नई दिल्ली: अल-कायदा प्रमुख आयमान अल-जवाहिरी ने एक नया वीडियो संदेश सामने आया है जो कर्नाटक में जारी हिजाब विवाद पर केंद्रित है, और इसमें दावा किया गया है कि इसने ‘हिंदू भारत और इसके बुतपरस्त लोकतंत्र के छलावे की असलियत’ को उजागर कर दिया है. सितंबर के बाद पहली बार सामने आए दुनिया के मोस्ट-वांटेड आतंकवादी के बयान वाले इस वीडियो को मंगलवार देर रात अल-कायदा के ऑनलाइन ग्रुप में पोस्ट किया गया था.
आठ मिनट के बयान में अल-जवाहिरी ने ‘तकबीर (अल्लाह हू अकबर) की आवाज उठाकर बहु-ईश्वरवादी हिंदुओं की भीड़ को चुनौती’ देने के लिए कर्नाटक की छात्रा मुस्कान खान—जो फरवरी में हिजाब का विरोध करने वाली भीड़ के खिलाफ नारे लगाकर सुर्खियों में आई थी—की सराहना की.
अल-जवाहिरी ने कहा, ‘अल्लाह उसे पतनशील पश्चिमी दुनिया की वजह से हीन भावना से ग्रस्त बहनों को नैतिक सबक सिखाने के लिए नेमत बख्शे.’
अल-जवाहिरी का आखिरी वीडियो सितंबर, 2021 में सामने आया था जो इस तरह की अफवाहों के बीच जारी हुआ था कि वह मर चुका है, और उसमें अफगानिस्तान की कमान तालिबान के हाथों में आ जाने का कोई जिक्र नहीं था जो कि उससे पिछले महीने का ही घटनाक्रम था. तालिबान की जीत को अल कायदा ने जिहादी आंदोलन की ‘सबसे बड़ी जीत’ करार दिया था.
अल-जवाहिरी ने मंगलवार को जारी बयान में उपमहाद्वीप के भारतीयों से कहा कि ‘भारत के मूर्तिपूजक हिंदू लोकतंत्र के झांसे में आने से बचें जो कि हमेशा से ही मुसलमानों पर अत्याचार के एक अस्त्र से अधिक कुछ नहीं है.’ उसका कहना है, ‘यह बिल्कुल उसी तरह छलावे का हथियार है जिसका असली स्वरूप फ्रांस, हॉलैंड और स्विटजरलैंड में सामने आया, जिन्होंने न्यूडिटिडी को बढ़ावा देते हुए हिजाब पर पाबंदी लगा दी थी.’
चीन से लेकर इस्लामिक मगरेब तक और कॉकेसस से लेकर सोमालिया तक एक उम्मा (समुदाय के लिए अरबी शब्द) के तौर पर एकजुट होने का आह्वान करते हुए जवाहिरी ने कहा, ‘हमें समझना होगा कि शरिया (मुस्लिम धार्मिक कानून) पर टिके रहना ही एकमात्र रास्ता है.’
उसने अन्य दक्षिण एशियाई देशों पर भी निशाना साधा और कहा कि ‘हम पर थोपी गई सरकारें, खासकर पाकिस्तान और बांग्लादेश में, हमारी रक्षा नहीं करती हैं, बल्कि वे उन दुश्मनों की रक्षा करती हैं जिन्हें उन्होंने हमारे खिलाफ लड़ने के लिए सशक्त बनाया है.’
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भारत का खास तौर पर किया जिक्र
भारत पर केंद्रित अल-जवाहिरी का आखिरी वीडियो 2014 में जारी हुआ था, जिसमें जमात कायदात अल-जिहाद फिशिबी अल-करात अल-हिंदिया यानी भारतीय उप-महाद्वीप में जिहाद का आधार बनाने वाले संगठन के गठन की घोषणा की गई थी. संगठन की अगुआई उत्तर प्रदेश में जन्मे और देवबंद में बढ़े मदरसा छात्र असीम उमर को सौंपी गई थी, जो 1995 में पाकिस्तान चला गया था. माना जाता है कि उमर अफगानिस्तान के मूसा कला में 2019 में एक अमेरिकी सैन्य कार्रवाई के दौरान मारा गया था.
2014 के वीडियो में अल-जवाहिरी ने कहा था कि अल-कायदा की दक्षिण एशियाई इकाई का गठन ‘एक संदेश है कि हम आपको, भारत में हमारे मुस्लिम भाइयों को नहीं भूले हैं.’ उसने चुनौती दी थी कि जिहादी समूह ‘भारत में ब्रिटेन द्वारा बनाई गई सभी सीमाएं तोड़ देगा’ और साथ ही इसमें क्षेत्र के मुसलमानों से ‘एक ही अल्लाह के नाम पर एकजुट होने’ का आह्वान किया था.
