मेलबर्न (ऑस्ट्रेलिया), 10 जून (भाषा) वैज्ञानिकों ने अंटार्कटिक में ताजा गिरी बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाया है, जिसके बारे में उनका कहना है कि इससे बर्फ के पिघलने में तेजी आने से जलवायु को प्रभावित करने की क्षमता है।
शोध पत्रिका ‘द क्रायोस्फीयर’ में हाल में प्रकाशित निष्कर्ष अंटार्कटिक क्षेत्र के लिए एक गंभीर खतरे को रेखांकित करते हैं। पूर्व के अध्ययन में पाया गया कि माइक्रोप्लास्टिक (चावल के दाने से बहुत छोटे प्लास्टिक के टुकड़े) का पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह जीवों में विकास, प्रजनन और सामान्य जैविक कार्यों को सीमित करता है तथा इंसानों पर भी इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ता है।
न्यूजीलैंड के कैंटरबरी विश्वविद्यालय में पीएचडी की छात्रा एलेक्स एवेस ने 2019 के अंत में अंटार्कटिका में रॉस आइस शेल्फ से बर्फ के नमूने एकत्र किए। शोधकर्ताओं ने कहा कि उस समय हवा में माइक्रोप्लास्टिक की उपस्थिति की जांच करने वाले कुछ अध्ययन हुए थे लेकिन यह पता नहीं था कि यह समस्या कितनी व्यापक थी।
कैंटरबरी विश्वविद्यालय में एसोसिएट प्रोफेसर लौरा रेवेल ने कहा, ‘‘जब एलेक्स एवेस ने 2019 में अंटार्कटिका की यात्रा की, तो हम आशान्वित थे कि उन्हें इस तरह के दूरस्थ स्थान में माइक्रोप्लास्टिक नहीं मिलेगा।’’
प्रयोगशाला में जांच करने पर शोधकर्ताओं ने पाया कि रॉस आइस शेल्फ पर दूरस्थ जगहों से एकत्र किए गए प्रत्येक नमूने में प्लास्टिक के कण थे। एवेस ने कहा, ‘‘यह दुखद है, लेकिन अंटार्कटिक की ताजा बर्फ में माइक्रोप्लास्टिक का पता लगाना दुनिया के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में भी प्लास्टिक प्रदूषण की सीमा को उजागर करता है।’’
एवेस ने कहा, ‘‘हमने अंटार्कटिका के रॉस क्षेत्र में 19 जगहों से बर्फ के नमूने एकत्र किए और इन सभी में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी मिली।’’
माइक्रोप्लास्टिक के संभावित स्रोतों की जांच की गई। शोधकर्ताओं ने कहा कि वायुमंडलीय मॉडलिंग से संकेत मिला कि माइक्रोप्लास्टिक हवा के माध्यम से हजारों किलोमीटर दूर पहुंचा। हालांकि, यह भी संभावना है कि अंटार्कटिका में इंसानों की उपस्थिति से माइक्रोप्लास्टिक वहां पहुंचा हो।
भाषा आशीष नेत्रपाल
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