scorecardresearch
Sunday, 28 April, 2024
होमविदेशम्यांमार की सैन्य सरकार ने 5 मामलों में 'आंग सान सू की' को दी माफी, पर रहना होगा नज़रबंद

म्यांमार की सैन्य सरकार ने 5 मामलों में ‘आंग सान सू की’ को दी माफी, पर रहना होगा नज़रबंद

उनकी सज़ा 33 से घटाकर 27 वर्ष कर दी गई. जुंटा ने पूर्व राष्ट्रपति विन म्यिंट की सज़ा को भी 4 साल कम कर दिया, 7,749 अन्य कैदियों को रिहा कर दिया.

Text Size:

नई दिल्ली: म्यांमार में आपातकाल की स्थिति को छह महीने तक बढ़ाने और चुनाव स्थगित करने के बाद, म्यांमार की सैन्य सरकार ने सोमवार को अपदस्थ नेता और नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की को 19 में से पांच आरोपों में माफ कर दिया, जिससे उनकी सजा छह साल कम होकर 33 से घटकर 27 साल रह गई. म्यांमार की मीडिया ने इस बात की जानकारी दी.

सैन्य सरकार के प्रमुख, वरिष्ठ जनरल मिन आंग ह्लाइंग ने नोबेल पुरस्कार विजेता आंग सान सू की के साथ-साथ पूर्व राष्ट्रपति विन म्यिंट को माफी दी और कथित तौर पर पूरे म्यांमार में 7,749 अन्य कैदियों को रिहा कर दिया.

दोनों पूर्व नेताओं को हिरासत में रखा जाएगा. सू की को नजरबंद कर दिया गया है और विन म्यिंट की जेल की सज़ा चार साल कम कर दी गई है.

जुंटा नेता ने 125 विदेशी कैदियों को भी रिहा कर दिया, जातीय सशस्त्र समूहों से जुड़े 72 लोगों के खिलाफ मामले हटा दिए और ऐसे समूहों के 22 सदस्यों को रिहा कर दिया.

राज्य मीडिया एमआरटीवी के अनुसार, 78 वर्षीय सू की को पांच दोषसिद्धि – कोरोनोवायरस प्रतिबंधों का उल्लंघन, अवैध रूप से वॉकी-टॉकी मंगाना और रखना और राजद्रोह व अन्य में कम सजा मिली. सू की के खिलाफ कई मामले, जिन्हें मानवाधिकार समूह और समर्थक अपदस्थ नेता को अवैध ठहराने के साथ-साथ 2021 के सैन्य अधिग्रहण को मान्य करने के साधन के रूप में देखते हैं, अभी तक उनके अंतिम निर्णय नहीं आए हैं.

अच्छी पत्रकारिता मायने रखती है, संकटकाल में तो और भी अधिक

दिप्रिंट आपके लिए ले कर आता है कहानियां जो आपको पढ़नी चाहिए, वो भी वहां से जहां वे हो रही हैं

हम इसे तभी जारी रख सकते हैं अगर आप हमारी रिपोर्टिंग, लेखन और तस्वीरों के लिए हमारा सहयोग करें.

अभी सब्सक्राइब करें

दो साल से अधिक समय पहले म्यांमार पर कब्जा करने के बाद जुंटा ने इस महीने तक चुनाव कराने का वादा किया था, जुंटा नेता ने सेना समर्थित राष्ट्रीय रक्षा और सुरक्षा परिषद (एनडीएससी) के साथ मिलकर देश में जारी हिंसा के कारण आपातकाल की स्थिति को इस साल के अंत तक बढ़ा दिया था.

जुंटा के आधिकारिक बयान में कहा गया है, “चुनाव आयोजित करते समय, स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए और बिना किसी डर के मतदान करने में सक्षम होने के लिए, आवश्यक सुरक्षा व्यवस्था की अभी भी आवश्यकता है और इसलिए आपातकाल की स्थिति को बढ़ाए जाने की ज़रूरत है.”

जुंटा को अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में मान्यता नहीं

सैन्य अधिग्रहण – कथित चुनाव धोखाधड़ी से संबंधित विवादों की प्रतिक्रिया – ने सुधार, अंतर्राष्ट्रीय जुड़ाव और आर्थिक विकास में म्यांमार की प्रगति को बर्बाद कर दिया है.

2021 में, सेना ने कहा था कि उसने सू की की पार्टी, नेशनल लीग फॉर डिमॉक्रेसी के खिलाफ वोटर्स फ्रॉड के आरोपों की जांच करने के लिए सत्ता संभाली है. पार्टी ने इन आरोपों को खारिज कर दिया है.

नॉर्वे स्थित पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ऑफ ओस्लो की एक रिपोर्ट के अनुसार, 2021 में तख्तापलट के बाद से, म्यांमार हिंसा से ग्रस्त है, जिसमें 1 फरवरी, 2021 से 30 सितंबर, 2022 के बीच लगभग 6,337 नागरिक मारे गए और 2,614 घायल हुए हैं.

इसके अलावा, जुंटा, या राज्य प्रशासन परिषद (एसएसी) को अभी तक अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में म्यांमार की सरकार के रूप में मान्यता नहीं मिली है. यहां तक कि दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) जैसे संगठनों ने भी पिछले दो वर्षों में इसके शिखर सम्मेलन में किसी भी सैन्य सरकार के प्रतिनिधि को बाहर रखा है.

हालांकि, पिछले महीने थाईलैंड के उपप्रधानमंत्री और विदेश मंत्री डॉन प्रमुदविनई ने खुलासा किया था कि उन्होंने गुप्त रूप से संघर्षग्रस्त राज्य की यात्रा की थी और तख्तापलट के नेता के साथ बैठक की थी और आसियान विदेश मंत्रियों की बैठक से कुछ दिन पहले जेल में बंद निर्वाचित नेता आंग सान सू की से भी मुलाकात की थी. 12-13 जुलाई को जकार्ता में मिलेंगे.

आसियान एक अंतरसरकारी संगठन है जिसमें ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया, म्यांमार, फिलीपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं.

इस यात्रा को “म्यांमार के मित्र देशों का दृष्टिकोण, जो देश में एक शांतिपूर्ण समाधान देखना चाहते हैं” बताते हुए, थाई मंत्री ने विवाद खड़ा कर दिया क्योंकि सैन्य जुंटा ने मिलने के साथ-साथ आसियान के पांच सूत्री शांति योजना को लागू करने के सभी राजनयिक अनुरोधों को खारिज कर दिया है, जिस पर दो साल पहले सहमति बनी थी.

पिछले दो वर्षों में, अमेरिका और इंडोनेशिया सहित कई सरकारें और संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय संगठन सू की और हजारों राजनीतिक कैदियों की तत्काल और बिना शर्त रिहाई की मांग करते रहे हैं.

(संपादनः शिव पाण्डेय)
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


यह भी पढ़ेंः ‘IIM बिल को गंभीरता से लें,’ पूर्व निदेशक बकुल ढोलकिया बोले- अधिक बदलाव से स्वायत्तता खत्म हो सकती है


 

share & View comments