मैथ्यू मोरलिगम, पृथ्वी विज्ञान के प्रोफेसर, डार्टमाउथ कॉलेज
न्यूयॉर्क, नौ फरवरी (द कन्वरसेशन) माउंटेन ग्लेशियर दुनिया की एक चौथाई आबादी के लिए आवश्यक जल स्रोत हैं लेकिन गर्म होती दुनिया में लगातार सिकुड़ते ग्लेशियरों के साथ यह पता लगा पाना बहुत मुश्किल है कि उनमें अभी कितनी बर्फ बाकी है और उनसे और कितना पानी उपलब्ध होगा।
एक नए अध्ययन में, वैज्ञानिकों ने इस सवाल का जवाब खोजने की कोशिश के तहत 200,000 से अधिक ग्लेशियरों की गति का मानचित्रण किया। उन्होंने पाया कि ग्रीनलैंड और अंटार्कटिक बर्फ की चादरों से परे, पृथ्वी के ग्लेशियर समुद्र के स्तर में वृद्धि में कितना योगदान दे सकते हैं, इस संदर्भ में ग्लेशियर बर्फ की मात्रा का व्यापक रूप से लगाया गया अनुमान लगभग 20 प्रतिशत कम हो सकता है।
आइस शीट मॉडलिंग में माहिर और अध्ययन के सह-लेखक मैथ्यू मोरलिगम बताते हैं कि नए परिणाम उन क्षेत्रों के लिए चेतावनी क्यों रखते हैं जो ग्लेशियरों के मौसमी पिघले पानी पर निर्भर हैं, लेकिन बढ़ते समुद्र की बड़ी तस्वीर से अनजान हैं।
1) यदि पर्वतीय हिमनदों में पहले की अपेक्षा कम बर्फ होती है, तो पानी के लिए हिमनदों पर निर्भर लोगों के लिए इसका क्या अर्थ है? विश्व स्तर पर, लगभग दो अरब लोग पीने के पानी के मुख्य स्रोत के रूप में पर्वतीय ग्लेशियरों और स्नोपैक पर निर्भर हैं।
कई लोग जलविद्युत उत्पादन या कृषि के लिए विशेष रूप से शुष्क मौसम में ग्लेशियर के पानी पर निर्भर हैं। लेकिन दुनिया भर के अधिकांश हिमनद वर्ष के दौरान प्राप्त होने वाले द्रव्यमान की तुलना में अधिक द्रव्यमान खो रहे हैं क्योंकि जलवायु गर्म होती है, और वे धीरे-धीरे गायब हो रहे हैं। इससे इस आबादी पर गहरा असर पड़ेगा।
इन समुदायों को यह जानने की जरूरत है कि उनके ग्लेशियर कब तक पानी उपलब्ध कराते रहेंगे और क्या उम्मीद करनी चाहिए ताकि अगर ग्लेशियर गायब हो जाते हैं तो वह इसके लिए तैयारी कर सकें।
अधिकांश स्थानों पर, हमने पिछले अनुमानों की तुलना में कुल बर्फ की मात्रा काफी कम पाई।
उदाहरण के लिए, उष्णकटिबंधीय एंडीज में, वेनेजुएला से लेकर उत्तरी चिली तक, हमने पाया कि ग्लेशियरों में पहले की तुलना में लगभग 23% कम बर्फ है। इसका मतलब है कि डाउनस्ट्रीम आबादी के पास जलवायु परिवर्तन को समायोजित करने के लिए कम समय है, जिसकी उन्होंने योजना बनाई है।
यहां तक कि आल्प्स में, जहां वैज्ञानिकों के पास बर्फ की मोटाई के बहुत अधिक प्रत्यक्ष माप हैं, हमने पाया कि ग्लेशियर पहले की तुलना में 8% कम हो सकते हैं।
बड़ा अपवाद हिमालय है। हमने गणना की कि इन सुदूर पहाड़ों में पहले के अनुमान से 37% अधिक बर्फ हो सकती है। यह उन समुदायों को कुछ राहत देता है, जो इन ग्लेशियरों पर निर्भर हैं, लेकिन यह इस तथ्य को नहीं बदलता है कि ये ग्लेशियर ग्लोबल वार्मिंग के साथ पिघल रहे हैं।
नीति निर्माताओं को अपनी योजनाओं को संशोधित करने के लिए इन नए अनुमानों को देखना चाहिए। हम इस अध्ययन में भविष्यवाणियां नहीं कर रहे हैं, लेकिन हम इस बात का बेहतर विवरण प्रदान कर रहे हैं कि ग्लेशियर और उनकी जल आपूर्ति की आज कैसी स्थिति है।
2) ये खोज भविष्य में समुद्र के स्तर में वृद्धि के अनुमानों को कैसे प्रभावित करती हैं?
