(ऋषिकेश कुमार)
पोर्ट लुइस, 11 मार्च (भाषा) मॉरीशस और ब्रिटेन के बीच लंबे समय से विवादित चागोस द्वीपसमूह पर वार्ता चल रही है। इस दौरान मॉरीशस की नव निर्वाचित सरकार क्षेत्र पर उसकी संप्रभुता को बहाल करने के उद्देश्य से समझौते की शर्तों को लेकर नए सिरे से विचार करने पर जोर दे रही है।
मॉरीशस के विदेश मंत्री धनंजय रामफल ने ‘पीटीआई वीडियो’ को दिये साक्षात्कार में कहा कि सरकार एक निर्णायक समझौता चाहती है जो भारत और अमेरिका सहित सभी हितधारकों के सर्वोत्तम हित में होगा।
उन्होंने कहा, ‘‘यह दोनों देशों के हित में है, यह चाहे भारत, मॉरीशस हो या फिर ब्रिटेन व अमेरिका, कि हम चागोस के स्थायी समाधान के लिए एक समझौते पर पहुंचें। डिएगो गार्सिया में संचालित हो रहे सैन्य ठिकाने के संबंध में स्थिरता, प्रत्यक्षता और निश्चितता लानी चाहिए।’’
इस समझौत पर शुरुआती बातचीत नवंबर 2024 में मॉरीशस के आम चुनावों से ठीक पहले हुई। हालांकि, अब जब नई सरकार सत्ता में है, तो रामफल ने कहा कि प्रशासन शर्तों पर नए सिरे से विचार करने को इच्छुक है।
विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘चागोस पर अपनी संप्रभुता बहाल करने के लिए लंबे समय से हम संघर्ष कर रहे हैं।’’ विवाद के ऐतिहासिक संदर्भ का हवाला देते हुए उन्होंने कहा, ‘‘यह अच्छी बात है कि ब्रिटेन ने बातचीत की मेज पर आकर मॉरीशस के साथ समझौता करने का फैसला किया है।’’
रामफल ने कहा, ‘‘दुर्भाग्य से, चुनाव से ठीक पहले से इस समझौते पर बातचीत चल रही थी। अब नवंबर से हमारे पास एक नयी सरकार है और हमने कहा है कि हम इस समझौते पर नए सिरे से विचार करना चाहते हैं। यही वर्तमान में चल रहा है।’’
रामफल ने रेखांकित किया कि वार्ता में हिंद महासागर क्षेत्र में स्थिरता और सुरक्षा सुनिश्चित करना शामिल है, विशेष रूप से डिएगो गार्सिया सैन्य अड्डे के निरंतर संचालन के संबंध में।
हिंद महासागर में स्थित चागोस द्वीपसमूह 1968 में मॉरीशस की आजादी के बाद से विवाद का विषय बना हुआ है क्योंकि ब्रिटेन का अब भी इनपर नियंत्रण है। बाद में ब्रिटेन ने सबसे बड़े द्वीप डिएगो गार्सिया को अमेरिका को पट्टे पर दे दिया, जिसने वहां एक रणनीतिक सैन्य अड्डा स्थापित किया है।
पिछले महीने, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चागोस द्वीपसमूह में स्थित अमेरिका और ब्रिटेन के सैन्य ठिकाने के भविष्य को लेकर मॉरीशस और ब्रिटेन के बीच समझौते को अपना समर्थन दिया था। चागोस द्वीपसमूह, हिंद महासागर में 60 से अधिक द्वीपों की सात श्रृंखला है।
रामफल के मुताबिक ब्रिटेन और मॉरीशस के बीच चागोस के मुद्दे पर समझौते में भारत महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उन्होंने कहा, ‘‘उस संघर्ष के दौरान भारत हमेशा मॉरीशस के साथ रहा है और मॉरीशस को समझौते तक पहुंचने तथा चागोस पर हमारी संप्रभुता पुनः प्राप्त करने के लिए हर संभव सहायता प्रदान की है। हम इसके लिए भारत के बहुत आभारी हैं।’’
मंत्री ने दोनों देशों के बीच गहरे संबंधों को रेखांकित किया। उन्होंने कहा, ‘‘हमें यह ध्यान में रखना होगा कि हिंद महासागर में सुरक्षा के मामले में हमारे हित (भारत और मॉरीशस दोनों के) समान हैं।’’
चागोस विवाद 1960 के दशक में तब शुरू हुआ जब ब्रिटेन ने इस द्वीपसमूह को मॉरीशस से अलग करके ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र (बीआईओटी) बना दिया।
भारत के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी 12 मार्च को पोर्ट लुईस में मॉरीशस के प्रधानमंत्री नवीन रामगुलाम के साथ द्विपक्षीय वार्ता करेंगे। उम्मीद की जा रही है कि इस दौरान चागोस का मुद्दा भी उठेगा।
प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा से पहले विदेश सचिव विक्रम मिस्री ने शनिवार को कहा था कि चागोस मुद्दे को संबंधित पक्षों के बीच सुलझा लिया जाएगा।
मॉरीशस के विदेश मंत्री ने चागोस मुद्दे के अलावा, वैश्विक व्यापार के अहम मार्ग, हिंद महासागर को सुरक्षित रखने की साझा प्राथमिकता पर भी जोर दिया। उन्होंने कहा, ‘‘हिंद महासागर एक बहुत ही महत्वपूर्ण व्यापारिक मार्ग है और इसलिए, हमारे आर्थिक अस्तित्व के लिए इसकी सुरक्षा सबसे अहम है।’’
मॉरीशस पर विदेशी प्रभाव को लेकर चिंताओं के मद्देनजर रामफल ने चीन के संबंध में मॉरीशस के रुख को स्पष्ट किया। उन्होंने जोर देकर कहा,‘‘मॉरीशस और उसके आसपास कोई चीनी नौसैनिक अड्डा नहीं है। चीन सैन्य या अन्य मुद्दों के बजाय आर्थिक और व्यापार को लेकर अधिक चिंतित है।’’
दोनों देशों के बीच बुधवार को एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किए जाने हैं, जिसमें समुद्री सुरक्षा से संबंधित सूचनाओं के आदान-प्रदान पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।
भाषा धीरज पवनेश
पवनेश
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