scorecardresearch
Tuesday, 17 December, 2024
होमविदेशकोविड से निपटने में नाकामी ने मोदी जैसी पॉपुलिस्ट सरकारों का जनसमर्थन घटाया: कैंब्रिज डेमोक्रेसी स्टडी

कोविड से निपटने में नाकामी ने मोदी जैसी पॉपुलिस्ट सरकारों का जनसमर्थन घटाया: कैंब्रिज डेमोक्रेसी स्टडी

मोदी उन पॉपुलिस्ट नेताओं में शामिल हैं जिन्होंने ‘व्यापक, दूरगामी’ नीतियों के साथ त्वरित प्रतिक्रिया दी लेकिन इनके प्रयासों को अभी तक अस्वीकार ही किया गया है. अध्ययन में कहा गया है कि उदार लोकतंत्र के प्रति ‘कोई भरोसा बढ़ा नहीं’ दिखता है.

Text Size:

नई दिल्ली: कोविड-19 महामारी से निपटने में नाकामी के कारण दुनियाभर में ‘पॉपुलिस्ट’ दलों और राजनेताओं के जनसमर्थन का आधार घटा है, जबकि नरेंद्र मोदी जैसे कुछ नेताओं ने ‘व्यापक और दूरगामी नीतियों के साथ त्वरित प्रतिक्रिया दी’ है. यह बात एक अध्ययन में सामने आई है जिसके तहत 2020 से 109 देशों में पांच लाख से अधिक लोगों के दृष्टिकोण का विश्लेषण किया गया.

ब्रिटेन स्थित कैंब्रिज यूनिवर्सिटी की एक टीम की तरफ से किए गए अध्ययन में कहा गया है कि ‘लोकप्रियता की लहर’ में गिरावट के संकेत साफ हैं, क्योंकि पॉपुलिस्ट नेताओं के कोविड संकट से ठीक से ना निपट पाने के कारण जनता की राय बदलने लगी है. अध्ययन में कहा गया है कि जहां पॉपुलिस्ट दल सत्ता में थे, वहां उन देशों की तुलना में महामारी में अधिक मौतें हुईं, जहां मुख्यधारा की पार्टियां सत्तासीन थीं.

हालांकि, अध्ययन में इस बारे में ज्यादा विस्तार से कुछ नहीं बताया गया है कि मोदी या उनकी भारतीय जनता पार्टी का जनाधार कैसे घटा है.

टीम के मुताबिक, कैंब्रिज के सेंटर फॉर द फ्यूचर ऑफ डेमोक्रेसी (सीएफडी) द्वारा मंगलवार को जारी किया गया अध्ययन अपनी तरह का पहला वैश्विक विश्लेषण है कि कोविड-19 संकट ने राजनीतिक जनभावना को कैसे प्रभावित किया है.

हालांकि, अध्ययन में बताया गया है कि पॉपुलिस्ट सरकारों के प्रति समर्थन घटना एक समान और नए सिरे से उदार लोकतंत्र में भरोसा बहाल न हो पाने के नतीजे के तौर पर सामने आया है.

अध्ययन में कहा गया है, ‘उन देशों में जहां पॉपुलिस्ट दल सत्ता में थे, महामारी से निपटने के सरकार के प्रयासों को स्वीकारने की शुरुआत काफी धीमी रही और उन देशों की तुलना में इसमें अधिक गिरावट दर्ज की गई, जहां मुख्यधारा के दल सरकार में थे.’

अध्ययन में पॉपुलिस्ट नेताओं और पार्टियों के सत्ता में होने के तौर पर निम्नलिखित देशों को सूचीबद्ध किया गया है— संयुक्त राज्य अमेरिका (डोनाल्ड ट्रंप, जनवरी 2021 तक), ब्राजील (जेयर बोल्सोनारो), फिलीपींस (रोड्रिगो दुतेर्ते), इटली (मारियो ड्रैगी, पॉपुलिस्ट फाइव स्टार मूवमेंट की मदद से), स्पेन (पॉपुलिस्ट यूनिदास पोडेमोस पार्टी, जो पेड्रो सांचेज के नेतृत्व वाले गठबंधन के साथ सत्ता में है) और भारत (नरेंद्र मोदी की भारतीय जनता पार्टी).

