्ड) के असिस्टेंट कमिश्नर बासु की जड़ें कलकत्ता (अब कोलकाता) में मानी जा सकती हैं क्योंकि उनके पिता पंकज कुमार बासु पश्चिम बंगाल की राजधानी के ही थे. पंकज बासु 1961 में ब्रिटेन में रहने चले गए जहां उन्होंने वेल्स की एक नर्स (नील की मां) से शादी की थी.

नील बासु के पिता ने ब्रिटेन में एक सर्जन के रूप में पुलिस के साथ 40 वर्षों तक काम किया था. इसलिए ये सहज था कि नील को भी पुलिस के करियर ने आकर्षित किया. हालांकि, उनके पिता उन्हें बैंकर या वकील बनते देखना चाहते थे.

बासु ने नॉटिंघम विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र की पढ़ाई पूरी करने के तुरंत बाद बार्कलेज़ बैंक में अपनी पहली नौकरी की थी. लेकिन शीघ्र ही, 24 साल की उम्र में उन्होंने बैंक की नौकरी छोड़ दी और मेट्रोपोलिटन पुलिस (मेट) में शामिल हो गए. ज्यादा समय नहीं बीता जब उन्हें सार्जेंट के पद पर प्रोमोशन मिल गया और उनकी तैनाती ब्रिक्सटन इलाके में की गई.

नील बासु के पिता को उनके डिप्टी असिस्टेंट कमिश्नर बनाए जाने पर अपार गर्व हुआ, पर वह उन्हें प्रतिष्ठित क्वींस पुलिस मेडल (क्यूपीएम) मिलता देख नहीं पाए. उनके पिता का 2015 में देहांत हो गया था.

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तेजतर्रार पुलिस अधिकारी बासु के नाम कई उपलब्धियां दर्ज हैं. एक जांच अधिकारी के रूप में उन्हें भ्रष्टाचार से लेकर हत्याकांड तक, हर तरह के मामलों की पड़ताल का अनुभव है. ब्रिटेन की घरेलू खुफिया सेवा एमआई5 में उन्हें खासा सम्मान प्राप्त था और ये बात आतंकवाद निरोधक विभाग में उनकी नियुक्ति में मददगार साबित हुई.


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बासु मेट्रोपोलिटन पुलिस में इतने महत्वपूर्ण पद पर नियुक्त होने वाले एशियाई मूल के पहले अधिकारी थे. उल्लेखनीय है कि इस पुलिस बल पर अक्सर प्रमुख नियुक्तियों में नस्ली भेदभाव का आरोप लगाया जाता रहा है.

नस्लवाद का शिकार

ब्रिटेन में ही स्टैफोर्ड में पले-बढ़े होने के बावजूद शुरुआती वर्षों में बासु और उनके दो भाइयों को नस्ली भेदभाव का सामना करना पड़ा था. इससे पहले उनके पिताजी भी इस तरह का भेदभाव झेल चुके थे.

बासु ने एक इंटरव्यू में कहा, ‘मेरे माता-पिता मिश्रित नस्ल के दंपति थे और उत्तरी वेल्स में हाथ में हाथ डालकर चलने पर उन पर पत्थर फेंके जाते थे. क्रमश: एक डॉक्टर और नर्स के रूप में उनके पिता और माता ने ब्रिटेन की सबसे महान संस्था नेशनल हेल्थ सर्विस में कुल मिलाकर 90 साल की सेवाएं दी थीं.’

हाल ही में संसद की गृह मामलों की स्थाई समिति के सदस्यों को अपने संबोधन में बासु ने कहा कि उनका जीवन ‘नस्लवाद का सामना करते हुए’ बीता है. वह इस्लाम का हौवा खड़ा करने को ‘नस्लवाद का एक प्रकार’ घोषित किए जाने के विभिन्न दलों के सांसदों की सिफारिश के मामले में समिति के समक्ष अपने विचार रख रहे थे.

बासु ने समिति से कहा, ‘मैंने नस्लवाद का सामना करते हुए 51 साल बिताए हैं और इनमें से ज़्यादातर समय मेरे साथ ये व्यवहार मुझे मुसलमान मानते हुए किया गया, जो कि मैं नहीं हूं. इसलिए व्यक्तिगत तौर पर मुझे लगता है कि मैं इस परिभाषा को स्वीकार नहीं कर सकता, पर पेशेवर रूप से कहूं तो ये समुदाय का भरोसा बढ़ाने वाला कदम होगा.’