सबसे पहले, यह समझना महत्वपूर्ण है कि पिघलने वाले ग्लेशियरों का समुद्र के स्तर में वृद्धि के लिए केवल एक योगदानकर्ता है क्योंकि जलवायु गर्म होती है। आज के समुद्र के स्तर में लगभग एक तिहाई वृद्धि समुद्र के थर्मल विस्तार के कारण होती है – जैसे-जैसे समुद्र गर्म होता है, पानी फैलता है और अधिक जगह लेता है।
अन्य दो-तिहाई सिकुड़ते पर्वतीय ग्लेशियरों और बर्फ की चादरों से आते हैं।
हमने पाया कि अगर ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बड़ी बर्फ की चादरों को छोड़कर सभी ग्लेशियर पूरी तरह से पिघल जाते हैं, तो समुद्र का स्तर 13 इंच के बजाय लगभग 10 इंच बढ़ जाएगा। समुद्र के आकार को देखते हुए यह एक बड़े अंतर की तरह लग सकता है, लेकिन आपको चीजों को परिप्रेक्ष्य में रखना होगा।
अंटार्कटिक बर्फ की चादर के पूर्ण विघटन से समुद्र तल में 190 फीट का इजाफा होगा और ग्रीनलैंड की बर्फ की चादर का योगदान 24 फीट होगा।
इस अध्ययन में हम जिस 3 इंच के बारे में बात कर रहे हैं, वह समुद्र के स्तर में वृद्धि के वर्तमान अनुमानों पर सवाल नहीं उठाता है।
3) ग्लेशियरों की बर्फ की मात्रा का पता लगाना इतना कठिन क्यों रहा है, और अध्ययन ने अलग तरीके से क्या किया? आपको यह जानकर आश्चर्य हो सकता है कि सुदूर पर्वतीय हिमनदों की कुछ मूलभूत विशेषताओं के बारे में अभी भी कितनी कम जानकारी है।
1970 के दशक से उपग्रहों ने ग्लेशियरों के बारे में हमारी समझ को बदल दिया है, और वे ग्लेशियर के स्थानों और सतह क्षेत्र की एक स्पष्ट तस्वीर प्रदान करते हैं।
लेकिन उपग्रह बर्फ को ‘आरपार’ नहीं देख सकते हैं। वास्तव में, दुनिया के 99% ग्लेशियरों के लिए बर्फ की मोटाई का कोई सीधा माप नहीं है। वैज्ञानिकों ने ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका की बर्फ की चादरों और नीचे के इलाके की मैपिंग में बहुत समय लगाया है, और हमारे पास अब वहां का अधिक विस्तृत मात्रा माप है।
उदाहरण के लिए, नासा ने ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका में बर्फ की मोटाई मापने के लिए एक संपूर्ण हवाई अभियान, ऑपरेशन आइसब्रिज चलाया।
ग्लेशियरों की मात्रा निर्धारित करने के लिए वैज्ञानिक विभिन्न तकनीकों का इस्तेमाल कर रहे हैं, लेकिन दूरस्थ पर्वतीय हिमनदों के लिए अनिश्चितता बहुत अधिक है।
हमने पिछले अध्ययनों की तुलना में कुछ अलग किया। हमने ग्लेशियरों की गति को नापने के लिए सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया। ग्लेशियर की बर्फ, जब यह काफी मोटी होती है, तो गाढ़े द्रव्य की तरह व्यवहार करती है।
हम दो उपग्रह छवियों का उपयोग करके यह माप सकते हैं कि बर्फ कितनी दूर जा रही है और इसकी गति का नक्शा तैयार कर सकते हैं, जो प्रति वर्ष कुछ फीट से लेकर लगभग 1 मील तक होता है। 200,000 से अधिक ग्लेशियरों के विस्थापन का मानचित्रण करना कोई आसान काम नहीं था, लेकिन इसने एक ऐसा डेटा सेट तैयार किया जिसे पहले किसी ने नहीं देखा था।
हमने इन उपग्रह छवियों के प्रत्येक पिक्सेल पर बर्फ की मोटाई निर्धारित करने के लिए बर्फ की गति और बर्फ विरूपण के सरल सिद्धांतों की इस नई जानकारी का उपयोग किया।
संक्षेप में, अंतरिक्ष से हम जिस बर्फ की गति का निरीक्षण करते हैं, वह उसके तल पर बर्फ के खिसकने और उसके आंतरिक विरूपण के कारण होती है।
आंतरिक विकृति इसकी सतह के ढलान और बर्फ की मोटाई पर निर्भर करती है, और इसके तल की फिसलन इसके आधार पर बर्फ के तापमान, तरल पानी की उपस्थिति या अनुपस्थिति और नीचे तलछट या चट्टानों की प्रकृति पर निर्भर करती है। एक बार जब हम बर्फ की गति और फिसलने के बीच संबंध को जांच सकते हैं, तो हम बर्फ की मोटाई की गणना कर सकते हैं।
इन सभी ग्लेशियरों की प्रवाह गति को मैप करने के लिए, हमने यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी और नासा से उपग्रहों द्वारा एकत्र की गई 800,000 जोड़ी छवियों का विश्लेषण किया।
बेशक, किसी भी अप्रत्यक्ष तरीके की तरह, वे सही अनुमान नहीं हैं और जैसे-जैसे हम अधिक डेटा एकत्र करेंगे, उनमें और सुधार होगा। लेकिन हमने समग्र अनिश्चितता को कम करने में काफी प्रगति की है।
द कन्वरसेशन एकता एकता
एकता
यह खबर ‘भाषा’ न्यूज़ एजेंसी से ‘ऑटो-फीड’ द्वारा ली गई है. इसके कंटेट के लिए दिप्रिंट जिम्मेदार नहीं है.