हालांकि, इससे पूर्व कई सालों तक अल-कायदा के अन्य नेताओं की तुलना में अल-जवाहिरी के बयानों में भारत का काफी ज्यादा जिक्र आता रहता था. बतौर उदाहरण 2001 में एक किताब में अल-जवाहिरी ने मुसलमानों से आह्वान किया कि ‘अफगानिस्तान, कश्मीर, बोस्निया-हर्जेगोविना और चेचन्या आदि में जंग लड़कर मजहबी कर्तव्यों को निभाएं, जिससे राष्ट्र लंबे समय से वंचित हैं.’
फिर, सितंबर 2003 में अल-जवाहिरी ने भारत का नाम लेकर पाकिस्तानियों को चेताने की कोशिश की कि उनके तत्कालीन राष्ट्रपति जनरल परवेज मुशर्रफ ‘आपको हिंदुओं को सौंपने और अपने गोपनीय खातों का आनंद उठाने के लिए भागने’ की साजिश रच रहे हैं.
हालांकि, अल-जवाहिरी के तमाम प्रयासों के बावजूद अल कायदा को भारत में अपनी जड़ें जमाने में बहुत ज्यादा सफलता नहीं मिल पाई. पिछली गर्मियों में, संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंध निगरानीकर्ताओं की तरफ से जरूर बताया गया कि अल-कायदा की दक्षिण एशिया इकाई तालिबान के संरक्षण में अफगानिस्तान में सक्रिय है. उनके मुताबिक, संगठन मुख्य तौर पर ‘अफगान और पाकिस्तानी नागरिकों को लेकर बना है, लेकिन इसमें कुछ लोग बांग्लादेश, भारत और म्यांमार के भी हैं.’
सर्जन से जिहादी बना अल-जवाहिरी
उपनगरीय काहिरा के एक उच्च मध्यवर्गीय परिवार में जन्मे अल-जवाहिरी के बारे में कहा जाता है कि एक छात्र के तौर पर उसका प्रदर्शन काफी शानदार रहा था और कविता के प्रति भी काफी रुझान था. जवाहिरी को नियम-कायदों पर आधारित खेलों से नफरत थी और उसकी नजर में वह ‘अमानवीय’ थे.
किशोरावस्था में इस्लामी विचारक सैय्यद कुतुब की शिक्षाओं के प्रति आकृष्ट हुए अल-जवाहिरी ने मात्र 14 साल साल की उम्र में मुस्लिम ब्रदरहुड को ज्वाइन कर लिया जो कि एक अंतरराष्ट्रीय सुन्नी कट्टरपंथी संगठन है. कुतुब, जिनके काम को मील का पत्थर माना जाता है और कुरान पर आधारित उनका मूल ग्रंथ वैश्विक इस्लामी आंदोलन का आधार बना है, को 1966 में मार दिया गया था.
बाद के सालों में अल-जवाहिरी ने डॉक्टर और सर्जन के रूप में प्रशिक्षण लिया. उसने 1978 में काहिरा यूनिवर्सिटी में फिलॉस्फी की छात्रा अजा नोवारी से शादी की. कॉन्टिनेंटल होटल में आयोजित इस विवाह समारोह ने उदारवादी काहिरा का काफी ध्यान खींचा था, क्योंकि इसमें पुरुषों और महिलाओं के लिए अलग-अलग इंतजाम किया गया था, फोटोग्राफरों और संगीतकारों को इससे दूर रखा गया, और यहां तक कि हंसी-मजाक करने पर भी पाबंदी थी.
1981 में मिस्र के राष्ट्रपति अनवर सादात की हत्या के बाद जवाहिरी उन सैकड़ों लोगों में शामिल था जिन्हें गिरफ्तार किया गया और प्रताड़ित किया गया. तीन साल जेल में रहने के बाद वह देश छोड़कर भाग गया और सऊदी अरब जाकर मेडिकल प्रैक्टिस करने लगा. वहीं पर वह ओसामा बिन लादेन के संपर्क में आया. उसने लादेन की वित्तीय मदद से चलने वाले जिहादी केंद्रों का दौरा करने के लिए पहली बार 1985 में पाकिस्तान की यात्रा की और 2001 तक धीरे-धीरे यह रिश्ता आगे बढ़ता रहा, जब मिस्र के इस्लामिक जिहाद समूह का औपचारिक तौर पर अल-कायदा में विलय हो गया.
माना जाता है कि अल-जवाहिरी की पत्नी अजा और उसकी सबसे छोटी बेटी आयशा दोनों की नवंबर 2001 में उस समय मौत हो गई जब अल-कायदा का अफगानिस्तान स्थित एक गेस्ट हाउस अमेरिकी बमबारी की चपेट में आकर मलबे में तब्दील हो गया.
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