बासु  ने ये भी कहा कि वह ऐसे इलाके में पले-बढ़े हैं जहां हर तरफ हल्का-फुल्का नस्लवाद देखा जा सकता था.
आतंकवाद निरोधक मामलों के विशेषज्ञ बसु का मानना है कि ब्रिटेन में आतंकवाद के खतरे से निपटने के लिए समाजशास्त्रियों और अपराध विशेषज्ञों को मिलकर काम करना चाहिए. अपनी इसी विशिष्ट मान्यता के अनुरूप पिछले महीने उन्होंने समाशास्त्रियों और अपराध विशेषज्ञो से ब्रिटेन में आतंकवाद के कारणों की पड़ताल करने का आह्वान किया.

बासु, जिनके मेट्रोपोलिटन पुलिस का भावी प्रमुख बनने की संभावना बताई जाती है, का मानना है कि ब्रिटेन की आतंकवाद निरोधक रणनीति को ‘ठीक से लागू नहीं’ किया गया है.

इसी साल अगस्त में उन्होंने कहा था, ‘ये मत भूलिए कि गिरफ्तार किए जाने वाले लोगों में से 70 से 80 प्रतिशत यहीं पले-बढ़े लोग हैं. इस बात से हमारे समाज के बारे अहम संकेत मिलता है. हमें इस बात की पड़ताल करनी होगी कि लोग ये सब करने को क्यों उतारू हो रहे हैं. मैं चाहता हूं कि अच्छे शिक्षाविद, अच्छे समाजशास्त्री और अच्छे अपराध विशेषज्ञ इस विषय पर प्रकाश डालें.’

बासु अमेरिका में हुए 9/11 के हमले को वर्तमाल युग की परिवर्तनकारी घटना मानते हैं और उनका कहना है कि ब्रिटेन में आतंकवाद का प्रकोप 2002 और 2005 के बीच शुरू हुआ. उनके अनुसार धीरे-धीरे ये बात साफ होने लगी कि ब्रिटेन को घरेलू आतंकवाद का ही सामना है, जिसमें थोड़ा-बहुत दिशा-निर्देश विदेशों से मिलता है.

बासु इस बात पर भी बल देते हैं कि भले ही कुख्यात इस्लामी आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट (आइसिस) को सैन्य रूप से पराजित किया जा चुका हो, पर यह एक आभासी नेटवर्क में बदल चुका है.


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उन्होंने कहा, ‘हमें अभी भी इस विचारधारा से जुड़ने के इच्छुक लोगों में कमी देखने को नहीं मिल रही है. इसलिए भले ही इस्लामी खिलाफत का अस्तित्व नहीं रह गया हो जहां कि लोग जाकर लड़ सकें, पर कुछ ब्रितानी अतिवादियों के दिमाग में संघर्ष अभी भी जारी है, क्योंकि उनके लिए लीबिया या अन्य जगहों पर जाकर लड़ाई में शामिल होने का विकल्प है.’

सोशल मीडिया में बसु की वाहवाही

इस बीच, बासु रातोंरात ट्विटर पर छा गए हैं. लोग उनकी भारतीय पृष्ठभूमि की तुलना मारे गए सज़ायाफ्ता आतंकवादी ख़ान से करते हैं जो कि पाकिस्तानी मूल का था.

अमेरिकी सेना के सेवानिवृत कर्नल लॉरेंस सेलिन कहते हैं, ‘लंदन ब्रिज हमला. दो तरह के देश, दो तरह के प्रवासी. पाकिस्तानी उस्मान ख़ान आतंकवादी है. जबकि नील बसु ने, जिनके पिता भारत से थे, आतंकवाद निरोधक कार्रवाई का नेतृत्व किया.’

ब्रितानी स्तंभकार और पूर्व उद्यमी केटी होपकिंस ने ट्वीट किया, ‘लेबर पार्टी और लंदन के मेयर सादिक़ ख़ान ने कुछ ही सप्ताह पहले पाकिस्तानी मूल के लोगों की उन्मादी भीड़ को लंदन में विरोध प्रदर्शन करने दिया था. उन्होंने भारतीय उच्चायोग में तोड़फोड़ की और वहां कचरे का अंबार लगा दिया. हमें अपने समुदाय के भीतर से ही तोड़ा जा रहा है.’

( इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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