नई दिल्ली: नादिया नदीम सिर्फ 11 साल की थीं, जब वह अपने पिता को तालिबान द्वारा उठाकर मार दिए जाने के बाद अफगानिस्तान से भाग गई थीं. वह डेनमार्क पहुंचीं और अंततः एक फुटबॉल खिलाड़ी बन गईं, जो बहुतों को प्रेरणा दे रही हैं. जून 2020 में वोग को दिए एक इंटरव्यू में, उन्होंने कहा था: ‘यदि आप शरणार्थियों को मौका देते हैं, तो वे योगदान दे सकते हैं और समाज को बेहतर बना सकते हैं.’
अब, उन्होंने फिर से साबित किया है, एक और ऊंचाई हासिल की है. इस महीने, उन्होंने आरहूस विश्वविद्यालय, डेनमार्क से पुनर्निर्माण (फिर से बनाने) में सर्जरी में विशेषज्ञता के बाद डॉक्टर का टाइटल अर्जित कर, जहां उन्होंने 5 साल तक पढ़ाई की.
और उन्होंने फुटबॉल खेलते हुए यह कारनामा किया.
नादिया के नाम 98 अंतरराष्ट्रीय कैप हैं. वह पिछले सीज़न में फ्रांस की तरफ से पेरिस सेंट-जर्मेन के लिए खेलीं, जहां उन्होंने 27 खेलों में 18 गोल किए, जिससे उनकी टीम को पहली बार डिवीजन 1 का खिताब जीतने में मदद मिली.
वह कम से कम 11 भाषाओं में भी धाराप्रवाह (बिना अटके) बोल लेती हैं, और डेनिश रिफ्यूजी काउंसिल नामक एक एनजीओ की एम्बेस्डर हैं, जो शरणार्थियों और विस्थापित लोगों के लिए स्थायी समाधान पाने में मदद करती है.
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एक बॉलर की लाइफ
2 जनवरी 1988 को अफगानिस्तान के हेरात में जन्मी नदीम अपने मां-बाप और चार बहनों के साथ राष्ट्रपति के परिवार के साथ एक इलाके में रहती थी. हालांकि, 2000 में, तालिबान ने उसके पिता को मार डाला, जो अफगान नेशनल आर्मी (एएनए) में एक जनरल थे.
इसके बाद, परिवार को देश छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा. वे आखिरकार इटली के रास्ते डेनमार्क पहुंचे.
डेनमार्क में, नादिया सबसे पहले इस खेल से तब जुड़ीं, जब वह शरणार्थी शिविर में लड़कियों के साथ फुटबॉल खेलती थीं, जहां उनकी मां और उनकी बहनें 9 महीने बिताए. उसने वोग को बताया, ‘फुटबॉल ने मुझे गरीब बाहरी होने से बचाया और मुझे स्वीकार किए जाने में मदद की.’
नादिया 2009 में, डेनमार्क की राष्ट्रीय टीम में जगह बनाने वाली पहली गैर श्वेत खिलाड़ी बनीं, जहां वह अब एक सीनियर खिलाड़ी हैं. डेनमार्क में उन्हें 2016 और 2017 में ‘प्लेयर ऑफ द ईयर’ चुना गया.
वह अन्य लीग टीमों के बीच मैनचेस्टर सिटी, पोर्टलैंड थॉर्न्स और फ़ोर्टुना होजोरिंग के लिए भी खेल चुकी हैं.
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