सीएफडी के को-डायरेक्टर और रिपोर्ट के प्रमुख लेखक रॉबर्टो फोआ ने एक बयान में कहा, ‘हाल के वर्षों में राजनीति में इस्टैबलिसमेंट-विरोधी राजनेताओं के उभरने का दौर रहा है जो विशेषज्ञों में बढ़ते अविश्वास के साथ आगे बढ़ते रहते हैं.’

शोधकर्ताओं के अनुसार, स्थिरता की आकांक्षा की वजह से कुछ देशों में ‘ध्रुवीकरण’ वाले नज़रिये में भी कमी आई है.


यह भी पढ़ें: मोदी सरकार का बंगाल और केरल की गणतंत्र दिवस की झांकी को ख़ारिज करना राजनीति या प्रक्रिया?


‘काम कम किया या देर से किया’

अध्ययन में बताया गया है, ‘हालांकि, नरेंद्र मोदी या विक्टर ओर्बन (हंगरी) जैसे कुछ नेताओं ने तो व्यापक और दूरगामी नतीजों वाली नीतियों के साथ जल्द से जल्द आवश्यक कदम उठाए लेकिन आम तौर पर पॉपुलिस्ट नेताओं ने या तो बहुत कम काम किया या फिर आवश्यक कदम उठाने में देरी की, जिसका नतीजा नॉन-पॉपुलिस्ट सरकारों वाले देशों की तुलना में 10 प्रतिशत अंक की अधिक मृत्यु दर के तौर पर सामने आया.’

इसमें आगे कहा गया है, ‘एर्दोगन और बोल्सोनारो से लेकर पूर्वी यूरोप के ‘सशक्त नेताओं’ तक पूरी दुनिया ने राजनीतिक लोकप्रियतावाद की एक लहर को देखा है. हो सकता है कि कोविड-19 ने इस लहर को चरम तक पहुंचा दिया हो.’

अध्ययन में कहा गया है कि उपरोक्त देशों में फ्रांस, जर्मनी, स्वीडन, डेनमार्क, यूके, ऑस्ट्रेलिया, कनाडा और फिनलैंड जैसे अन्य देशों की तुलना में महामारी से निपटने के सरकारी कदमों को मान्यता मिलने की शुरुआत धीमी रही.

पॉपुलिस्ट नेताओं ने 2020 के वसंत और 2021 की अंतिम तिमाही के बीच औसतन 10 प्रतिशत अंक की गिरावट देखी, जबकि नॉन-पॉपुलिस्ट नेताओं के मामले में यह रेटिंग महामारी से पहले के स्तर पर पहुंच गई.

फोआ ने कहा, ‘पॉपुलिस्ट दलों के प्रति चुनावी समर्थन दुनियाभर में इस तरह ढहा है जैसा हमें ज्यादातर मुख्यधारा वाले राजनेताओं के मामले में नज़र नहीं आता है. यह इस बात का पुख्ता सबूत है कि महामारी ने लोकप्रियतावाद के उदय को गंभीर रूप से प्रभावित किया है.’


यह भी पढ़ें: BJP से निकाले गए सीरियल दलबदलू, हरक रावत अभी भी उत्तराखंड में क्यों हैं बेशकीमती उम्मीदवार


पहले ‘झंडे तले आए’ फिर मोहभंग

शोधकर्ताओं ने उल्लेख किया कि महामारी के पहले महीनों में कई राजनीतिक नेताओं को रेटिंग काफी बढ़ी नज़र आई क्योंकि लोग मुश्किल वक्त में उसके ‘झंडे तले’ ही खड़े नज़र आ रहे थे.

राजनीतिक विज्ञान में ‘रैली राउंड द फ्लैग’ या किसी झंडे के तले एकजुट होने की अवधारणा यह होती है कि किसी अंतरराष्ट्रीय संकट या युद्ध की स्थिति के दौरान किसी देश की सरकार या राजनेताओं के प्रति थोड़े समय के लिए जनसमर्थन उमड़ पड़ता है.

अध्ययन में बताया गया है कि हालांकि, दुनियाभर में पॉपुलिस्ट नेताओं को समर्थन की रेटिंग कोविड-19 की शुरुआत के साथ ही घटने लगी और तबसे लगातार कम ही हो रही है.

पॉपुलिस्ट पार्टियों के प्रति चुनावी समर्थन भी गिरा है. यह यूरोप में सबसे स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां एक पॉपुलिस्ट पार्टी को वोट देने के इच्छुक लोगों का अनुपात औसतन 11 प्रतिशत अंक गिरकर 27 प्रतिशत पर पहुंच गया.

यूरोप में महामारी के दौरान विपक्षी पॉपुलिस्ट पार्टियों के प्रति समर्थन में भी भारी गिरावट- औसतन पांच प्रतिशत अंक से लेकर 11 प्रतिशत तक आई है जबकि यह नॉन पॉपुलिस्ट विपक्ष के मामले में यह बढ़ा है.

टीम की राय है कि हालांकि लोकप्रियतावाद घटने की कई वजहें हैं लेकिन पॉपुलिस्ट सरकारों द्वारा महामारी से निपटने में नाकाम रहना इसका एक मुख्य कारण है.


यह भी पढ़ें: निकाय चुनावों से पहले उद्धव सरकार ने अपनी ‘2 साल की उपलब्धियों’ के विज्ञापनों के लिए बनाया 16.5 करोड़ रुपये का बजट


‘गैर-राजनीतिक’ विशेषज्ञों का समर्थन

रिपोर्ट के लिए कराए गए मतदान से पता चलता है कि पॉपुलिस्ट नेताओं के बारे में लोगों की राय है कि मध्यमार्गी नेताओं की तुलना में वह वायरस से संबंधित जानकारी देने के मामले में कम भरोसेमंद स्रोत हैं.

जून 2020 में मध्यमार्गी शासन वाले नेताओं की तुलना में पॉपुलिस्ट नेताओं वाले देशों में संकट से निपटने के सरकार के प्रयासों को मान्यता औसतन 11 प्रतिशत कम थी. 2020 के अंत तक यह अंतर 16 अंक तक पहुंच गया था.

हालांकि, शोधकर्ताओं का कहना है कि पॉपुलिस्ट सरकारों के प्रति भरोसे में इस गिरावट ने उदार लोकतंत्र में विश्वास को मजबूत नहीं किया है. संभवत: पॉपुलिस्ट नेताओं के पद पर होने के दौरान के रिकॉर्ड को देखते हुए लोकतंत्र के लिए समर्थन भी घटा है. इसके बजाये, नागरिकों में यह भावना तेजी से बढ़ी है कि फैसले ‘गैर-राजनीतिक’ विशेषज्ञों को लेने चाहिए.

फोआ ने कहा, ‘लोकतंत्र को लेकर संतुष्टि की भावना में 2019 के बाद से थोड़ा-बहुत ही सुधार हुआ है और यह अभी भी दीर्घकालिक औसत से काफी नीचे है.’

उन्होंने कहा, ‘महामारी के दौरान लोकतांत्रिक समर्थन में सबसे ज्यादा गिरावट जर्मनी, स्पेन और जापान जैसे देशों में देखी गई जहां एक बड़ी आबादी बुजुर्गों की है और जिनके वायरस की चपेट में आने का जोखिम ज्यादा होता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: महबूबा मुफ्ती ने बीजेपी पर बोला हमला, कहा- इससे छुटकारा पाना 1947 से बड़ी आज़ादी होगी


 

share & View comments